पटना. बिहार में जातीय जनगणना कराये जाने पर सर्वसम्मति बन गयी है. ना नुकुर करते हुए भी भारतीय जनता पार्टी ने इस प्रस्ताव पर सहमति दे दी है. नीतीश कुमार ने इस मसले पर सबको एकमत कर लिया है, लेकिन सर्वदलीय बैठक में सहमति के बावजूद बिहार भाजपा नेतृत्व ने इस मुद्दे पर कई आशंकाएं जतायी है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने आशंका जतायी है कि जातीय जनगणना का फायदा उठाकर कहीं बिहार में बांग्लादेशी और रोहिंगियां घुसपैठिए नागरिकता हासिल ना कर लें.
अपने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से संजय जायसवाल ने कहा कि हम केंद्र के बाबा साहब अंबेडकर के संविधान प्रदत सातवें शेड्यूल के अधिकारों में किसी तरह की छेड़खानी नहीं करेंगे. नेता प्रतिपक्ष ने भी कहा कि यह सर्वे या गणना ओबीसी कमीशन या अन्य तरह से होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत सरकार अपने जनगणना के मुताबिक़ गरीबों के लिए योजनाएं तैयार करती है.
नरेंद्र मोदी की योजनाओं की बात करें तो 60 से ज्यादा योजनाएं गरीबों के हित में ही बनाये गये हैं. हम कभी उसमें जाति आधारित विभेद नहीं करते. उन्होंने कहा कि मैंने अपनी बातों को रखते हुए मुख्यमंत्री के सामने तीन आशंकाएं प्रकट की, जिनका निदान गणना करने वाले कर्मचारियों को स्पष्ट रूप से बताना होगा.
बिहार में होने वाली जातीय जनगणना को लेकर भाजपा की जो तीन आशंकाएं हैं, उनमें पहला आशंका यह है कि जातीय एवं उप-जातीय गणना की वजह से किसी रोहिंग्या और बांग्लादेशी का नाम नहीं जुड़ जाए. बाद में वह इसी के आधार पर नागरिकता को आधार नहीं बनाये.
संजय जायसवाल की दूसरी आशंका यह है कि सीमांचल में मुस्लिम समाज में यह बहुतायत देखा जाता है कि अगड़े शेख समाज के लोग शेखोरा अथवा कुलहरिया बन कर पिछड़ों की हकमारी करने का काम करते हैं. यह भी गणना करने वालों को देखना होगा कि मुस्लिम में जो अगड़े हैं वह इस गणना के आड़ में पिछड़े अथवा अति पिछड़े नहीं बन जाएं. ऐसे हजारों उदाहरण सीमांचल में मौजूद हैं, जिनके कारण बिहार के सभी पिछड़ों की हकमारी होती है.
तीसरी आशंका यह है कि भारत में सरकारी तौर पर 3747 जातियां है और केंद्र सरकार ने स्वयं सुप्रीम कोर्ट के हलफनामे में बताया कि उनके 2011 के सर्वे में 4:30 लाख जातियों का विवरण जनता ने दिया है. यह बिहार में भी नहीं हो इसके लिए सभी सावधानियां बरतने की आवश्यकता है.