प्रेम में हो समर्पण की भावना

धर्म ग्रंथों के स्वाध्याय से आती है जीने की कला : जीयर स्वामी आरा : प्रेम नि:स्वार्थ होनी चाहिये. इसमें किसी तरह की कामना नहीं हो, बल्कि पूर्ण समर्पण की भावना होनी चाहिये. उपरोक्त बातें श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने स्थानीय मारुति नगर में श्रीमद्भागवद कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ में श्रद्धालुओं को संबोधित करते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 28, 2016 8:20 AM
धर्म ग्रंथों के स्वाध्याय से आती है जीने की कला : जीयर स्वामी
आरा : प्रेम नि:स्वार्थ होनी चाहिये. इसमें किसी तरह की कामना नहीं हो, बल्कि पूर्ण समर्पण की भावना होनी चाहिये. उपरोक्त बातें श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने स्थानीय मारुति नगर में श्रीमद्भागवद कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही. उन्होंने कहा कि हम जिससे प्रेम करते हैं, उसकी अनुकूलता के अनुसार अपना आचरण प्रदर्शित करना चाहिये. प्रेम का सबसे अच्छा उदाहरण भरत जी हैं, जिन्होंने भगवान राम के अनुकूल अपना जीवन समर्पित कर दिया.
उन्होंने कहा कि जीवन में तर्क से बचना चाहिए, क्योंकि तर्क की कोई प्रतिष्ठा नहीं होती. स्वामी जी ने कहा कि स्त्री-पुरुष को तीन ऋण से ऊऋण होना चाहिये. मातृ-पितृ ऋण से ऊऋण होने के लिए सदैव उनका आदर करते हुए उनके वचनों का कभी प्रतिकार नहीं करना चहिये.
ऋषि ऋण से उऋण होने के लिए धर्म ग्रंथों का स्वध्याय करना चाहिये, जो हमें जीवन में धर्म सम्मत जीने की कला सिखाता है. व्यक्ति के जीवन में इसका बहुत महत्व है. यह मानव और पशु के बीच को अंतराल समाप्त करता है. देव ऋण से उऋण होने की आवश्यकता बताते हुए स्वामी जी ने कहा कि दान करना चाहिये.
गरीबों की सहायता और कन्याओं की शादी आदि धर्मार्थ कार्य कर देव ऋण से उऋण हुआ जा सकता है. उन्होंने कहा कि धन के प्रति बहुत आशक्ति नहीं होनी चाहिये, क्योंकि लक्ष्मी चंचला होती है. श्री स्वामी ने कहा कि सच्ची श्रद्वा से की गयी प्रार्थना भगवान सहज भाव से स्वीकार करते हैं. मनुष्य को फल की चिंता किये बगैर अपना कर्म करना चाहिए.

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