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देखा करीब से कुदरत का कहर

– तबाही का मंजर आंखों में नाच रहा है. यकीन नहीं हो रहा है कि जिंदा वापस आ गये. तेज बारिश और नदी का रौद्र रूप देख कर सभी सुरक्षित स्थान तलाशने लगे थे. होटल और गेस्ट हाउस में लोग छुपने लग़े बढ़ी भीड़ को देख होटल और गेस्ट हाउस के कर्मी वहां खड़े होने […]

– तबाही का मंजर आंखों में नाच रहा है. यकीन नहीं हो रहा है कि जिंदा वापस आ गये. तेज बारिश और नदी का रौद्र रूप देख कर सभी सुरक्षित स्थान तलाशने लगे थे. होटल और गेस्ट हाउस में लोग छुपने लग़े बढ़ी भीड़ को देख होटल और गेस्ट हाउस के कर्मी वहां खड़े होने के लिए भी 50 से 200 रुपये की वसूली की. हम लोग भीड़ को देख पहाड़ के ऊपर चड़ गये और एक गुफा का सहारा लिया. चार दिनों तक कुदरत का कहर करीब से देखा. बाहर निकला, तो न होटल नजर आया, न कोई लोग. हर तरफ तबाही का मंजर.. –

।। संतोष कुमार ।।
पीरो : उत्तराखंड के केदारनाथ और आसपास के इलाके में हुए जल प्रलय के बीच से किस्मत के सहारे पीरो निवासी 55 वर्षीय शिक्षक शिवशंकर पांडेय और उनकी पत्नी गुंजरावती देवी सुरक्षित लौट आये हैं. इनके साथ सुखरौली निवासी उपेंद्र कुमार(शिक्षक), पीटरो निवासी गणोश साह(शिक्षक) और उनकी पत्नी सीता देवी, चौबे के छावनी निवासी सतीश तिवारी(शिक्षक) और अगिआंव बाजर निवासी वासुदेव साह व उनकी पत्नी देवंती देवी भी सुरक्षित अपने घर लौट आये हैं.

इस दल में शामिल अगिआंव बाजार निवासी शिक्षक विश्वनाथ प्रसाद के माता और पिता देहरादून और ऋषिकेष के अस्पताल में मामूली इलाज के बाद अपने घर लौट रहे हैं. मौत के मुंह से लौट कर आये इन लोगों के परिजनों के चेहरे पर कई दिनों बाद खुशी देखने को मिल रही है.

अपनी आंखों से मौत का मंजर देखनेवाले लोगों के आखों में अभी भी खौफ दिखाई दे रहा है. हालांकि मौत के मुंह से बच कर वापस लौटने पर ये लोग भगवान को धन्यवाद भी दे रहे हैं.

* गुफा में गुजारीं चार रातें
शिक्षक शिवशंकर पांडेय और उनकी पत्नी ने आंखों देखी त्रासदी बयान करते हुए बताया कि पीरो से उन लोगों का समूह 6 जून को केदारनाथ की यात्रा के लिए रवाना हुआ था. उनके दल में कुल 11 लोग थे. इनमें अधिकतर शिक्षक और उनके परिजन शामिल थ़े 15 जून को वे लोग केदारनाथ पहुंच़े पूजा -अर्चना करने के बाद उसी दिन शाम को वे लोग रामबाड़ा के लिए निकल गय़े 16 जून की सुबह रामबाड़ा पहुंचे और मंदिर में पूजा -अर्चना की.

16 जून की शाम जब वे लो रामबाड़ा में ही थे कि तभी प्रलय की शुरुआत हो गयी. काफी तेज बारिश और नदी का रौद्र रूप देख कर वहां मौजूद लोग भयभीत हो गये और सुरक्षित स्थान तलाशने लग़े इस दौरान वहां मौजूद होटल और गेस्ट हाउस में लोग छुपने लग़े शिवशंकर पांडेय के अनुसार लोगों की भीड़ को देख होटल और गेस्ट हाउस के कर्मी वहां खड़े होने के लिए भी लोगों से 50 से 200 की वसूली करने लग़े होटल और दुकानों में लोगों के हुजूम को देख कर हमलोग पहाड़ के ऊपर चड़ गये और एक गुफा में शरण ले ली.

उस गुफा में हमारे दल के अलावा भी काफी लोग शरण लिये हुए थ़े गुफा के अंदर होने के बावजूद हम लोगों ने प्रकृति के कहर को साफ अनुभव किया. चार दिन और चार रात हमलोग उसी गुफा में भूखे और प्यासे रह़े इस दौरान किसी के पास बिस्कुट वगैरह जो भी था उसी में से थोड़ा -थोड़ा खाकर सब लोग अपने आप को जिंदा रखने का प्रयास कर रहे थ़े

* सब कुछ हो गया तबाह
चार दिन बाद जब भारतीय सेना के जवान उनके पास पहुंचे और हम लोगों को सुरक्षित निकालने का अभियान शुरू किया. सेना की देखरेख में जब हम लोग गुफा से बाहर निकले तो रामबाड़ा में महाविनाश का खैफनाक मंजर अपनी आखों से देखा.

वहां मौजूद होटल, दुकान और गेस्ट हाउस जहां चार दिन पूर्व हमलोग शरण लेने की कोशिश कर रहे थे. वे सभी पूरी तरह तबाह हो चुके थ़े इन होटलों और गेस्ट हाउस में शरण लेनेवाले हजारों लोगों का भी कहीं अता -पता नहीं था. उफनती नदी में अभी भी कई लाशें तैरती दिखाई दे रही थी. लौटने के दौरान रास्ते में भी जगह -जगह शव दिखाई दे रहे थ़े

* सेना के बल पर जिंदा लौटे
शिवशंकर पांडेय ने बताया कि महाप्रलय के बाद वहां जिस तरह के हालात हैं, उसमें आम लोगों के अपने बल पर जिंदा लौटने की बात सोचना भी बेमतलब है. अगर सेना के जवान नहीं होते, तो हम लोगों में से कोई जिंदा वापस नहीं लौटता.

रामबाड़ा में सेना के जवानों ने नदी पर रोपवे बना कर सभी लोगों को बाहर निकाला और सीतापुर ले आय़े रात भर वहीं रूकने के बाद 22 जून को पहाड़ों के बीच रास्ता बनाते हुए सोन प्रयाग पहुंच़े वहां से 23 जून को सेना की देखरेख में सभी को गुप्तकाशी पहुंचाया गया, जहां से सरकारी वाहन द्वारा हम लोग ऋषिकेश पहुंच़े ऋषिकेश से ट्रेन पर सवार होकर अपने घर के लिए रवाना हुए़

* 50 रुपये में मिली रोटी
इतनी बड़ी त्रासदी के बावजूद कई स्थानों पर खाने -पीने का सामान बेचने के नाम पर लूट मची हुई थी. शिवशंकर पांडेय ने बताया कि गुप्तकाशी में 50 रुपये की रोटी खरीद कर हम लोगों को खानी पड़ी. हालांकि वहां कैंप में मुफ्त भोजन की व्यवस्था भी की गयी थी. गुप्त काशी से ऋषिकेश जाने के लिए सरकारी स्तर पर मुफ्त वाहन की व्यवस्था थी.

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