विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर शनिवार को प्रभात खबर के भागलपुर कार्यालय में एक संगोष्ठी की गयी. पर्यावरण से संबंधित कार्यों से जुड़े विभिन्न क्षेत्र के शहर के प्रबुद्धजनों का जुटान हुआ. वक्ताओं ने मुख्य रूप से यह कहा कि प्रकृति के दिये उपहारों में शामिल पेड़, पौधे, नदी, पहाड़ व पक्षी आदि जब नष्ट होते हैं, तो यह कतई नहीं समझें यह नुकसान इन प्राकृतिक उपहारों का है. इस क्षति से संपूर्ण मानव जाति का नुकसान होता है. जीवन नष्ट होता है. लिहाजा जीवन बचाना है और स्वस्थ रखना है, तो पेड़ लगायें और प्राकृतिक उपहारों को बचाये रखने के लिए सभी अपने-अपने स्तर से प्रयास करते रहें.
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जब पॉलीथिन है खतरनाक, तो बंद क्यों नहीं करते इसका उत्पादन
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ग्रीन हाउस गैस को कम करने के निदान पर वैज्ञानिकों को काम करना होगा
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बांस के पौधों की खेती को मिले बढ़ावा, ताकि व्यवसाय भी हो और पर्यावरण की रक्षा भी
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बरसात के पानी की बर्बादी रोकने के लिए हार्वेस्टिंग सिस्टम के नियम का सख्ती से हो पालन
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हम पानी बचाने की बात करने तक सीमित नहीं रहें, बचायें भी
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गंगा एक्शन प्लान चल रहा, मरने के कगार पर चंपा नदी पर कब होगा एक्शन
सॉलिड वेस्ट का कोई निदान नहीं है. जब पॉलीथिन सर्वाधिक खतरनाक वस्तु है, तो इसका उत्पादन ही बंद करने का काम सरकार क्यों नहीं करती. मैं कई युवाओं को जानता हूं, जो प्लास्टिक का विकल्प खोज रहे हैं. ऐसे युवाओं के लिए सरकार को स्किल डेवलपमेंट की योजना लानी चाहिए.
अरविंद मिश्रा, स्टेट को-ऑर्डिनेटर, इंडियन बर्ड कंजरवेशन नेटवर्क
क्लाइमेट चेंज का असर हर जीव-जंतुओं पर पड़ रहा है. इसे ठीक करने के लिए पौधरोपण की तरफ हमें बढ़ना होगा. मैं गांधी मित्र संस्था की ओर से स्कूली बच्चों व युवाओं के द्वारा अपने पूर्वजों के नाम से पौधरोपण का अभियान चला रहा हूं, ताकि पर्यावरण की रक्षा के साथ बुजुर्गों का भी सम्मान हो.
डॉ विवेकानंद मिश्र, सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष, पीजी रसायन शास्त्र, टीएमबीयू
बांस की उम्र 100 से 140 वर्ष तक होती है. इससे 3600 से अधिक प्रोडक्ट तैयार किये जा सकते हैं. इसकी कोपल से कैंसर जैसी असाध्य बीमारी का इलाज होता है. लिहाजा किसान अपनी खेतों में बांस की खेती करें. इससे पर्यावरण की रक्षा के साथ आमदनी का भी बड़ा स्रोत तैयार हो जायेगा.
डॉ एके चौधरी, प्रधान वैज्ञानिक, बंबू टिश्यू कल्चर लैब, वन विभाग
लोगों को बीमार करने में कंक्रीट के मकान काफी हद तक जिम्मेदार होते हैं. मिट्टी से बने घरों में रहनेवाले अपेक्षाकृत कम बीमार होते हैं. अब तो मिट्टी के मजबूत मकान बनाने की कई तकनीक आ गयी है, जिसे लोग अपना भी रहे हैं. ऐसे मकान निर्माण, सोख्ता आदि बनाने में हमारी टीम मदद के लिए तैयार है.
