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स्टेशन पर 144 साल पुरानी किताब दुकान में अब बिकने लगा कुरकुरे, जानें कारण व अंग्रेज जमाने से अब तक का सफर

जो किताब कहीं नहीं मिलती थी, उसके बारे में कहा जाता था कि रेलवे स्टेशन के बुक स्टॉल पर जरूर मिल जायेगी. लेकिन रेलवे स्टेशन पर 144 साल पुरानी किताब दुकान में अब कुरकुरे बिक रहे हैं. स्टेशन पर चर्चित बुक स्टॉल एएच व्हीलर एंड कंपनी की बैनर लगी दुकान अब पानी, चिप्स, बिस्कुट और दूध पाउडर बेचा जा रहा है. कुछ शुद्ध साहित्यिक प्रकाशकों के जनप्रिय प्रकाशन (प्रेमचंद आदि) तो मिल भी जायेंगे, लेकिन, पत्रिकाओं की भीड़ में पारंपरिक लोकप्रिय पेपरबैक्स गायब मिलेंगी. अब नाम का केवल बैनर रह गया है.

ब्रजेश, भागलपुर: जो किताब कहीं नहीं मिलती थी, उसके बारे में कहा जाता था कि रेलवे स्टेशन के बुक स्टॉल पर जरूर मिल जायेगी. लेकिन रेलवे स्टेशन पर 144 साल पुरानी किताब दुकान में अब कुरकुरे बिक रहे हैं. स्टेशन पर चर्चित बुक स्टॉल एएच व्हीलर एंड कंपनी की बैनर लगी दुकान अब पानी, चिप्स, बिस्कुट और दूध पाउडर बेचा जा रहा है. कुछ शुद्ध साहित्यिक प्रकाशकों के जनप्रिय प्रकाशन (प्रेमचंद आदि) तो मिल भी जायेंगे, लेकिन, पत्रिकाओं की भीड़ में पारंपरिक लोकप्रिय पेपरबैक्स गायब मिलेंगी. अब नाम का केवल बैनर रह गया है.

कोरोना काल में किताबें नहीं बिकने के कारण यह हाल

बुक स्टॉल पर किताब, मैगजीन, न्यूज पेपर्स की रेंज की जगह पानी का बोतल, चिप्स, बिस्कुट, कुरकुरे, दूध का पाउडर जैसी चीजें बिकने लगी हैं. कोरोना काल में किताबें नहीं बिकने के कारण यह हाल है. कई बुक स्टॉल तो बंद हो गये. किताब और पत्रिकाओं की बिक्री में हो रही कमी और संचालकों को लगातार घाटा सहने के कारण बुक स्टॉल को मल्टीपरपस स्टॉल बना दिया गया है. हालांकि, अभी किताब के लिए स्टोर है.

किताब और पत्रिकाओं की बिक्री में कमी से खाद्य सामग्रियों को बेचने की अनुमति

रेलवे बोर्ड ने भी पिछले साल ही सभी जोन को निर्देश दिये थे कि स्टॉल संचालकों की लाइसेंस फीस बढ़ाकर मंडल कार्यालय द्वारा इसकी अनुमति दी जायेगी. रेलवे बोर्ड द्वारा यह निर्णय संचार क्रांति बढ़ने के कारण किताब और पत्रिकाओं की बिक्री में हो रही कमी को देखते हुए लिया गया था. रेलवे का मानना है कि ऐसे रेल यात्री जिन्हें खाद्य सामग्री के अलावा दवाइयां, पट्टी, बच्चों के लिए दूध की बोतल आदि की जरूरत होती है, उन्हें आसानी होगी. इसलिए मल्टीपरपस स्टॉल का नाम दिया गया है.

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144 साल पुरानी है एएच व्हीलर एंड कंपनी

एएच व्हीलर एंड कंपनी के खुलने की पटकथा 143 साल पुरानी है. 1857 की कांति के दौर में कानपुर में एक अंग्रेज अधिकारी हुआ करता था, जिसका नाम था आर्थर हेनरी व्हीलर यानी एएच व्हीलर. इसी आर्थर हेनरी व्हीलर ने अंग्रेज सेना से रिटायर होने के बाद इंलैंड में अपनी बुक स्टोर्स की शृंखला खोली. इसका नाम उसने रखा एएच व्हीलर बुकस्टोर्स यानी आर्थ हेनरी व्हीलर बुक स्टोर रखा.

कोरोना संकट की वजह से दूसरी सुविधाओं में भी आने लगी कमी

बुक स्टॉल को मल्टीपरपस स्टॉल में तब्दील होने से पाठकों के लिए साहित्यिक प्रकाशकों की पुस्तकों का मिलना संकट हो गया है, तो यात्रियों की दूसरी कई सुविधाओं में कमी से मुश्किलें बढ़ गयी है. ऑटोमैटिक टिकट वेंडिंग मशीन बंद पड़ गया है. रेलवे अधिकारियों की इस ओर ध्यान नहीं जा रहा.

स्पेशल के नाम पर ज्यादा किराया की वसूली

ट्रेनें धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगी है. स्टेशन पर आवाजाही भी बढ़ गयी है. मगर, दर्जन भर काउंटर रहने दो-चार की संख्या में ही यह खुल रहा है. इससे यात्रियों को परेशानी होने लगी है. हालांकि, परेशानी तो कई महत्वपूर्ण ट्रेनों के नहीं चलाने से भी है. इधर, जितनी ट्रेनें चलायी जा रही, उसे स्पेशल का नाम दिया गया है. यानी, स्पेशल के नाम पर यात्रियों से किराया भी ज्यादा वसूला जा रहा है.

Posted by: Thakur Shaktilochan

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