पटना. कोरोना संक्रमित होने के बाद होम अइसोलेशन में रहने वाले मरीजों की ट्रैकिंग का काम हिट एप से किया जा रहा है. जिले में किस तरह से होम आइसोलेशन में रह रहे लोगों की ट्रैकिंग हो रही है. इसके लिए जिला कलेक्ट्रट भवन के सभागार में कंट्रोल रूम बनाया गया है. यहां मौजूद एक कर्मी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि हर दिन हम लोग करीब 40-50 मरीजों को फोन करते हैं.
फोन पर हम उनसे मुख्य रूप से दो सवाल करते हैं पहला कि आज बुखार कितनी है और दूसरा सांस लेने में कोई परेशानी तो नहीं होती. ये कर्मी बताते हैं कि 80 प्रतिशत से ज्यादा लोग कहते हैं कि बुखार उतर चुकी है या बुखार नहीं है. वहीं सांस लेने में परेशानी है ऐसा आमतौर पर कोई मरीज नहीं बोलता.
हिंदी भवन सभागार में कांट्रेक्ट ट्रेसिंग सेल का कार्यालय चल रहा है. यहां बरामदे और सभागार के अंदर हमें कुछ कर्मी टेबलों पर बैठे दिखते हैं. बातचीत में पता चला कि ये शिक्षक हैं जिनकी तैनाती यहां कि गयी है. इन्हें हिट एप के जरिये होम आइसोलेशन में रह रहे लोगों की ट्रैकिंग करने की जिम्मेदारी दी गयी है. इसके लिए एप पर इनकी एक आइडी बनायी गयी और इसपर लाग इन करते ही उनका आज का टारगेट दिखता है.
उनकी आइडी पर जिन मरीजों को टैग किया गया होता है उसपर फोन करना होता है. ये कर्मी मरीजों को फोन कर उनका हालचाल पूछने का काम कर रहे थे. इसके बावजूद हम ये सवाल जरूर पूछते हैं कि सांस लेने में परेशानी तो नहीं. उनका आॅक्सीजन लेवल भी पूछते हैं. और भी कई जानकारी पूछी जाती है.
हमारे सामने हो रही इस बातचीत में एक मरीज ने यह भी कहा कि आपलोगों की भेजी दवा से कोई फायदा नहीं हो रहा. मरीज की बात सुनने के बाद कर्मी ने बड़े ही प्यार से समझाया कि यही दवा हजारों लोगों को दी जा रही और लोगों को इससे आराम भी हो रहा. कर्मी ने कहा कि अगर आप स्वस्थ्य नहीं हो पा रहीं तो टेलीमेडिसिन के नंबर पर फोन कर चिकित्सीय सलाह ले सकती हैं.
इस दौरान हमारे सामने कर्मियों ने जब कुछ मरीजों के नंबर पर फोन किया तो कई ने फोन नहीं उठाया. मरीजों से बातचीत के आधार पर मिलने वाली जानकारियों को कर्मी हिट एप पर अपडेट भी करते जा रहे थे. प्रत्येक कर्मी के मोबाइल में एप है और उन्हें खुद के मोबाइल नंबर से मरीजों को फोन करना होता है.
कर्मियों ने बताया कि अगर कोई मरीज हमें कहता है कि हमें 101 बुखार है तो हम जैसे ही उसका यह डाटा हिट एप पर अपडेट करते हैं मरीज की जानकारी फिल्टर हो जाती है. फिर मरीजों की ज्यादा बेहतर तरीके से माॅनीटरिंग की जाती है. कर्मियों ने बताया कि होम आइसोलेशन में रहने वालों की हम सात दिनों तक माॅनीटरिंग करते हैं, इसके बाद उन्हें निगेटिव मान लिया जाता है.
पहले यही काम ऑफलाइन होता था लेकिन एप के आने के बाद सारा काम ऑनलाइन हो गया है. चार बजने के बाद हमने पाया कि कर्मियों ने मरीजों को फोन करना बंद कर दिया और वे अपना काम समेट कर अपने-अपने घर जाने लगे.