कोरोना पर कैसे होगा कंट्रोल? 35 साल से उद्घाटन के इंतजार में ढहा बिहार का ये स्वास्थ्य केंद्र
Bihar Coronavirus News: बिहार के बेगूसराय जिले के भगवानपुर प्रखंड के कबिया गांव के स्वास्थ्य उप केंद्र की हालत देखकर शायद ही कोई कह सकता है कि बिहार के स्वास्थ्य महकमें में सब ठीक-ठाक चल रहा है. वर्ष 1987 में आये भीषण बाढ़ तक यह अस्पताल अपने भवन के अभाव में स्व सुशील सिंह के एक मकान में अस्थायी रूप से चल रहा था पर उस बाढ़ में उस मकान के टूट जाने पर यह स्वास्थ्य केंद्र बन्द हो गया था.
बिहार के बेगूसराय जिले के भगवानपुर प्रखंड के कबिया गांव के स्वास्थ्य उप केंद्र की हालत देखकर शायद ही कोई कह सकता है कि बिहार के स्वास्थ्य महकमें में सब ठीक-ठाक चल रहा है. वर्ष 1987 में आये भीषण बाढ़ तक यह अस्पताल अपने भवन के अभाव में स्व सुशील सिंह के एक मकान में अस्थायी रूप से चल रहा था पर उस बाढ़ में उस मकान के टूट जाने पर यह स्वास्थ्य केंद्र बन्द हो गया था.
बताया जा रहा है कि उस समय पूर्व सरपंच स्व रामशंकर प्रसाद सिंह के अनुरोध पर भगवानपुर ब्लॉक के चिकित्सा प्रभारी ने सेंटर को तात्कालिक रूप से उनके दरबाजे पर ही स्थापित कर दिया था. उनके दरवाजे पर से ही वर्षों तक यह केन्द्र आसपास के हजारों की आबादी को स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करवा रहा था. गांववालों और रामशंकर जी के विशेष प्रयास से स्वास्थ्य केंद्र के लिए स्व उपेन्द्र सिंह जमीन देने को तैयार हुए पर उनके पास उपयुक्त ज़मीन नहीं होने के कारण मामला अटक गया.
तब स्व राम शंकर सिंह ने अपने पुत्र अरुण कुमार को सरस्वती स्थान मंदिर के पास मुख्य सड़क पर जमीन बदलकर देने का निर्देश दिया. जमीन उपलब्ध करवाने के बाद सरकार द्वारा वहां पर हेल्थ सेंटर के लिए भवन निर्माण का कार्य शुरू हुआ जो आज तक हो ही रहा है. तस्वीरों को देखकर स्वतः अंदाजा लगाया जा सकता है कि क्या कभी इस बुरी तरह से जर्जर अस्पताल इलाज संभव रहा होगा.
जानकारी देते हुए जनप्रतिनिधि भरोसी पासवान, ग्रामीण बीरु पासवान, साहेब पासवान, नारायण पासवान, मुन्ना सिंह,अजय कूमार सिंह,रामा रमण,पुष्कर कुमार, राम आशीष महतो, चुनचुन सिंह, विंदेश्वरी पासवान इत्यादि ने बताया कि आज तक इस भवन का उद्घाटन ही नहीं हो सका है.आधिकारिक रुप से भवन निर्माण कार्य को पूरा होने से पहले ही एक साजिश के तहत रामशंकर जी के दरवाजे से अस्थायी अस्पताल हटा लिया गया था.जिस कारण आम लोगों को जो भी थोडा-बहुत चिकित्सा सेवा मिल पाता था वह भी बंद हो गया.
उसके बाद दशकों से सरकारी कागजों पर चल रहे इस अस्पताल की स्थिति व संचालन के बारे में मंत्री से लेकर विधायक,सांसद ,कलक्टर साहब या सिविल सर्जन तक क्या सूचना भेजी जा रही है.इसकी जानकारी यहां के आम आदमी को बिल्कुल मालूम नहीं है. इन्हें तो सिर्फ इतना मालूम है कि कबिया गांव का हेल्थ सेंटर फिलहाल बना ही नहीं है और आज तक वह भवन उद्घाटन के इंतजार में ही हैं.
जिले की सीमा पर बसे कबिया– बाबुटोल-बनौली, हरिचक, मोख्तियारपुर, दोहटा,पकाही, देशरी, झहुरा और आस-पास के गांव के हजारों गरीब-गुरबों के स्वास्थ्य सुविधा का एक मात्र आसरा,आजादी के 75 वर्षों बाद और सुशासन के 16 वर्ष बाद भी यदि खुद ही अस्वस्थ है तो निश्चित रूप से यह दुखद और चिंताजनक है.
नमक सत्याग्रह गौरवयात्रा के संस्थापक सह महासचिव व कबिया निवासी राजीव कुमार ने कहा कि लोगों की सरकार के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से नम्र निवेदन है कि जनहित में कागजों पर चल रहे इस अस्पताल को जल्द से जल्द स्वास्थ्य केंद्र के रुप में अपग्रेड कर व उसे सभी आवश्यक चिकित्सा सुविधाओं से सुसज्जित कर सुचारु रुप से अविलंब चालू किया जाये. अस्थायी,वैकल्पिक व्यवस्था के तहत अस्पताल को तुरंत चालू किया जाये और अस्पताल को इस हाल में पहुंचाने वाले जिम्मेदार कर्मचारियों और अधिकारियों को चिन्हित कर उनपर यथाशीघ्र विधिसम्मत कड़ी से कड़ी कार्यवाई सुनिश्चित की जाये.
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