बिहार में जब चलता रहा अलग-अलग डॉन के नाम का सिक्का, मोकामा के 3 बाहुबली कैसे बने दिग्गज नेता? इतिहास जानिए…

बिहार में बाहुबली से नेता बने कुछ ऐसे चेहरे हैं जिनका इतिहास कुछ ऐसा रहा कि जब इनका समय आया तब इनके ही नाम का सिक्का चलता रहा. पटना से सटे मोकामा में कुछ बाहुबलियों का वर्चस्व रहा. ये नायक भी बने और खलनायक भी. जानिए इन चेहरों को..

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 30, 2023 6:57 AM
an image

ठाकुर शक्तिलोचन

बिहार में वर्ष 2023 के शुरुआती महीनों में ही बाहुबली नेता व पूर्व सांसद आनंद मोहन को लेकर हलचल तेज हो गयी. अप्रैल महीने में जब सरकार के द्वारा कानून में संसोधन किए जाने का लाभ आनंद मोहन को भी मिला और वो रिहा हुए तो बाहुबलियों को सरकार का संरक्षण एक सियासी मुद्दा बना और चर्चा का विषय बन गया. आनंद मोहन गोपालगंज के तत्कालीन डीएम की हत्या के दोषी पाए गए थे. बिहार में एक दौर ऐसा भी रहा जब बाहुबलियों की तूती बोलती थी. सबके अपने-अपने क्षेत्र थे और अधिकतर बाहुबलियों का एक पांव सियासी गलियारे में मजबूती से जमा था. आज बेगूसराय व मोकामा के कुछ बाहुबलियों के बारे में यहां जानिए, जिनके नाम का सिक्का कभी इलाकों में चलता था.

दिलीप सिंह का उदय

बात मोकामा की करें तो यहां हाल में ही संपन्न हुए उपचुनाव में बाहुबलियों की भिड़ंत चर्चे में रही. एक वो दौर भी था जब मोकामा में बाहुबली से नेता बने दबंग छवि के कुछ लोगों की तूती बोलती रही. ऐसा ही एक नाम रहा दिलीप सिंह का. दिलीप सिंह पटना से सटे गंगा किनारे के इलाके बाढ़ अंतर्गत लगमा गांव के रहने वाले थे और भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते थे. 80 के दशक में एक हथियार तस्कर था जिसका नाम कामदेव सिंह था. दिलीप सिंह के पास कई घोड़े थे और इन्हीं घोड़ों की जरुरत ने उन्हें कामदेव के नजदीक लाया. दिलीप सिंह उसके राइट हैंड हो गए और देखते ही देखते बड़े रंगदारों की सूची में गिने जाने लगे.

सियासत के मैदान में उतरे दिलीप सिंह

कामदेव सिंह की हत्या के बाद दिलीप सिंह ने उसकी कुर्सी पर कब्जा जमाया. समय बीता को कांग्रेस के श्याम सुंदर सिंह धीरज ने चुनाव जीतने के लिए दिलीप सिंह का भरपूर इस्तेमाल किया. लोग कहते हैं कि एकबार मंत्री बने श्याम सुंदर सिंह ने दिलीप सिंह को रात के अंधेरे में ही मिलने की सलाह दी और ये बात उसे चुभ गयी. उन्होंने इसका बदला श्याम सुंदर सिंह को करारी मात देकर लिया और लालू सरकार में मंत्री बने. दिलीप सिंह के ही छोटे भाई बाहुबली अनंत सिंह हुए जो आज भी सियासत में सक्रिय भूमिका निभाते हैं.

छोटे सरकार बने अनंत सिंह का उदय

दिलीप सिंह के ही छोटे भाई हुए अनंत सिंह. जिन्होंने अपने भाई बिरंची सिंह की हत्या का बदला लेने अपराध की दुनिया में बड़ा कदम उठाया. अपने भाई के हत्यारे को मारने नदी तैरकर पार किए और उसे मौत के घाट उतार दिया. अनंत सिंह के ऊपर हत्या का मुकदमा तब दर्ज हुआ था जब उनकी उम्र करीब 9 या 10 वर्ष होगी. अनंत सिंह का खौफ अब इलाके में हो चुका था. सरकारी ठेकेदारी को कब्जाने का भी कारोबार अनंत सिंह शुरू कर चुके थे.

अनंत सिंह की सियासी ताकत

नब्बे के दशक में राजद ही नहीं बल्कि नीतीश कुमार की भी नजर अनंत सिंह पर पड़ चुकी थी. सियासी नजदीकियां इस कदर बढ़ी कि 2004 में अनंत सिंह की कोठी पर अचानक एसटीएफ ने धावा बोला और मुठभेड़ हुआ. दोनों ओर से कई मौत हुई पर अनंत सिंह बच निकले. मोकामा में अनंत सिंह को छोटे सरकार के नाम से लोग जानते हैं. 2005 में जदयू की ओर से पहली बार टिकट लिए और चुनाव जीता. बाद में निर्दलीय और फिर राजद से भी टिकट लेकर चुनाव लड़े और जीते. 2019 में घर से AK-47 बरामदगी मामले में अनंत सिंह को सजा हुई और विधायकी चली गयी. लेकिन अपनी पत्नी को उन्होंने जीत दिला दी.

सूरजभान सिंह का उदय

मोकामा में ही एक और बाहुबली नेता का उदय हुआ और उसका नाम था सूरजभान सिंह. जो अभी भी राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते हैं और आज भी मोकामा में उनकी तूती बोलती है. मोकामा के एक गांव में जन्मे सूरजभान सिंह ने जब अपराध की दुनिया में कदम रखा तो सदमें में आकर उनके पिता ने गंगा में कूदकर जान दे दी. सूरजभान सिंह ने अपने पिता के ही मालिक से रंगदारी मांग ली थी. सूरजभान के बड़े भाई की भी मौत हो गयी. सूरजभान का परिवार उजड़ चुका था लेकिन उसने अपने कदम इस दलदल से वापस नहीं लिए. सूरजभान के गुरू दिलीप सिंह ही थे जिसके बारे में ऊपर आपने पढ़ा.

सूरजभान सिंह ने जब सियासी मैदान में रखा कदम

सूरजभान को दिलीप सिंह का दाहिना हाथ माना जाता था. जब दिलीप सिंह ने अपने ही गुरू श्याम सुंदर सिंह को हरा दिया तो दिलीप सिंह के ही गुट के सूरजभान को करीब खींचा. सूरजभान और दिलीप सिंह के रिश्ते में दरार आई और आगे चलकर वर्ष 2000 में सूरजभान सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़कर अपने ही गुरू दिलीप सिंह को हरा दिया.

सूरजभान का वर्चस्व

सूरजभान सिंह सांसद भी बने और लोकसभा गए. वहीं लालू राबड़ी सरकार में मंत्री रहे बृज बिहारी सिंह की हत्या, बेगूसराय के रामी सिंह और मोकामा के पार्षद अशोक सिंह की हत्या समेत अनेकों मामले उनके ऊपर दर्ज हुए और वो जेल गए. सूरजभान सिंह अभी भी मोकामा की राजनीति में सक्रिय हैं और उपचुनाव में उनकी भूमिका देखी गयी.

Exit mobile version