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हाल TMBU का, मौखिक परीक्षा के लिए शोधार्थियों को करनी पड़ती है खुद की जेब ढीली, जानें पूरा मामला

टीएमबीयू के पीजी विभागाध्यक्षों और संकायाध्यक्षों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि वाइवा के लिए बाहर से आने वाले शिक्षकों को टीए देने के लिए पैसे नहीं हैं.

तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (TMBU) में शोध की गुणवत्ता को लेकर योजना बनायी जा रही है. ताकि रिसर्च के क्षेत्र में टीएमबीयू की पुरानी गरिमा लौट आये. दूसरी तरफ पीएचडी  मौखिक परीक्षा (वाइवा) के लिए शोधार्थी को बाहरी शिक्षकों को बुलाने के लिए अपनी जेब से खर्च करना पड़ रहा है. बताया जा रहा है कि विवि से पीजी विभागों को सालों से इंप्रेस मनी व कंटीजेंसी मिलनी बंद है. ऐसे में विभाग में फंड नहीं रहने से पीएचडी के वाइवा लेने के लिए बाहर से आने वाले शिक्षकों को टीए का भुगतान नहीं कर पा रहा है. इसका खामियाजा शोधार्थी को झेलना पड़ रहा है.

विभाग के चक्कर में वाइवा होने में होती है देरी 

नाम नहीं छापने के शर्त पर पीएचडी कर रहे शोधार्थी ने बताया कि वाइवा के लिए विभाग से बाहरी शिक्षकों को बुलाने के लिए उधार के रूप में खर्च मांगा जाता है. कहा जाता है कि विभाग को इंप्रेस मनी- कंटीजेंसी मिलने पर उधार की राशि लौटा दी जायेगी. शोधार्थी को अपने जेब से ही पीएचडी वाइवा के लिए खर्च करना पड़ता है.

वाइवा के लिए शिक्षक आने से कर रहे हैं परहेज 

पीजी विभागों व संकायध्यक्षों ने नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया कि पीएचडी वाइवा के लिए विवि से सालों से इंप्रेस मनी- कंटीजेंसी मद में राशि नहीं मिली है. कभी तो विभागाध्यक्ष अपने जेब से खर्च कर देते है, तो कभी शोधार्थी से उधार लेकर खर्च किया जाता है. पीएचडी वाइवा को लेकर बाहर से शिक्षक भी आने से परहेज करते है. इसका कारण है कि टीए समय पर नहीं दिया जाता है.

रिसर्च के नाम पर एक निश्चित राशि की हो व्यवस्था

विवि के पूर्व डीन प्रो अशोक कुमार ठाकुर ने कहा कि रिसर्च के लिए एक निश्चित राशि का आवंटन आवश्यक है, जो एक निश्चित अंतराल में विभागों को मिलता रहे. इससे शोध में गुणवत्ता बढ़ेगा. इस दिशा में विवि प्रशासन प्रयासरत है. रिसर्च को लेकर व्यवस्था में सुधार आयेगा.

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