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शिक्षकों का आंदोलन 18 से, तैयारी तेज

आरा़ : बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ गोप गुट ने अपनी मांगों के समर्थन में 18 जनवरी से शुरू चरणबद्ध आंदोलन को सफल बनाने के लिए स्कूलों में शिक्षकों से संपर्क अभियान चलाया़ नेताओं ने उक्त दिन से आरा सदर बीडीओ और आरा प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी उत्तरी व दक्षिणी के खिलाफ चलनेवाले आंदोलन की जानकारी […]

आरा़ : बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ गोप गुट ने अपनी मांगों के समर्थन में 18 जनवरी से शुरू चरणबद्ध आंदोलन को सफल बनाने के लिए स्कूलों में शिक्षकों से संपर्क अभियान चलाया़ नेताओं ने उक्त दिन से आरा सदर बीडीओ और आरा प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी उत्तरी व दक्षिणी के खिलाफ चलनेवाले आंदोलन की जानकारी दी़

बताया गया कि 18 को प्रदर्शन एवं धरना, 19 व 20 जनवरी को काला बिल्ला लगाकर पठन-पाठन, 21-22 जनवरी को मुंह पर काली पट्टी बांधकर विद्यालय में मौन रहना, 23 जनवरी को आरा शहर में प्रदर्शन व सभा, 27 जनवरी से जिला पदाधिकारी के समक्ष आमरण अनशन किया जायेगा़ अवकाश की स्थिति में बदलाव करने की भी बातें बतायी़ संपर्क अभियान में धर्म कुमार राम, केदारनाथ सिंह, बिरेंद्र मिश्र, अरविंद कुमार, सुनील सिंह, संजय सिंह, दशरथ प्रसाद, भुवनेश्वर राम आदि शामिल थे़

नहीं ले रहे मरीजों की सुध
सदर अस्पताल में मरीजों की सुध लेने वाला कोई नहीं. इलाज तो दूर कोई सीधे मुंह बात तक नहीं करता. न डॉक्टर और न ही स्वास्थ्यकर्मी. मरीज व उनके परिजनों के हाल का कोई पूछनहार नहीं है. कुव्यवस्था का आलम ऐसा कि बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बड़ी संख्या में गांव-देहात से गरीब-गुरबा यहां इलाज कराने पहुंचते हैं,
लेकिन जरूरी दवाएं भी उन्हें बाहर से खरीदकर लानी पड़ रही हैं. मामूली रोगों के इलाज के लिए भरती कराये गये मरीज संवेदनशीलता के मुहताज बने हैं. मरीज व उनके परिजन का कहना है कि वार्ड में विजिट के लिए डॉक्टर नहीं आते, जबकि स्वास्थ्यकर्मी अपनी जवाबदेही से मुंह मोड़ रहे हैं. वर्तमान में दर्द से कराहते एक मरीज को टूटे बेड पर सुलाने से उसका पैर टूट गया. वह अपनी लाचारी के लिए पूरे दिन स्वास्थ्य महकमे को कोस रहा है.
आरा :मेडिकल वार्ड में दर्द से कराहते ललन सिंह अब कभी इलाज कराने सदर अस्पताल नहीं आयेगा. पिछले 10 जनवरी को उनकी पेट में अचानक दर्द होने पर इलाज के लिए सदर अस्पताल आया था़ सोचा था कि इलाज के बाद दर्द ठीक हो जायेगा, लेकिन अब पेट के दर्द के साथ पैर भी टूट गया़ और यह सब हुआ अस्पताल कर्मचारियों की लापरवाही से़ जानकारी के अनुसार पेट में दर्द होने की शिकायत करने के बाद उसे अस्पताल में भरती कर दिया गया था़ लेकिन बेड खराब होने के कारण उस पर सोने में काफी दिक्कत होती थी़ किसी तरह सोने की कोशिश में ललन सिंह बेड से नीचे गिर पड़ा और उसका पैर टूट गया.
हालांकि, यह हाल केवल एक ललन का नहीं हैं. ऐसे कई मरीज हैं, जो अस्पताल की लचर व्यवस्था से परेशान हैं. फरहदा गांव की राज कुमारी देवी को अचानक पेट फुलने की शिकायत के बाद उसे 6 जनवरी को सदर अस्पताल में इलाज के लिए भरती कराया गया था़ अब तक उसकी किसी प्रकार की जांच तक नहीं की गयी है, ताकि यह पता चल सके कि उसकी पेट क्यों फुल गया है़ उसकी परची पर ऐसी दवा की नाम लिखी गयी,जो बाहर की दुकानों पर मिलती है. वैसे हसन बाजार स्थित सहेजनी गांव निवासी विंदु देवी इस मामले में खुशनसीब है कि भरती होने के बाद यहां उसकी पथरी का ऑपरेशन हो गया.
बाहर से खरीदनी पड़ती है दवा :
सदर अस्पताल के सीएस बार-बार कह रहे हैं कि कुछ को छोड़ कर सभी तरह की दवाएं सदर अस्पताल में मौजूद है़ं लेकिन, हकीकत यह है कि मरीज को अस्पताल से दवा नहीं मिलती है. डॉक्टर जैसे ही दवा लिखते हैं, तभी वहां मौजूद दलाल पुर्जा देख कर बाहर से दवा लाने की बात मरीज के परिजनों को बता देते हैं. अस्थमा की बीमारी का इलाज कराने आये जोरवरपुर मिल्की गांव निवासी सत्यनारायण यादव ने बताया कि सदर अस्पताल के चिकित्सक की लिखी गयी एक भी दवा यहां के काउंटर पर नहीं मिली.सदर अस्पताल के सर्जिकल वार्ड में एक मरीज लावारिस की तरह पड़ा है,
पर उसे देखने के लिए न कोई डॉक्टर जा रहे हैं और नहीं कोई कर्मचारी़ ऐसे में इलाज के अभाव में मरीज के शरीर से बदबू आ रही है. हालत यह है कि अन्य मरीज उस वार्ड में जाना नहीं चाहते हैं.मानवीय संवेदनाओं को झकझोरते इस परिदृश्य को देखकर कई मरीजों व परिजनों ने तो मामूली बीमारी में भी यहां इलाज के लिए आने से बचने की सलाह दी.

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