गरुण प्रजनन केंद्र खैरपुर कदवा व पुनामा प्रताप नगर में पेड़ के नीचे जाल लगाये गये हैं. पिछले दिनों पेड़ से गिर कर गरुण के कई बच्चे घायल हो गये थे. इसे रोकने के लिए वन प्रमंडल पदाधिकारी के निर्देश पर पेड़ के नीचे जाल लगाये गये. वन के क्षेत्र पदाधिकारी नवगछिया ने अपने वनकर्मी सहयोगियों के सहयोग से वनरक्षी अमन कुमार की उपस्थिति में कदवा खैरपुर सड़क किनारे पीपल पेड़ के नीचे जाल लगाया, ताकि गरुण का संवर्धन, संपोषण व अनुरक्षण हो सके. पुनामा प्रताप नगर में भी पेड़ के नीचे जाल लगाया गया. कदवा खैरपुर में पूर्व से ज्यादा घोसले लगाये गये हैं. कंबोडिया, असम के बाद कदवा के इलाके में गरुण प्रजनन अधिक हुआ है. वर्तमान में कदवा के अलावा अन्य निकटवर्ती जिलों में भी गरुण की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. जिले में गरुण लगातार बढ़ रहे है. दुनियाभर में करीब 16 सौ गरुड़ हैं, इनमें 600 से अधिक सिर्फ कदवा खैरपुर में हैं. वन विभाग के अनुसार कदवा क्षेत्र विश्व का तीसरा व भारत का दूसरा प्रजनन स्थल है. खैरपुर कदवा के लोग गरुड़ को भगवान का स्वरूप मानते हैं. इन गरुड़ों की खासियत है कि यह पेड़ पौधों में कीड़े नहीं लगने देते. यह कीड़े मकोड़े, फसल बर्बाद करने वाले चूहों को खा जाते हैं. सरकार गरुड़ों के लिए सालाना 40 लाख रुपये खर्च करती है. स्थानीय लोगों ने बताया कि गरुड़ों के लिए यहां का वातावरण अनुकूल है. देश के कई हिस्सों से लोग गरुड़ को देखने कदवा पहुंचते हैं. पहले गरुड़ के लिए कंबोडिया का नाम लोग जानते थे, लेकिन अब भागलपुर का नाम गरुड़ के लिए भी जाना जाता है. स्थानीय लोग गरुड़ की रक्षा करते हैं. उन लोगों को हर वर्ष सम्मानित किया जाता है. असम में सबसे ज्यादा गरुड़ पाये जाते थे, लेकिन खैरपुर कदवा ने असम को मात दे दिया है. 2006 के बाद की बात करें तो 16 वर्षो में गरुड़ों की संख्या यहां 9 से 10 गुना बढ़ी है.
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