आज (सोमवार)आने वाला बिहार बजट इस महीने में प्रस्तुत पांचवां नीतिगत दस्तावेज है, जिसका प्रभाव राज्य की आर्थिक स्थिति पर व्यापक होगा.
केंद्रीय आर्थिक सर्वेक्षण, केंद्रीय बजट, 15 वें केंद्रीय वित्त आयोग सिफारिश, बिहार के आर्थिक सर्वेक्षण में उपलब्ध आंकड़ों और नीतिगत घोषणाओं के संदर्भ में इस बजट को देखने की आवश्यकता है.
बिहार को विकास के पैमाने पर राष्ट्रीय औसत तक ले जाने की कोशिश की झलक इन्हीं पांच आर्थिक दस्तावेजों में निहित है. यहां ध्यान देने की बात है की देश के समग्र विकास के लिए बिहार का आर्थिक विकास का और तेज होना अत्यंत आवश्यक है.
एक आम समझ है कि बिहार का आर्थिक विकास मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है, लेकिन नीतिगत दस्तावेजों में संख्याओं से उभरने वाली वास्तविक तस्वीर अलग है.
बिहार के हाल ही में जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार, राज्य में लगभग 74 प्रतिशत श्रमिक अपनी आजीविका के लिए कृषि और संबद्ध गतिविधियों पर निर्भर हैं, जबकि राज्य के जीएसडीपी में इसका योगदान केवल 19.5 प्रतिशत है.
वहीं, मैन्युफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्रों का हिस्सा क्रमशः 20.3 प्रतिशत और 60.2 प्रतिशत है. साथ ही राज्य की अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र जिसमें कृषि और संबद्ध गतिविधियां शामिल हैं, की विकास दर 2019-20 में केवल 3.6 प्रतिशत ही रही है, जो की अन्य दो क्षेत्रों विनिर्माण और सेवाओं की तुलना में काफी काफी कम है.
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि बिहार में 2019 – 20 में 10.5 प्रतिशत सकल विकास दर में सेवा क्षेत्र की बड़ी भूमिका है. कोरोनाजनित आर्थिक मंदी के कारण वर्तमान वर्ष में इसमें कमी आने की संभावना है.
महत्वपूर्ण बात है कि समय के साथ राज्य की अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका काफी कम हुई है. वहीं आज भी एक बड़ी आबादी जीविकोपार्जन के लिए इस पर निर्भर है. बिहार लगभग 12.1 करोड़ की अनुमानित आबादी के साथ एक घनी आबादी वाला राज्य है, जहां घनत्व 1285 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है.
वर्तमान आर्थिक एवं सामाजिक संरचना को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि बिहार अब एक कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था नहीं है, लेकिन समाज का एक बड़ा तबका अब भी कृषि-संबंधित गतिविधियों में लगा हुआ है.
यह एक ऐसा परिदृश्य है जहां एक उम्मीद है कि लोग अपने जीविकोपार्जन के लिए अगर संभव हो ,तो कृषि से ऐसे क्षेत्रों में शिफ्ट हो जाएं जो राज्य की अर्थव्यवस्था में अधिक योगदान देते हैं, तो समाज की कई पुरानी चुनौतियां जिनकी जड़ कृषि आधारित व्यवस्था और भूमि के स्वामित्व की संरचना रही है, धीरे-धीरे कम होंगी. इसके लिए अर्थव्यवस्था के आकार को तेजी से बढ़ावा देने की जरूरत है, जिसके लिए व्यापक पूंजीगत निवेश की जरूरत है.
यहां निजी क्षेत्र की अनुपस्थिति में पूंजी खर्च और निवेश सरकार से ही संभव है. बिहार में पूंजी की कम उपलब्धता को बैंकों के राष्ट्रीय स्तर के 76.5 प्रतिशत से काफी कम ऋण-जमा अनुपात 36.1 प्रतिशत से भी देखा सकता है.
यह बताता है की राज्य में बचत से जमा पूंजी का केवल 36.1 प्रतिशत ही बैंक द्वारा राज्य के आर्थिक गतिविधियों में किया जाता है, बाकी राज्य से बाहर चले जाते हैं. ऐसे में पूंजी उपलब्धता भी सरकार के भरोसे ही रह जाती है.
लेखक : डॉ सुधांशु कुमार, अर्थशास्त्री, सीइपीपीएफ, आद्री
Posted by Ashish Jha