Bhikhari Thakur की जयंती पर विशेष: एक आम आदमी जिसने भोजपुरी को बना दिया खास, मगर इतिहास के पन्नों में सिमटती जा रही है विरासत
Bhikhari Thakur jayanti: भोजपुरी माटी और भोजपुरी अस्मिता के प्रतीक भिखारी ठाकुर भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाते हैं. भोजपुरी के शेक्सपीयर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर आज इतिहास के पन्नों में सिमटते नजर आ रहे हैं. कभी समाज को आईना दिखाने वाली रचनाएं लिखने वाले लोककवि की रचनाएं और उसकी प्रासंगिकता आज संघर्ष के दौर में खड़ी है. अपनी जमीन और अपनी जमीन की सांस्कृतिक और सामाजिक परम्पराओं तथा राग-विराग की जितनी समझ भिखारी ठाकुर को थी, उतनी किसी अन्य किसी भोजपुरी कवि में दुर्लभ है.
Bhikhari Thakur jayanti: भोजपुरी माटी और भोजपुरी अस्मिता के प्रतीक भिखारी ठाकुर भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाते हैं. भोजपुरी के शेक्सपीयर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर आज इतिहास के पन्नों में सिमटते नजर आ रहे हैं. कभी समाज को आईना दिखाने वाली रचनाएं लिखने वाले लोककवि की रचनाएं और उसकी प्रासंगिकता आज संघर्ष के दौर में खड़ी है. अपनी जमीन और अपनी जमीन की सांस्कृतिक और सामाजिक परम्पराओं तथा राग-विराग की जितनी समझ भिखारी ठाकुर को थी, उतनी किसी अन्य किसी भोजपुरी कवि में दुर्लभ है.
अपनी कला और रचनाओं के माध्यम से समाज की कुरीतियों पर कड़ा प्रहार करने वाले भिखारी ठाकुर एक महान क्रांतिकारी थे. लेकिन आज उन्हें केवल उनकी जयंती पर फूलमालाओं और संवेदना भरे भाषणों से याद किया जाता है. बाबा भिखारी ठाकुर का आज जन्मदिन है. 18 दिसंबर 1887 को छपरा के कुतुबपुर दियारा गांव में एक निम्नवर्गीय नाई परिवार में जन्म लेने वाले भिखारी ठाकुर ने विमुख होती भोजपुरी संस्कृति को नया जीवन दिया.
भोजपुरी के नाम पर सस्ता मनोरंजन परोसने की परंपरा भी उतनी ही पुरानी है, जितना भोजपुरी का इतिहास.उन्होंने भोजपुरी संस्कृति को सामाजिक सरोकारों के साथ ऐसा पिरोया कि अभिव्यक्ति की एक धारा भिखारी शैली जानी जाने लगी. आज भी सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार का सशक्त मंच बन कर जहां-तहां भिखारी ठाकुर के नाटकों की गूंज सुनाई पड़ ही जाती है.
बाबा भिखारी ठाकुर लोक कलाकार ही नहीं थे, बल्कि जीवन भर सामाजिक कुरीतियों और बुराइयों के खिलाफ कई स्तरों पर जूझते रहे. उनके अभिनय और निर्देशन में बनी भोजपुरी फिल्म ‘बिदेसिया’ आज भी लाखों-करोड़ों दर्शकों के बीच पहले जितनी ही लोकप्रिय है. उनके निर्देशन में भोजपुरी के नाटक ‘बेटी बेचवा’, ‘गबर घिचोर’, ‘बेटी वियोग’ का आज भी भोजपुरी अंचल में मंचन होता रहता है.
इन नाटकों और फिल्मों के माध्यम से भिखारी ठाकुर ने सामाजिक सुधार की दिशा में अदभुत पहल की.10 जुलाई 1971 को 84 साल की उम्र में भोजपुरी भाषा के सबसे बड़े कलाकार का निधन हो गया. भिखारी ठाकुर हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनके गाए गीत आज भी गूंज रहे हैं.
Posted By: utpal kant