संजीव झा, भागलपुर इनका भी एक खुशहाल संसार हुआ करता था, जिसमें पति थे, घर था और उसके आंगन में बच्चों की किलकारियों की गूंज थी. इन्होंने भी अपने बेटों को पान का डंठल हाथ में देकर शादी करने के लिए बरात के साथ विदा की थीं. फिर बहुओं को अपने दरवाजे पर सारे रश्म-ओ-रिवाजों के साथ गृह प्रवेश कराया था. फिर पता नहीं क्यों जिंदगी करवट ले ली. कुछ वर्षों से घुटन से भरी हुई हैं. किसी का दिल टूटते देखा है आपने? दिल टूटने की आवाज नहीं आती, वह केवल महसूस ही की जा सकती है. अब वह जिंदा तो हैं, पर ढहा दी गयी कोठी के मलबे की तरह. हम बात कर रहे हैं भागलपुर-गोराडीह रोड स्थित वृद्धाश्रम में रह रहीं महिलाओं की. इनमें कई ने तो अपने बेटों का या तो वर्षों से चेहरा नहीं देखा है या फिर वर्ष में एक बार देखने का अवसर मिल जाता है. फिर भी आठ महिलाएं जिउतिया जैसा कठिन व्रत कर रही हैं और कामना कर रही हैं – बेटे का पूरा परिवार खुशहाल रहे. गौतमी देवी (70 वर्ष), सबौर दो बेटे और तीन बेटियां हैं. दोनों बेटे परदेश में परिवार के साथ रहते हैं. बेटों के जाने के बाद घर में अकेली हो गयीं. एक बार बेटा के पास रहने गयी थी, पर वहां का पानी सेट नहीं करने लगा. कमजोर हो गयी, तो लौट आयी. दुर्गापूजा और होली में बेटा घर आता है, तो मैं मिलने जाती हूं. मुन्नी देवी (75 वर्ष), नाथनगर तीन बेटे हैं. तीनों दिल्ली, गुजरात और हरियाणा में रह कर कमाते हैं. उनके बाल-बच्चे भी उन्हीं के साथ रहते हैं. मैं बीमार पड़ती रहती हूं. घर में अकेली होने के कारण खुद की देखभाल नहीं कर पाती थी. बेटे के पास रहने गयी, पर तबीयत में सुधार नहीं हो रहा था. आखिर में वृद्धाश्रम आ गयी. कुसो देवी (80 वर्ष), जगदीशपुर तीन बेटे हैं. तीनों किसान हैं. कुल आठ बीघा खेत है. मुझे मेरे बेटे कुछ नहीं कहते, लेकिन जब वे खेत पर जाते हैं, तो बहु अच्छी बोली नहीं कहती है. इसके कारण झगड़ा हो जाता था. इस तरह की जिंदगी से आजिज आ गये थे. कभी-कभी वेलोग देखने के लिए आते हैं. मैं भी कभी-कभार घर जाती हूं. खोखो देवी (80 वर्ष), गोराडीह एक बेटा है, जो हार्ट और लकवा का रोगी है. वह बिस्तर पर पड़ा रहता है. खुद से उठ-बैठ भी नहीं सकता है. पतोहू बहुत बदमाश है. पोता और पोता की पत्नी को भड़का कर मुझे पिटवाती रहती है. तीन महीने से मैं परेशान हो गयी थी. आजिज आकर वृद्धाश्रम चली आयी. जिमूतवाहन मेरे बेटे को ठीक कर दे. घनेशरी देवी (80 वर्ष), सबौर एक बेटा था, जो अब इस दुनिया में नहीं है. बहू से पटता नहीं है. घर में रहती हूं, तो बहू से झगड़ा हो जाता था. इसी कारण वृद्धाश्रम चली आयी. दो बेटी और एक पोता है. उनके लिए ही जिउतिया पर्व करती हूं. पोता पढ़-लिख जायेगा, तो परिवार का नाम आगे बढ़ायेगा. वह खुश रहे, ऐसी मैं कामना करती हूं.
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