आरा में अपहरण के बाद हत्या का मामला
आरा : तदर्थ न्यायालय पांच के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश नजरे इमाम अंसारी ने अपहरण के बाद हत्या करने व साक्ष्य मिटाने के एक मामले के दो अलग-अलग मुकदमों में दो भाइयों समेत पांच अभियुक्तों को फांसी की सजा सुनायी. साथ ही जुर्माना भी किया गया है. 18 अप्रैल को दोनों मुकदमों का एक साथ फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने पांचों को दोषी करार दिया था.
कोर्ट ने सजा के बिंदु पर सुनवाई के दौरान लोक अभियोजक उदय नारायण प्रसाद, अधिवक्ता भुनेश्वर तिवारी व एपीपी मनन सिंह ने कहा कि मृतक के दोस्तों ने उससे लाखों रुपये लिये थे.
एक दोस्त अजरुन चौरसिया घर से बुला कर ले गया था. लोक अभियोजक श्री प्रसाद ने कहा कि हत्या के साथ-साथ इनसानियत व विश्वास की भी हत्या की गयी है. यह मामला रेयर ऑफ रेयरेस्ट का बनता है. इसलिए उन्हें फांसी की सजा दी जाये.
बचाव पक्ष के अधिवक्ता विष्णुधर पांडेय, रामसुरेश सिंह ने कहा कि यह मामला रेयर ऑफ रेयरेस्ट का नहीं है. कम-से-कम सजा दी जाये. सुनवाई के बाद अपर न्यायाधीश ने अपहरण कर हत्या करने व साक्ष्य मिटाने का दोषी पाते हुए अजरुन चौरसिया, विनोद चौरसिया, अशोक प्रसाद उर्फ नागा, निशु कुमार व तारकेश्वर प्रसाद को फांसी व जुर्माना की सजा सुनायी.
क्या है मामला
अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता नरेंद्र कुमार त्रिवेदी ने बताया कि नवादा थाने के हरि जी के हाता निवासी सत्येंद्र सिंह के पुत्र अमृत राज तोमर उर्फ पिंटू एक निजी स्कूल का संचालक था. उसकी हत्या आठ अगस्त, 2010 की रात में कर दी गयी थी. मृतक के मामा अनिल सिंह ने प्राथमिकी दर्ज करायी थी.
मृतक के पिता सत्येंद्र सिंह ने कहा था कि आठ अगस्त को करीब छह बजे शाम को बिचली रोड निवासी अजरुन चौरसिया उनके घर से बेटे पिंटू को अपने साथ मोटरसाइकिल ले गया था. पूछने पर उसने बताया कि दो घंटे में लौट आयेंगे. रात 8:30 बजे तक नहीं लौटा, तो बेटे के मोबाइल पर फोन किया, पर वह स्विच ऑफ मिला. इसके बाद सभी दोस्तों के भी मोबाइल स्विच ऑफ मिले.
आशंका होने के बाद थाने को सूचित किया. उसी रात बेटे को शाहपुर थाना अंतर्गत नावाडीह गांव के बगीचे में हत्या करने के बाद उसको तेजाब से जला दिया गया था. कोर्ट में सेशन ट्रायल 434/10 में चार अभियुक्तों के खिलाफ 7 जनवरी, 2011 को आरोप का गठन किया गया, जबकि बयान 2 मार्च, 2012 को हुआ था. अभियोजन पक्ष से 19 गवाहों की गवाही हुई थी.
सेशन ट्रायल 123/11 में अभियुक्त तारकेश्वर प्रसाद के खिलाफ 14 जून, 2011 को आरोप गठित किया गया था और बयान 2 मार्च, 2012 को हुआ था.