मिथिलेश,पटना
बिहार में पिछले तीन दिनों से तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच रविवार का दिन बिहार की राजनीति में एक नया इतिहास लेकर आया. सुबह जदयू और भाजपा कार्यालयों में नयी सरकार के गठन की पहले आधारशिला रखी गयी. फिर सीएम हाउस होते हुए इसका दावा राजभवन तक पहुंचा. शाम होते-होते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई में एनडीए की सरकार का सत्तारोहण हो गया. 2005 के बाद बिहार में कई बार सत्ता के समीकरण बदले, लेकिन हर बार केंद्र में नीतीश कुमार ही रहे.हार में नीतीश कुमार ने जब-जब नया समीकरण बनाया, तब-तब सत्ता बदलती चली गयी.
साल 2024 के जनवरी का अंतिम रविवार छठी बार इसका गवाह बना जब नीतीश कुमार ने एकबार फिर भाजपा से नाता जोड़ कर एनडीए की सरकार बना ली. उन्होंने 17 महीने पहले एनडीए छोड़ कर महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार बनायी थी. 2005 के नवंबर के चुनाव में राजद चारों खाने चित हो गया और पहली बार नीतीश कुमार की अगुवाई में प्रदेश में नये समीकरण की सरकार बनी. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और भाजपा के सुशील मोदी को उप मुख्यमंत्री बनाया गया.
भाजपा के साथ मिलकर यह सरकार पूरे पांच साल चली. 2010 के विधानसभा चुनाव में राज्य की जनता ने इस गठबंधन को ऐतिहासिक समर्थन दिया था. विधानसभा की 243 सीटों में एनडीए की झोली में 206 सीटें आ गयी. जदयू के 115 विधायक जीत कर आये. वहीं सहयोगी भाजपा के 91 विधायक जीते.
वर्ष 2013 में जदयू-भाजपा के बीच दूरी बढ़ने लगी. लोकसभा का चुनाव करीब था. भाजपा ने नरेंद्र मोदी को 2014 के संसदीय चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया. नीतीश कुमार ने इसे स्वीकार नहीं किया. 2013 के आखिरी महीने में उन्होंने भाजपा से रिश्तेखत्म करने का फैसला कर लिया. सरकार में भाजपा के मंत्रियों को बरखास्त कर दिया गया. नीतीश कुमार एनडीए से अलग हो गये. परदे के पीछे से राजद उनके समर्थन में आ गया. इसी क्रम में 2014 का लोकसभा का चुनाव हुआ. भाजपा ने रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा से समझौता किया. साथ में उपेंद्र कुशवाहा भी आ गये.
नीतीश कुमार की पार्टी जदयू अकेले ही चुनाव मैदान में गयी, लेकिन परिणाम उनके पक्ष में नहीं रहा. जदयू के मात्र दो सांसद ही जीत पाये. जनता के फैसले को स्वीकार कर नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनने का अवसर दिया. इस नयी सरकार को राजद का समर्थन मिला. सरकार चलती रही. बाद के दिनों में मांझी की दूरियां नीतीश कुमार से बढ़ने लगीं. मांझी एकतरफा फैसले की आजादी चाहते थे. ऐसी ही परिस्थितियों में मांझी को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा. एक बार फिर नीतीश कुमार ने राजद के अप्रत्यक्ष समर्थन से सरकार की बागडोर संभाली.
इस बार राजद के साथ कांग्रेस भी जदयू के साथ आया. 2015 में नीतीश कुमार ने इस नये गठजोड़ को महागठबंधन का नाम दिया. 2015 के विधानसभा चुनाव में तीनों दल एक साथ चुनाव मैदान में गये. राजद और जदयू ने 101-101 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. कांग्रेस को 41 सीटें दी गयीं. नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया. चुनाव परिणाम महागठबंधन के पक्ष में रहा और उसके 178 विधायक जीत कर आये. 80 सीट पाकर राजद सबसे बड़ा दल रहा. जदयू के 71 विधायक बने और कांग्रेस की झोली में 27 सीटें आयीं. भाजपा के विजयी रथ को बिहार में रोक दिया गया. नीतीश कुमार एक बार फिर सफल रहे. वे मुख्यमंत्रीबने और राजद के तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री का दर्जामिला. सरकार में कांग्रेस भी शामिल हुई
महागठबंधन को 2015 में मिली भारी जीत अधिक दिनों तक टिक नहीं पायी. सत्ता में कामकाज को लेकर जदयू और राजद की दूरियां बढ़ने लगीं. इसी बीच उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के घर सीबीआइ की छापेमारी हुई. मुख्यमंत्री ने उन्हें अपनी स्थिति साफ करने को कहा. तेजस्वी चुप रहे. उनकी चुप्पी महागठबंधन सरकार के लिए नुकसानदेह साबित हुई. 2017 में नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हो गये. वह सरकार गिर गयी. भाजपा ने उन्हें अपना नेता मान लिया और प्रदेश में नयी सरकार बन गयी. नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बने.
एनडीए की 2020 में बनी सरकार के सामने दो साल बाद ही संकट पैदा होने लगा. भाजपा को लेकर जदयू की परेशानी बढ़नी लगी और अंतत: नीतीश कुमार ने नया रास्ता चुना. 2022 में वे भाजपा से अलग हो गये और राजद के साथ मिलकर नयी सरकार बनायी. इस सरकार में कांग्रेस भी भागीदार बनी. वामदलों ने बाहर से समर्थन दिया. तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्रीबनाये गये.