जीवेश रंजन सिंह: हाल के दिनों कई ऐसी सूचनाएं आयीं जिसने परेशान किया. पटना में एक युवक ने दो नाबालिग सगी बहनों को बहुमंजिली इमारत की छत से फेंक दिया. एक की मौत हो गयी, दूसरी जिंदगी की जंग लड़ रही है. मुंगेर में ससुराल आये युवक ने पत्नी की हत्या कर खुद को फांसी लगा ली. भागलपुर में साथियों ने ही युवक को बुला बीच सड़क पर गोली मार हत्या कर दी. ऐसी कई घटनाएं हैं जिन्होंने सोचने पर मजबूर कर दिया है.
अधिकतर मामलों में कारण लोभ-लाभ से ज्यादा आक्रोश रहा. सामान्य बातों व घटनाओं पर हद से गुजर जाना आम हो गया है. ये घटनाएं अपराध की श्रेणी में आती हैं और तत्काल पुलिस की बात होती है. होनी भी चाहिए, क्योंकि समाज में शांति व सुकून हो इसकी जवाबदेही पुलिस पर है. पर इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि क्या ये चीजें आदेश-निर्देश या दंड से ही ठीक होंगी.
आंकड़ों पर गौर करें तो दिखेगा कि हाल के दिनों में पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ी है. साख में भी सुधार हुआ है, पर घटनाएं कम नहीं हुईं. इस वजह से यह सवाल लाजमी है कि क्या ऐसी घटनाओं पर केवल पुलिस के भरोसे काबू पाया जा सकता है ? सच यह है कि सामाजिक तौर पर हम सब खुद को अकेला कर चुके हैं.
मानें न मानें, खुद का सेल बना रखा है जिसमें किसी के आने और खुद उससे बाहर जाने में डरने लगे हैं. कहीं कोई गलत दिखने पर उसे टोकने या रोकने की बजाय बच कर निकल जाने की मनोवृत्ति बढ़ती जा रही है. इसके पीछे कई कारण गिनाये जा सकते हैं, पर गलत का विरोध और विरोध करनेवाले का साथ देना ही अंतिम रास्ता है.
संदर्भवश, मंगलवार को भागलपुर के सैंडिस कंपाउंड में छेड़खानी कर रहे कुछ युवकों को सब देख और सह रहे थे, किसी ने इस बात की कोशिश नहीं की कि उनका विरोध करे, पर आजिज हो चुकी एक युवती ने न केवल विरोध किया, बल्कि उनकी पिटाई भी कर दी. यह देख अन्य लोगों ने भी साथ दिया. रास्ता विरोध से ही निकला इसे मानना ही होगा.
मानें न मानें ऐसी समस्याओं का समाधान परिवार और समाज के बीच से ही निकलेगा. घर में भी सामूहिकता में ऐसी बातें हों, एक-एक सदस्य को उसकी कमियों व अच्छाइयों को बताया जाये, न केवल बताया जाये, बल्कि उसे दूर करने में मदद भी की जाये, तो चीजें बदलेंगी.
सच यह है कि चरित्र व समृद्धि चेहरे से ही दिखती है, ऐसे में परिवार के सदस्य व समाज जागरूक हो तो वह इसे बेहतर करने में मदद कर सकता है. अगर जरूरत हो तो पुलिस की मदद लें, साथ ही पुलिस भी सवालों के जाल व कागजी चक्रव्यूह से निकल कर सच का साथ देने में तेजी दिखाये तभी ऐसी अप्रिय घटनाओं पर लगाम लग सकती है.अंत में, शांतिचित्त हो सोचें तो क्रोध कमजोरी का प्रतीक है, जिसमें परिस्थितियों का बोझ झेलने का साहस और धैर्य नहीं होता वह क्रोधी होता है.