डॉ जेता सिंह, निदेशक, तपोवर्धन प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र, भागलपुर
हर व्यक्ति सोच लें कि पॉलीथिन का इस्तेमाल नहीं करेंगे, तो पर्यावरण की सुरक्षा खुद हो जायेगी. यह बात सामान्य लग सकती है, लेकिन महत्वपूर्ण है कि लिखो-फेको कलम से पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है. ऐसी चीजों का विकल्प चुनें और कोशिश करें कि इको-फ्रेंडली वस्तुओं का इस्तेमाल हो.
डॉ संजय झा, वरिष्ठ कलाकार
कीटनाशक रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल जितना कम हो, पर्यावरण उतना सुरक्षित हो सकेगा. पानी बचाने के लिए लोगों को जागरूक होना होगा. इसकी वजह यह है कि आनेवाले समय में वही देश सर्वाधिक अमीर कहलायेगा, जिसके पास सर्वाधिक शुद्ध जल की उपलब्धता होगी.
राहुल कुमार, छात्र, टीएमबीयू
सब्जी मंडियों में पॉलीथिन की सर्वाधिक खपत होती है. इस पर प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत है. शहरी क्षेत्रों में डस्टबीन का इस्तेमाल ढंग से नहीं होने से भी प्रदूषण की समस्या होती है. हर घर जल-नल योजना के पानी की अनवरत बर्बादी पर रोक लगाने के लिए काम करने की जरूरत है.
संजीव कुमार दीपू, वरिष्ठ रंगकर्मी, इप्टा
प्रकृति कभी किसी का अहित नहीं करती है. यह सिर्फ देना जानती है. प्रकृति से जुड़कर कैंसर के मरीज तेजी से ठीक होते हैं, लेकिन इन बातों के प्रति लोगों को जागरूक करने की जरूरत है. हमें यह जानना चाहिए कि बंद पैकेट के भोजन से रोग और अंकुरित अनाज से स्वास्थ्य लाभ होता है.
डॉ देवेंद्र गुप्त, चिकित्सक, आयुर्वेद सह प्राकृतिक चिकित्सा
कंक्रीट के महल बन रहे हैं. इससे प्रकृति को नुकसान हो रहा है, लेकिन प्रकृति की सुरक्षा के लिए अपने-अपने घर में लोग वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम डेवलप नहीं करते. यह कतई ठीक नहीं है. इसे डेवलप करें. जितना संभव हो, पौधे लगायें. भरपूर कोशिश करें उन पौधों को बचाने की.
सुनील अग्रवाल, सचिव, मंदार नेचर क्लब
प्रदूषण से होनेवाली मौतों में भारत का आंकड़ा काफी निराशाजनक है. आज के युवक की मौत हार्ट अटैक से हो रही है. हमलोग विभिन्न कॉरपोरेट व स्थानीय संस्थाओं की मदद से प्रदूषण से गंगा को बचाने के लिए पटना से हुगली तक अभियान शुरू करेंगे. खुद को जीवित रखना है, तो पेड़ लगाना ही होगा.
डॉ केडी प्रभात, प्राचार्य, महादेव सिंह कॉलेज
मैं मंदार नेचर क्लब के साथ जुड़ पिछले 15 वर्षों से पॉलीथिन के खिलाफ अभियान चला रहा हूं. सभी लोग अपने-अपने स्तर से इस तरह का प्रयास जरूर करें. बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ प्रकृति की महत्ता बताने के लिए वन क्षेत्र व नदियों के तट पर लेकर जायें. उन्हें इसकी जानकारी दें.
डॉ डीएन चौधरी, शिक्षक, पीजी जूलॉजी विभाग, टीएमबीयू
भूगर्भिक जलस्तर तेजी से गिर रहा है. ऐसी स्थिति में अंडर ग्राउंड वाटर लेना बंद करना होगा. नदियों के पानी का इस्तेमाल बढ़ाना होगा. गंगा एक्शन प्लान चल रहा है, लेकिन चंपा नदी मर रही है. प्लास्टिक की बोतल में पानी पीना हर कोई बंद कर दें. हमने प्लास्टिक फ्री भागलपुर बनाने का संकल्प लिया है.
देवाशीष बनर्जी, बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर, यस फुल एजेंसी
Posted By: Thakur Shaktilochan