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शहर ने भुलाया, गांव ने रखा है जिंदा

शहर में 22 साल से दुर्गा पूजा पर होने वाले भरत मिलाप का मंच बंद है. गांवों में 71 साल से नाटक का मंचन जारी है.

शहर की चकाचौंध जिंदगी में कई चीज भुला दिये जा रहे हैं, जबकि गांव में अभी भी वह विरासत के तौर पर जिंदा है. शहर में 22 साल से दुर्गा पूजा पर होने वाले भरत मिलाप का मंच बंद है. गांवों में 71 साल से नाटक का मंचन जारी है. सुलतानगंज में नाटक का मंचन नहीं हो रहा. सुलतानगंज सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र है, लेकिन वर्तमान समय में शहर ने वह भी भुला दिया. इस बार गांव में नाटक का मंचन लगातार 71वें साल होने जा रहा है.

नाटक के माध्यम से हर बार एक नया संदेश

गनगनिया में नाटक का मंचन कर रहे सुरेश सूर्य ने बताया कि वर्तमान समाज में चेतना जागृत करने के लिए यहां हर साल नाटक का मंचन होता है. आने वाली पीढ़ी को नाटक का एहसास दिलाने के लिए गांव के बच्चे को नाटक के लिए तैयार किया जा रहा है. दुर्गा पूजा पर चली आ रही नाटक मंचन की परंपरा को जिंदा रखा जा सके. सुरेश ने बताया कि दुर्गा पूजा पर हर बार नाटक के माध्यम से एक नया संदेश दिया जाता है. इस बार पूजा पर पगला और गांधी की लाठी नाटक का मंचन किया जायेगा. उन्होंने बताया कि यहां तीन क्लब है, यहां हर साल आदर्श नाटक क्लब, नवीन छात्र संघ क्लब और किशोर नाट्य मंच की ओर से नाटक का मंचन होता है. सुलतानगंज पूर्व में एक सांस्कृतिक केंद्र था, लेकिन आज नहीं है. यह काफी चिंताजनक है.

शहर में 59 वर्षों तक हुआ भरत मिलाप, अब हो गया बंद

सुलतानगंज में 59 वर्षों से लगातार भरत मिलाप हो रहा था. सहयोग व जागरूकता के अभाव में 22 साल से बंद है. पंडित नरेश झा ने बताया कि मां दुर्गा के विसर्जन के बाद भरत मिलाप देखने लोग दूर-दूर से सुलतानगंज पहुंचते थे. पूर्व वार्ड पार्षद निरंजन चौधरी ने बताया कि सुलतानगंज में भरत मिलाप की परंपरा विजय दशमी के दिन कई वर्षों से होती थी. यहां राम-सीता व लक्ष्मण के साथ हनुमान को देखने की भीड़ जुटती थी. यहां कई गांव के लोग पहुंचते थे.हनुमान की भूमिका में स्व राम बाबा का योगदान लोगों को आज भी याद है. स्थानीय लोगों ने बताया कि भरत मिलाप की शुरूआत फिर हो, जिसके लिए एक भगीरथ प्रयास की जरूरत है.

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