18.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बिहार को प्रभावित कर रहा जलवायु परिवर्तन, 2030 तक 1.3 डिग्री सेल्सियस बढ़ सकता है तापमान

भागलपुर में बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन व न्यून कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति प्रोजेक्ट के तहत हुई कार्यशाला में विशेषज्ञ ने कहा कि बिहार में पिछले 50 वर्षों में तापमान में 0.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है. वहीं 2030 तक 1.3 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ सकता है

Climate Change: भागलपुर में विश्व संसाधन संस्थान (डब्ल्यूआरआइ) इंडिया के प्रोग्राम प्रबंधक डॉ शशिधर कुमार झा ने कहा कि बिहार में पिछले 50 वर्षों में तापमान में 0.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है. वर्ष 2030 तक तापमान में 0.8 से 1.3 डिग्री सेल्सियस, 2050 तक 1.4 से 1.7 डिग्री सेल्सियस और 2070 तक 1.8 से 2.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने का अनुमान है. दूसरी ओर अब माॅनसून की शुरुआत में देरी हो रही है.

जलवायु परिवर्तन अनुकूलन उपायों में फसल व कृषि प्रणाली में विविधता, सतही और भूजल का एकीकृत प्रबंधन, वन पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा, संरक्षण और पुनर्जनन, निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना और आपदा के समय आजीविका की सुरक्षा और संवर्द्धन को अपनाना होगा. वे बुधवार को समीक्षा भवन में बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन व न्यून कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति के क्रियान्वयन विषय पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे.

बिहार में ईंट निर्माण से सबसे अधिक औद्योगिक उत्सर्जन

डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स के प्रोग्राम ऑफिसर अविनाश कुमार ने बिहार में उद्योग की भूमिका पर जोर दिया. कहा कि बिहार के उद्योगों से कुल उत्सर्जन 14 प्रतिशत है. इसमें ईंट निर्माण क्षेत्र औद्योगिक उत्सर्जन का 80 प्रतिशत योगदान देता है. बिहार में लगभग 6,500 ईंट भट्टे हैं, जिनमें से 85 प्रतिशत क्लीनर जिगजैग तकनीक का उपयोग करते हैं, लेकिन खराब निर्माण और तकनीकी विशेषज्ञता की कमी के कारण लाभ सीमित हैं. भट्ठा मालिकों और श्रमिकों के लिए जमीनी स्तर पर प्रशिक्षण की आवश्यकता है. 600 फ्लाई ऐश ईंट इकाइयां जो बिहार की ईंट की जरूरत को 50 प्रतिशत पूरा करती है, उत्सर्जन को आधा कर देती है.

प्रगति के साथ, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का ध्यान रखने की भी जरूरत

डीडीसी कुमार अनुराग ने कार्यशाला का उद्घाटन किया. उन्होंने कहा कि एक विकासशील देश के रूप में हमारी विकास की गति विकसित देशों की तुलना में अधिक होगी, लेकिन कार्बन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जैसे पहलुओं को भी ध्यान में रखना होगा. वरीय उपसमाहर्ता कृष्ण मुरारी ने कहा कि बिहार अत्यधिक मौसमी घटनाओं और आपदाओं के प्रति अतिसंवेदनशील है. यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है कि हम बिहार को नेट जीरो कार्बन राज्य बनाने के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से सभी प्रयास करें.

डब्लूआरआइ इंडिया के प्रोग्राम प्रबंधक मणि भूषण कुमार झा ने कहा कि पिछले ढाई वर्षों के दौरान बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनइपी), शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन और डब्ल्यूआरआइ इंडिया व अन्य संगठनों की तकनीकी सहायता से बिहार राज्य के उक्त संकल्प को पूर्ण करने पर काम किया जा रहा है. इस कार्यशाला का उद्देश्य रणनीति का जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन के लिए स्थानीय हितधारकों को इसके बारे में संवेदित करना भी है.

Also Read: मुजफ्फरपुर में गांजे के 50 रुपए के लिए हत्या, पुलिस ने किया खुलासा, कैसे रची गई थी साजिश

दाल व बाजरा की फसलों से कम होता है ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन

बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ स्वर्णा चौधरी ने दावा किया कि दाल और बाजरा की फसलों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम होता है और इसकी खेती को बढ़ावा देने का आग्रह किया. बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद, भागलपुर के क्षेत्रीय पदाधिकारी शंभू नाथ झा ने पर्यावरण संरक्षण के लिए परिषद द्वारा राज्य में लगभग 7000 ईंट भट्टों को स्वच्छ इकाइयों में परिवर्तित करना व कोयला आधारित उद्योगों को कंप्रेस्ड प्राकृतिक गैस और पाइप्ड प्राकृतिक गैस में क्रमिक रूप से परिवर्तित कराया जा रहा है.

कार्यशाला का संचालन बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद के वैज्ञानिक नलिनी मोहन सिंह ने किया. धन्यवाद ज्ञापन जिला ग्रामीण विकास अभिकरण के निदेशक दुर्गा शंकर ने किया. इस मौके पर आरटीए सेक्रेटरी वारिस खान, संयुक्त निदेशक जनसंपर्क नागेंद्र कुमार गुप्ता व सिविल सर्जन डॉ अशोक प्रसाद आदि उपस्थित थे.

ये भी देखें:

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें