Bihar Budget Expectation: बिहार चाहता है केंद्रीय योजनाओं में 90:10 का अनुपात, जानें अभी क्या है फॉर्मूला
नीति आयोग के अनुसार बिहार में अभी 51.9 प्रतिशत गरीबी है. ऐसे में अभी बिहार को अपने कुल राजस्व की लगभग 55 प्रतिशत राशि केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं के राज्यांश के रूप में खर्च करने पड़ते है. बिहार सरकार का कहना है कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्य का अंश घटाना चाहिए.
पटना. केंद्र प्रायोजित योजनाओं को पूरा करने में मैचिंग ग्रांट के रूप में बिहार सरकार को सालाना 25 से 30 हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं. ऐसे में बिहार सरकार लगातार इस बात को उठा रही है कि केंद्र सरकार पिछड़े राज्यों को विशेष सहायता दे. नीति आयोग के अनुसार बिहार में अभी 51.9 प्रतिशत गरीबी है. ऐसे में अभी बिहार को अपने कुल राजस्व की लगभग 55 प्रतिशत राशि केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं के राज्यांश के रूप में खर्च करने पड़ते है. बिहार सरकार का कहना है कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्य का अंश घटाना चाहिए. बिहार का कहना है कि केंद्र की योजना को पूरा करने में ही उसका अधिकतर पैसा खर्च हो जा रहा है और राज्य स्तर पर अपनी जरुरतों के हिसाब से योजनाएं लागू नहीं कर पा रही है. ऐसे में केंद्रीय योजनाओं की संख्या कम हो या फिर इन योजनाओं को पूरा करने के लिए बिहार जैसे गरीब राज्य को केंद्र 90% राशि दे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद इस बात को कई मंचों पर उठा चुके हैं कि केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं को पूरा करने के लिए केंद्र से बिहार को विशेष दर्जा या विशेष सहायता मिलनी चाहिए. बिहार के पास विकसित राज्यों की तरह संसाधन नहीं है.
एक रुपये के बजट में 76 पैसा केंद्र से आता है
दरअसल इस प्रकार की योजनाओं में राज्य द्वारा दी जाने वाली राशि का प्रतिशत राज्यों के साथ परिवर्तित होता रहता है. यह 50:50, 60:40, 70:30 या 75:25 में हो सकता है, वहीं कुछ विशेष राज्यों जैसे- पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के लिए यह 90:10 (यहां 90 केंद्र का हिस्सा है और 10 राज्य का) रहता है. धन के मामले में बिहार शुरू से ही केंद्र पर निर्भर रहा है. मोटा हिसाब यह है कि बिहार के एक रुपये के बजट में 76 पैसा केंद्र से आता है. यह केंद्रीय करों में राज्यों का हिस्सा और सहाय्य अनुदान के मद में आता है. बाकी 24 पैसे का इंतजाम सरकार अपने आंतरिक स्रोतों से करती है. वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी कहते हैं कि यह आर्थिक स्थिति राज्य को विशेष दर्जा देने का आधार तैयार करती है.
केंद्रीय करों के डिवाइजिबल पूल से बिहार को मिलेगा 4.12% हिस्सा
15वें वित्त आयोग ने 1 फरवरी, 2021 को 2021-26 की अवधि के लिए जारी रिपोर्ट में केंद्रीय करों में राज्यों का 41% हिस्सा सुझाया गया है, जोकि 2020-21 के लगभग समान ही है. 14वें वित्त आयोग (2015-20 की अवधि) ने 42% का सुझाव दिया था और इसमें से 1% की कटौती इसलिए की गई है, ताकि नये गठित जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों को अलग से धनराशि दी जा सके. 2021-26 की अवधि के लिए 15वें वित्त आयोग के सुझावों के आधार पर बिहार को केंद्रीय करों के डिवाइजिबल पूल से 4.12% हिस्सा मिलेगा. इसका अर्थ यह है कि 2021-22 में केंद्र के कर राजस्व में प्रति 100 रुपए पर बिहार को महज 4.12 रुपए मिलेंगे. जीएसटी लागू होने के बाद केंद्र की ओर से मिलनेवाली क्षतिपूर्ति राशि भी इस वर्ष से बंद हो चुकी है.
केंद्रीय योजनाओं के घटाने की थी सलाह, केंद्र ने बढ़ा दी
केंद्रीय योजनाओं का दबाव राज्यों पर कम करने के लिए नीति आयोग में भी चर्चा हुई थी. मुख्यमंत्रियों की समूह ने इस बात की अनुशंसा की थी कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं की संख्या को 66 से घटाकर 24 किया जाये. समूह का कहना था कि किसी भी समय एक साथ 30 से अधिक केंद्रीय योजना राज्य में लागू नहीं हो. मुख्यमंत्रियों की इस अनुशंसा को दरकिनार कर केंद्र प्रायोजित योजनाओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. अभी यह 100 के करीब है. समूह ने कहा था कि सभी केंद्र प्रायोजित योजनाओं को मुख्यतः 3 भागों में विभाजित किया जाये.
