आखिर एक चाय वाले से क्यों डरती है भोजपुर जिले की पुलिस, जानकर हो जायेंगे हैरान, पढ़ें

पुष्यमित्र भोजपुर : यह बड़ी दिलचस्प है. जहां एक चाय वाले को लोगों ने देश का पीएम बना दिया है, वहीं एक दूसरे चाय वाले को अपने ही शहर से अपनी चाय की दुकान को समेटना पड़ा. क्योंकि जिले की पुलिस का कहना था कि आपकी चाय की दुकान की वजह से शहर की कानून […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 3, 2017 4:21 PM

पुष्यमित्र

भोजपुर : यह बड़ी दिलचस्प है. जहां एक चाय वाले को लोगों ने देश का पीएम बना दिया है, वहीं एक दूसरे चाय वाले को अपने ही शहर से अपनी चाय की दुकान को समेटना पड़ा. क्योंकि जिले की पुलिस का कहना था कि आपकी चाय की दुकान की वजह से शहर की कानून व्यवस्था को खतरा उत्पन्न हो जाता है. साल 2014 में जब कथित चाय वाले मोदी देश के पीएम बने, उसी साल से आरा शहर के इस चाय वाले की दुकान पुलिस प्रशासन ने बंद करानी शुरू कर दी. चौथी बार जब उसकी दुकान बंद करायी गयी तो थक हार कर वह पटना आ गया और मौर्यालोक में अपनी दुकान चलाने लगा. यह कहानी आरा शहर के मनोहर लाल श्रीवास्तव की है जो मुन्ना भैया के नाम से पूरे शहर में मशहूर हैं.

आरा में थी दुकान

मुन्ना भैया से मेरी मुलाकात पिछले साल सितंबर महीने में हुई थी, जब मैं एक खबर के सिलसिले में आरा गया हुआ था. मुलाकात आरा शहर के हमारे मित्र आशुतोष कुमार पांडेय जी के सौजन्य से हुई थी. उनसे मिलकर लगा कि क्या सचमुच ऐसे भी लोग इस दुनिया में बचे हैं. दर्शनशास्त्र में एमए कर चुके मुन्ना जी अपनी कहानी तो दिलचस्प है ही, सबसे लाजवाब है उनकी चाय दुकान की कथा, जो न दुकान थी, न गुमटी. वे अपने साथियों के साथ चाय से भरी एक केटली लेकर एक पत्थर पर बैठ जाते थे. और उनके बैठते ही वह भीड़ उमड़ती थी कि रास्ता जाम हो जाता था.

आरा में बेचते थे चाय

मुन्ना जी की दुकान शहर फायर स्टेशन के पास लगा करती थी. यह ऐसी जगह थी, जहां आसपास कई बड़े सरकारी दफ्तर थे और बड़ी संख्या में लोगों का आना जाना हुआ करता था. मिट्टी के कुल्हड़ में बिकने वाली उनकी चाय की दीवानगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे रोज लगभग 10 हजार रुपये की चाय बेच डालते थे. वह भी सुबह के 5 बजे से 10 बजे के बीच ही. भीड़ इतनी होती थी कि उन्हें दस लोगों को काम पर रखना पड़ता था. उनकी टीम भी कमाल थी. कोई थियेटर कर्मी तो कोई कोचिंग संचालक, उनकी टीम का एक सदस्य रिक्शाचालक भी था. ये सभी लोग यहां पार्ट टाइम काम करते थे और हर कोई महीने में पांच से छह हजार कमा ही लेता था.

