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Bihar caste Survey : 190 जातियां ऐसी जिनकी आबादी एक प्रतिशत से कम, कायस्थ का सबसे बुरा हाल

सरकार ने जिन 215 जातियों की गणना की है, उनमें 190 जातियां ऐसी हैं, जिनकी आबादी एक प्रतिशत भी नहीं. बिहार में केवल 25 जातियां ही ऐसी हैं, जिनकी संख्या एक प्रतिशत से अधिक है. एक प्रतिशत से कम आबादीवाली जातियों में अगड़े, पिछड़े दलित और अल्पसंख्यक जैसे जातीय समूह की जातियां शामिल हैं.

पटना. जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी का नारा लगा रहे नेताओं के सामने बिहार का जाति गणना रिपोर्ट बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है. सोमवार को राज्य सरकार की ओर से जारी रिपोर्ट में जो आंकड़े सामने आये हैं, उसमें कहा गया है कि सरकार ने जिन 215 जातियों की गणना की है, उनमें 190 जातियां ऐसी हैं, जिनकी आबादी एक प्रतिशत भी नहीं. बिहार में केवल 25 जातियां ही ऐसी हैं, जिनकी संख्या एक प्रतिशत से अधिक है. एक प्रतिशत से कम आबादीवाली जातियों में अगड़े, पिछड़े दलित और अल्पसंख्यक जैसे जातीय समूह की जातियां शामिल हैं.

संख्या बल पर इन जातियों की हिस्सेदारी बेहद मुश्किल

जाति आधारित गणना की रिपोर्ट में समेकित रूप से इन जातियों को आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी बेहद मुश्किल है. क्योंकि अति पिछड़ा वर्ग के लोगों की संख्या तो सबसे अधिक है, लेकिन अगर इन जातियों का ब्रेकअप देखा जाये, तो इनमें एक प्रतिशत से कम संख्या वाली जातियों की संख्या सबसे अधिक है. ऐसे में वर्ग के आधार पर इनकी हिस्सेदारी तो बनती है, लेकिन जाति के आधार पर इनकी आबादी बेहद कम है. इन जातियों में अघोरी, अदरखी, अबदल, अमात, अवध बनिया, असुर, अगरिया, इदरीसी , ईटफरोश, गदहेड़ी, ईंटपज इब्राहिमी, ईसाई धर्मावलंबी (हरिजन) उरांव, कपरिया,करमाली, कलंदर, कवार, कसाब, कागजी, कादर, किसान नागोसिया, कुल्हैया, केवट, केवर्त, गोल, कौरा, कोरा, कोस्कू, कौरवा, कोल, कोस्ता, कुरारियार और कंजर एक प्रतिशत से कम संख्या वाली जातियां हैं.

इन जातियों की आबादी में एक प्रतिशत से कम

इनके अलावा, खटवा, खटिक, खटिक, खलौरी, खरवार, खरिया, खेलटा, खोंड, खंगर, गद्दी, गुलगुलिया, गोड़ी, गोंड, गोराइत, गोस्वामी, संन्यासी, गंगई, गंगोता, गंधर्व, घटवार, घासी, चनऊ, चपोता, चांय, चीक, चिक बराइक, चूड़ीहार, चेरों, छीपी, जट, जटपुतिया, जागा, जोगी, टिकुलहार, ठकुराई, डफाली, बांसफोड़ और ढेकारू की संख्‍या भी एक प्रतिशत से कम है. भार, भास्कर, भूइया. भूईयार, भोक्ता, मझवार, मडरिया, मदार, मदारी, मलार, मारकंडे, माल पहरिया, माहली, माली, मांगर, मुकेरी, मुन्हा पातर, गिरियासीन, मोरशिकार, मोरियारी, मौलिक, रजवार, राजधोबी, राजभर, राजवंशी, रौतिया, रंगरेज, रंगवा, लहेड़ी, लालबेगी.लोहरा, वनपर, विरिजिय और शिवहरी की आबादी भी एक फीसदी से कम है. शेरशाहबादी, फकीर, सामरी वैश्य, सावर, सिंदुरिया बनिया, सुकियार, सूत्रधार, सेखड़ा, सिकलगर, सेंधवार, सोनार, सोयर, सौरिया पहाड़िया, सोता, संतराश, हलालखोर, हलवाई, गोलवारा, खत्री, धरामी, सूतिहर, बहेलिक, रस्तोगी, केवानी व अन्य भी एक प्रतिशत से कम संख्या वाली जातियां हैं.

धोबी रजक, धोबी (मुस्लिम), पासी भी 1 प्रतिशत से कम

अनुसूचित जाति व जनजाति के साथ भी ऐसा ही है. इस वर्ग में भी अधिकतर जातियों की आबादी बेहद कम है. अगर इन जातियों का ब्रेकअप देखा जाये, तो इनमें एक प्रतिशत से कम संख्या वाली जातियों की संख्या सबसे अधिक है. इनमें धोबी रजक, धोबी (मुस्लिम), पासी, संथाल, भंगी, मेहतर, उरांव व डोम आदि का नाम लिया जा सकता है. इन जातियों की आबादी यादव, कुशवाहा यहां तक कि पासवान के मुकाबले काफी कम हैं. ऐसे में इन जातियों की हिस्सेदारी संख्या के आधार पर हो पाना आसान नहीं होगा.

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कायस्थ को होगा सर्वाधिक घाटा, सैयद लेंगे अल्पसंख्यक होने का लाभ

एक प्रतिशत से कम आबादीवाली अधिकतर जातियां पिछड़े और अनुसूचित वर्गों में शामिल होकर अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर लेंगी, लेकिन रिपोर्ट में दर्ज आंकड़ों की जांच करें तो कायस्थ सहित मुस्लिम समाज की दो जातियों की संख्या एक प्रतिशत से कम है. कायस्थ की संख्या बिहार की कुल आबादी का महज 0.6011 प्रतिशत है. इसी प्रकार मुस्लिम समाज में पठान जाति की संख्या 0.7548 प्रतिशत है. सैयद भी मुस्लिम समाज से आते हैं और इनकी संख्या कुल आबादी का 0.2279 प्रतिशत है. सैयद तो अल्पसंख्यक होने का लाभ ले लेंगे, लेकिन आबादी के मुकाबले हिस्सेदारी अगर मिलती है तो कायस्थ को सबसे अधिक घाटा होगा. उससे कम संख्यावाली जातियां विभिन्न वर्गों में शामिल होकर कहीं अधिक हिस्सेदारी के हकदार बन जायेंगे.

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