बीजेपी से नाराज भूमिहारों ने कहा- ‘बाभन के चूड़ा, यादव के दही, दोनों मिली तब बिहार में होई सब सही’
बीजेपी के खिलाफ गोलबंद होने से पहले ही बिहार के भूमिहार बिखरने लगे हैं. अभी तक जो सूचना है उसके अनुसार बिहार के भूमिहार तीन गुटों में बंट गए हैं. दरअसल, समाज में श्रेय लेने के लिए होड़ मच गई है.
राजेश कुमार ओझा
बिहार में भूमिहार अब बीजेपी से आर- पार के मूड में हैं. कमल छोड़कर अब लालटेन थामने का मन बना लिया है. लेकिन, भूमिहारों में इस पर राजनीति तेज हो गई है. समाज में श्रेय लेने की होड़ मच गई है. भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच फाउंडेशन की रविवार को बैठक हुई. फाउंडेशन 3 मई को परशुराम जयंती मना रहा है. इसी प्रकार 8 मई को पूर्व मंत्री अजीत कुमार के नेतृत्व में एक सभा होनी है. पूर्व विधायक और बीजेपी नेता रामजतन सिन्हा गुट इस मामले पर मौन है. यह गुट वेट एंड वॉच की भूमिका में है.
इधर, भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच फाउंडेशन की ओर से 3 मई को आयोजित होने वाले परशुराम जयंती पर चुटकी लेते हुए बिहार विधान परिषद के सदस्य सच्चिदानंद राय कहते हैं कि यह कार्यक्रम जो लोग करवा रहे हैं, समाज उन्हें अपना नेता नहीं मानता है. वैसे यादव और भूमिहारों की दोस्ती की इस पहल के साथ बिहार में यादव और भूमिहार समाज के लोगों के बीच ‘बाभन के चूड़ा, यादव के दही, दोनों मिली तब बिहार में सब होई सही’ चर्चा शुरू हो गई है.
भूमिहार नेता और जहानाबाद के पूर्व सांसद अरुण कुमार कहते हैं कि अपने मान- सम्मान की रक्षा के लिए हम यादवों से दोस्ती कर रहे हैं. बीजेपी और जदयू में अब और अपमानित होकर नहीं रह सकते. मान- सम्मान के लिए जब हम लालू यादव के खिलाफ सड़क पर उतर सकते हैं, तो फिर अपने सम्मान के लिए बीजेपी का साथ क्यों नहीं छोड़ सकते. बीजेपी का साथ छोड़ने का दर्द है, क्योंकि बिहार में बीजेपी आज जो कुछ है, उसमें भूमिहारों का बड़ा योगदान है. भूमिहारों ने बीजेपी के लिए अपने सीने पर गोली भी खाई है. लेकिन, हम पीछे नहीं हटे और एक बड़ी इमारत बनायी. लेकिन, इमारत बनते ही हमें इससे बाहर कर दिया गया. हम इसे सहन नहीं करेंगे.
बीजेपी से क्यों नाराज हैं भूमिहार
बोचहां विधानसभा उपचुनाव के जो नतीजे सामने आये, उसके बाद बिहार में एक नई बहस शुरू हो गई. चुनाव परिणाम से ज्यादा बिहार में नई राजनीतिक गठबंधन की चर्चा तेज हो गई है. दरअसल, बिहार के भूमिहारों का आरोप है कि बीजेपी प्रदेश में हमारी उपेक्षा कर रही है. मान-सम्मान के लिए हम यहां आए थे. उस पर ही हमला शुरू हो गया. हमारे लोगों को किनारे करने के लिए सरकार और पार्टी में हमारी भागीदारी कम कर दी गई. हमारे लोगों को पार्टी के लोग हराने और टिकट काटना शुरू कर दिया. हमारी बातों को नजरअंदाज किया जाने लगा. हमने सरकार बनाने में अपनी सीने पर गोलियां खाई और सरकार हमें ही निशाने पर लेकर प्रताड़ित करने लगी. यह अपमान हम कब तक सहन करते. मजबूरी में हमने बीजेपी छोड़ने का फैसला किया.