फकीर जैसे दिखते हैं मुन्ना

किसी फकीर की तरह लंबी दाढ़ी रखने वाले मुन्ना जी ने उस मुलाकात में मुझसे हंसते हुए कहा, 2014 के लोकसभा चुनाव ने एक चाय वाले को पीएम बना दिया और हमारे जीवन में बेरोजगारी का दौर शुरू हो गयी. चुनाव के दौरान किम शर्मा यहां एसपी बन कर आयीं थीं. उन्होंने ही सबसे पहले हमारी दुकान को बंद कराया. हालांकि उनके जाने के बाद फिर दुकान खुल गयी, मगर 2014 के आखिर में एसपी राजेश कुमार ने फिर इसे बंद करा दिया. तब दुकान दो महीने बंद रही. फिर खुली तो 2015 में एक बार फिर इसे बंद करा दिया गया. इसके बाद मैंने सूर्यास्त के बाद चाय बेचना बंद कर दिया. ऑफिस खुलने का वक्त होता मैं अपनी दुकान बंद कर लेता. पता नहीं फिर भी हमारी दुकान से प्रशासन को क्या परेशानी हुई कि फिर से दुकान बंद करा दिया गया. इस बार 18 सितंबर से दुकान बंद है.

पुलिस डरती है

वे कहने लगे, एसपी साहब कह रहे हैं कि कहीं और दुकान कर लो. मगर कैसे कहीं और कर लें. मेरे साथ दस लोग हैं, उनका भी तो सोचना पड़ता है. यहां पास में कलेक्टेरियेट है, पुलिस विभाग का दफ्तर है, पास में ही कोर्ट है. तीनों जगह पहुंचने वाले लोग यहां पहुंचते हैं. दूसरी जगह यह सब कहां हो पायेगा. अगर आमदनी कम होगी तो अपने साथ के लोगों को पैसे कहां से देंगे. उन्होंने एसपी, भोजपुर को आवेदन लिख कर दिया और दुकान खुला रखने के लिए आदेश मांगा. उन्होंने कहा कि जिला मुख्यालय के उच्च पदाधिकारी भी हमारी चाय के शौकीन हैं. आपसी बातचीत में सभी भरोसा भी दिलाते हैं कि दुकान खुल जायेगी. मगर उस बार दुकान खुली नहीं.

एमए फिलॉसफी कर चुके मुन्ना जी

मुन्ना जी की अपनी कहानी भी कम रोचक नहीं है. मगध विवि से एमए फिलॉसफी कर चुके मुन्ना जी अपने बैच के टॉपरों में से एक रहे हैं. पढ़ाई के बाद तय कर लिया कि नौकरी नहीं करेंगे, कुछ ऐसा करेंगे कि दूसरों को नौकरी दे सकें. पहले बॉल पेन रिफिल का निर्माण शुरू किया, वह नहीं चला तो कोचिंग खोलने का मन बना लिया. उसके लिए पैसे नहीं जुटे तो एक दिन इसी तरह चाय बेचना शुरू कर दिया. उन्होंने बताया कि 2010 से चाय बेच रहे हूं. 25 जुलाई को वेद व्यास जयंती के दिन यह काम शुरू किया था. काम जैसा भी हो मगर 10 लोगों को रोजगार देने का सपना तो पूरा हुआ है.

घर से अलग रहते हैं मुन्ना

मुन्ना जी के पिता एक बैंक में अधिकारी रहे हैं, उनका छोटा भाई आइआइटी इंजीनियर है. मगर अक्खर स्वभाव की वजह से उनकी अपने घर वालों से पटी नहीं. एक रोज घर छोड़ कर निकल लिये. वे इसे “महाभिनिष्क्रमण” का नाम देते हैं. उनकी लंबी दाढ़ी और जटाजूट वाले बाल देख कर कोई नहीं समझ सकता कि वे कभी मध्यम वर्गीय पारिवारिक जीवन जी चुके हैं. उन्होंने विवाह नहीं किया है, कोई घर नहीं है. आरा में रहते थे तो रात को फायर स्टेशन के बरामदे पर ही सो जाते थे. हालांकि उनके पास कभी पैसों की कमी नहीं रही. मुन्ना जी कहते हैं 2014 के पहले तो उनके पास हमेशा लाख-दो लाख रहते थे. अब दुकान अक्सर बंद होने लगी तो पैसों का अभाव हो गया. उन्होंने अपने पैसे से फायर स्टेशन के बाहर एक पीपल के पेड़ को घेर कर लोगों के बैठने के लिए बरामदा बनवा दिया था. एक लोहे के चदरे से बना घर बनवाया जिसमें उनके मिट्टी के कुल्हड़ और गैस के चार चूल्हे रखे रहते थे.

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