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सम्राट अशोक पर आपत्तिजनक बयान से गुस्से में बिहार, ललन सिंह बोले- दया प्रकाश से पद्मश्री वापस लें मोदी

भाजपा समर्थित नाटककार पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा के सम्राट अशोक की तुलना औरंगजेब से किए जाने से उपजा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है.

पटना. भाजपा समर्थित नाटककार पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा के सम्राट अशोक की तुलना औरंगजेब से किए जाने से उपजा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. कई विरोधी दलों ने दया सिन्हा के बयान पर आपत्ति जताते हुए भाजपा से कार्रवाई की मांग की है. इसके साथ ही भाजपा की सहयोगी दल भी इस मुद्दे पर दया प्रकाश को निशाने पर ले रहें हैं और पद्मश्री सम्मान वापस लेने की मांग कर रही है.

जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने बुधवार को कहा है कि सम्राट अशोक के बारे में अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करने वाले से पद्मश्री सम्मान वापस ले लेना चाहिए. इसके लिए उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पद्मश्री वापस लेने की मांग की है. ललन सिंह ने कहा है कि प्रियदर्शी सम्राट अशोक मौर्य बृहत और अखंड भारत के निर्माता थे. उनके बारे में अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल असहनीय है, अक्षम्य है. जो व्यक्ति ऐसा किया है वह विकृत विचारधारा से प्रेरित है.

मीडिया से बात करते हुए ललन सिंह ने कहा कि ऐसे व्यक्ति किसी सम्मान के लायक नहीं. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इस प्रकरण में सख्त कार्रवाई की मांग की है. उन्हौने राष्ट्रपति से अनुरोध किया है कि ऐसे बयान देने वाले व्यक्ति के मिले पद्मश्री और अन्य पुरस्कार रद्द की जाए.

वहीं जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी दया सिन्हा के बयान पर कड़ी आपत्ति जतायी है और भाजपा से ऐसे नेता पर कार्रवाई की मांग की है. बृहत अखंड भारत के निर्माता चक्रवर्ती सम्राट प्रियदर्शी अशोक महान के लिए एक पार्टी विशेष के पदाधिकारी द्वारा अभद्रतापूर्वक अपशब्दों का इस्तेमाल निंदनीय है. पार्टी और सरकार उस व्यक्ति के विरुद्ध कार्रवाई करे.

बताते चलें कि हिंदी साहित्य के इतिहास में पहली बार दयाप्रकाश सिन्हा को नाटक के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया है. यह पुरस्कार उनके नाटक ‘सम्राट अशोक’ के लिए दिया गया है. इस नाटक में दयाप्रकाश ने लिखा है कि सम्राट अशोक औरंगजेब की तरह ही थे. उन्होंने अपने भाई के साथ ही बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षुओं की हत्या करवाई थी. इसी तथ्य पर साहित्य जगत के साथ राजनीतिक दलों के बीच बवाल मचा हुआ है.

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