बोचहां तो इसकी एक बानगी है. लोकसभा चुनाव में हम अपनी झांकी दिखायेंगे. बीजेपी के कोर वोटर रहे भूमिहारों ने बोचहां चुनाव में आरजेडी और मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी को मतदान कर बिहार में सियासी हलचलें तेज हो गई है. बीजेपी के सीनियर नेता रामजतन सिन्हा कहते हैं हम काफी दिनों से इसके लिए अपना मन बना रहे थे. वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव से ही इसकी शुरुआत हो गई थी. लेकिन, नतीजे पर हम नहीं पहुंचे थे. विधान परिषद चुनाव में जब बीजेपी ने समाज के प्रतिनिधियों को अपमानित करना शुरू किया, तो हमने भी अपने लिए एक नया रास्ता चुन लिया. इसके परिणाम सामने है.
दही-चूड़ा ने बीजेपी गुणा-गणित का किया गुड़-गोबर
भूमिहार नेता और पूर्व विधायक रामजतन सिन्हा कहते हैं कि बीजेपी सवर्ण वोटरों को अपनी बपौती समझ बैठे थे. उनके साथ वे बंधुआ मजदूर की तरह व्यवहार करना शुरु कर दिए थे. लेकिन, मुजफ्फरपुर में उनका यह भ्रम टूट गया. लगातार उपेक्षाओं से नाराज सवर्णों ने बीजेपी के राजनीति गुणा-गणित को तहस नहस कर दिया. बीजेपी के कोर सवर्ण वोटरों में ब्राह्मण, राजपूत और भूमिहार हैं. जिसका नेतृत्व भूमिहार समाज उस दौर से करता आ रहा है, जब बिहार में निजी सेनाएं होती थीं.
बिहार में इन तीनों समाजों का आंतरिक समन्वय लगभग चार दशक से ज्यादा पुराना है. ऐसे में अब बीजेपी के सामने दूसरी बड़ी चुनौती है कि भूमिहारों के पाला बदलने का असर ब्राह्मण और राजपूतों के वोट पर भी पड़ेगा. यह बीजेपी के लिए अलार्मिंग है. जबकि इससे तेजस्वी यादव खुश हैं. यही कारण है कि उपचुनाव के दौरान तेजस्वी मंच से सवर्णों और खास कर भूमिहारों से अमर पासवान को वोट करने की अपील किया. भूमिहार समाज तेजस्वी के इस अपील को निमंत्रण मान रहे हैं. तेजस्वी के अपील के बाद बिहार में भूमिहारों ने दही-चूड़ा के राजनीतिक गठजोड़ को मजबूत करने में लग गए हैं. इसके लिए वे बिहार के ब्राह्मण को भी अपने साथ मिलाने की तैयारी कर रहे हैं. दोनों समाज की इसको लेकर शीघ्र ही बैठक होने वाली है. इसके बाद भूमिहार सड़क पर बीजेपी के खिलाफ उतरेंगे.
बोचहां में भारी पड़े भूमिहार
बोचहां चुनाव में बीजेपी (26.98 फीसद) और वीआईपी (17.21 फीसद) वोट पड़े. इन दोनों के वोटों को जोड़ भी दिया जाए तो आरजेडी (44.19 फीसद) को चार फीसद वोट ज्यादा पड़े. बीजेपी को यही वोट प्रतिशत परेशान कर रहा है. वह समझ नहीं पा रही है कि उनके परंपरागत सवर्णों वोटर कैसे आरजेडी में चले गए. राज्य सभा सदस्य और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी इसपर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सवर्ण समाज के एक वर्ग का वोट खिसक जाना अप्रत्याशित था. इसके पीछे क्या नाराजगी थी, इस पर एनडीए अवश्य मंथन करेगा.
वरीय पत्रकार लव कुमार मिश्रा कहते हैं कि भूमिहार और यादव का एक होना बिहार में एक नई और मजबूत राजनीतिक समीकरण का अगाज है. जो कि बीजेपी के लिए घातक है. क्योंकि बिहार में सवर्ण और खास कर भूमिहार आरजेडी के कभी भी वोटर नहीं रहे. दोनों के संघर्ष काफी पुराने हैं. लालू राज में भूमिहारों ने ही यादवों को राजनीतिक आर्थिक और बाहुबल में चुनौती दी थी. इसकी वजह भी साफ है. दोनों समाज संख्या बल में लगभग बराबर है. दोनों ही राजनीतिक रूप से मजबूत हैं और दोनों ही के पास धनबल भी है. ऐसे में दोनों का समीकरण हर हाल में बीजेपी के लिए घातक साबित होने वाला है.