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कोर ऑफ द कोर स्कीम- इस प्रकार की योजनाएँ अधिकतर सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक समावेशन से संबंधित होती हैं और इनमें से अधिकांश योजनाओं में राज्यों की विशिष्ट भागीदारी पहले ही निर्धारित होती है. उदाहरण के लिये मनरेगा (MGNREGA) के मामले में, राज्य सरकारों को 25 प्रतिशत व्यय करना पड़ता है.
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कोर स्कीम – इस प्रकार की योजनाओं में अधिकतर राष्ट्रीय विकास एजेंडा प्रमुख होता और इनके लिए केंद्र और राज्य मिलकर टीम इंडिया की भावना के साथ काम करते हैं. कोर स्कीम में वित्तीय भागीदारी का अनुपात मुख्यमंत्रियों के उप-समूह ने निर्धारित किया था. यह अनुपात पूर्वोत्तर राज्यों व हिमालयी राज्यों के लिये 90:10 है, जबकि देश के अन्य राज्यों के लिए यह 60:40 है.
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ऑप्शनल स्कीम – इन योजनाओं को लागू करने के संदर्भ में राज्य स्वतंत्र होते हैं और वे आवश्यकतानुसार इनको लागू कर सकते हैं. इन योजनाओं के वित्तपोषण का अनुपात पूर्वोत्तर राज्यों व हिमालयी राज्यों के लिए 80:20 है, जबकि देश के अन्य राज्यों के लिए यह 50:50 है.
बिहार स्पेशल प्लान (द्वितीय चरण) के रूप में मिले 20 हजार करोड़
पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित वित्तमंत्रियों की बैठक में भी केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के समझ बिहार के वित्तमंत्री विजय चौधरी ने यह मांग रखी थी. बैठक में बिहार का पक्ष रखते हुए चौधरी ने कहा था कि आधारभूत संरचना विकास और परिसंपत्तियों के सृजन के लिए बिहार स्पेशल प्लान (द्वितीय चरण) के रूप में 20 हजार करोड़ दिये जायें. वित्तमंत्री विजय चौधरी ने कहा कि केंद्रीय योजनाओं की बढ़ती संख्या के कारण गरीब राज्यों को अपनी योजनाएं शुरू करने के लिए संसाधन नहीं बचता है. ऐसे में बिहार जैसे पिछड़े राज्य का राजकोषीय घाटा सीमा जीएसडीपी का 4 प्रतिशत किया जाये, साथ ही सिंगल नोडल एकाउंट में 40 दिन में राज्यांश जमा करने की शर्त को भी खत्म किया जाये. इतना ही नहीं बिहार ने केंद्र से सेस और सरचार्ज को केंद्रीय विभाज्य पूल में शामिल करने की मांग रखी है. साथ ही कहा कि उर्जा के क्षेत्र में वन नेशन वन ट्रैफिक लागू हो.
60 फीसदी पैसा भी नहीं दे रहा केंद्र
विजय चौधरी ने कहा कि अपनी योजनाओं की जिम्मेदारी केंद्र को अधिक से अधिक वहन करना चाहिए, लेकिन केंद्र अपना हिस्सा भी देने में आनाकानी करता है. विजय चौधरी ने कहा कि समग्र शिक्षा अभियान, मनरेगा समेत कई ऐसी योजनाएं हैं जिसमें केंद्र सरकार सौ फीसदी राशि देती थी, लेकिन अब 60 प्रतिशत देती है. 40 प्रतिशत राज्य सरकार को देना पड़ता है. पीएमजीएसवाई पथों की मॉनीटरिंग और रखरखाव मद में केंद्रांश की राशि राज्यों को समय से उपलब्ध नहीं हो रही है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री यशस्वी योजना के तहत 50-50 के अनुपात में छात्रवृत्ति दी जाये. साथ ही पंचायतों, गांवों, हाट-बाजार को प्रखंड या अनुमंडल एवं जिला से जोड़ने के लिए अतिरिक्त सुलभ संपर्क योजना के तहत राज्यों को राशि उपलब्ध कराई जाए. इधर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल का कहना है कि केंद्र सरकार बिहार को हर संभव मदद करती है. बिहार में चल रही अधिकतर योजनाओं में 75 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार वहन कर रही है. बिहार सरकार लगातार बिहार की जनता को बरगलाने का काम कर रही है.