घोघा. पक्कीसराय पंचायत का प्रसिद्ध काली मंदिर लोगों के लिए प्रमुख आस्था का केंद्र है. इस मंदिर में 164 वर्षों से काली पूजा होती आ रही है. स्थापना की कहानी भी दिलचस्प है. राष्ट्रीय चेतना से इस स्थान का इतिहास जुड़ा है. स्थापना काल बगावत का प्रारंभिक दौर था. मंदिर वाले स्थान पर क्रांतिकारियों का जमावड़ा लगता था. मां काली के जयकारे से क्रांतिकारियों में उर्जा का संचार होता था. मां काली के प्रति क्रांतिकारियों की गहरी आस्था देख जमींदार घन्ना मंडल ने सन 1859 में मंदिर स्थापना की नींव रख दी. घन्ना मंडल के बाद मंदिर की देखरेख उनके पुत्र भीनकू मड़र करते थे. सन 1904 तक भीनकू मड़र अपने निजी खर्चे से पूजा व अन्य आयोजन करते रहे. सन 1905 में कालीपूजा के समय ही किसी अंदरूनी कारणों से भीनकू मड़र गांव छोड़कर अन्यत्र चले गये.
यहां मेला प्रबंधन कमेटी की ओर से दी जाती है पहली बलि
सन 1906 में पूजा कमेटी का गठन हुआ. तब से आज तक पूजा कमेटी की देखरेख में पूजा होती चली आ रही है. स्थापना काल से ही यहां बलि प्रथा चली आ रही है. बकरे की बलि दी जाती है. मेला प्रबंधन कमेटी की ओर से प्रथम बली दी जाती है, जिसे सरकारी बलि कहते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है