Bhikhari Thakur: ‘भिखारी होना बड़ी बात है.’ बिहार क्या देश की धरती पर अब शायद कोई भिखारी सा होगा. कई कारण है कि लोक गायक, संगीतकार और नाट्यकर्मी भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर कहा जाता है. उनके गीत सुनकर कभी भी बिहार के ग्रामीण इलाकों में कभी थके हारे मजदूरों के चेहरे पर रौनक आ जाती. उन्होंने सामाजिक समस्याओं और मु्द्दों पर आम बोलचाल की भाषा में गीत लिखे. उन्हें गाया और रंगमंच पर जीवंत करके लोगों के सामने पेश किया. आज इन्ही भोजपुरी के शेक्सपीयर की पुण्यतिथि है.
बिहार के सारण में भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसबंबर 1887 को हुआ. उन्होंने 10 जुलाई 1971 को अंतिम सांस ली. इस सार्थक लोक कलाकार को ‘भोजपुरी का शेक्सपीयर’ की उपाधी महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने दी. वो माटी से जुड़े कलाकार थे. जिनका नकल करने की कोशिश कई लोगों ने की. मगर, कामयाब नहीं हुए. उनकी मृत्यु के बाद वरिष्ठ लेखक संजीव ने भिखारी ठाकुर पर एक उपन्यास ‘सूत्रधार’ की रचना की. भिखारी ठाकुर विरह वेदना, बेटी विदाई और सामाजिक समस्याओं के ताने-बाने को लोक संगीत में पिरो देते थे. इससे आमलोग ऐसे बंध जाते कि बस भिखारी का गीत में उनके दिल में रह जाता.
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भिखारी ने समाज के नीचले और मध्य वर्ग के लोगों की समस्याओं पर सबसे ज्यादा लिखा. वो हमेशा सामाजिक मुद्दों में अपना संगीत ढूंढ लेते थे. भोजपुरी भाषा की मिठास को बरकरार रखते हुए उनसे बेहतर कोई गीत की रचना कर ही नहीं सकता. नाई समाज के गरीब परिवार में जन्में भिखारी ठाकुर का संगीत पढ़े लिखों के साथ अनपढ़ भी उनता ही रोचकता से सुनते. उनका ‘बेटी बेचवा’ नाम से ख्याती प्राप्त नाटक इतना लोकप्रिय हुआ कि लोगों ने कई दहेज लोभी दुल्हों को खदेड़ दिया.