अश्वनी कुमार राय, पटना. कोरोना ने हमारी जीवनशैली को पूरी तरह से बदल दिया है. इसने हमारे दैनिक जीवन और कामकाज में बदलाव तो लाये ही हैं, अब यह हमारे संस्कार में भी एक बड़ा बदलाव ला दिया है. इसने लोगों पास से न केवल अपने प्रियजनों को अंतिम विदाई देने का मौका छिना है, बल्कि मरने के बाद होने वाले रिचुअल्स व उनकी मोक्ष की आखिरी इच्छा भी छीन लिया है.
लोगों का कहना है कि जब कोई ऐसे व्यक्ति की मौत हो जाती है, जिसे आप प्यार करते हैं तो उसे आखिरी बार देखना और उसे पूरे सम्मान के साथ विदा करना आपके लिए सबसे जरूरी हो जाता है. ये एक तरह से मृतक को दिये जाने वाला सम्मान छीनने और परिवार के लोगों का दुख बढ़ाने जैसा है.
जिस परिवार में किसी की कोरोना से मौत हुई है उनका कहना है कि पहले ये बीमारी मरने से ठीक पहले आपको अपने सभी प्रियजनों से अलग-थलग कर देती है. फिर ये किसी को आपके पास आने नहीं देती. किसी भी फैमिली के लिए ये बेहद मुश्किल समय होता है और उनके लिए ये स्वीकार करना काफी दुखदायी होता है. परिवार के लोग न तो उसका अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान से कर पा रहे हैं और न ही श्राद्धकर्म.
कोरोना काल में मौत होने के बाद पड़ोसी तो छोड़िए रिश्तेदार व परिवार के लोग भी साथ नहीं दे पा रहे हैं. इस वायरस से जान गंवाने वालों के परिजनों को कई समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है. यहां तक की अंतिम दर्शन या फिर अंतिम संस्कार के दौरान भी कई परिवार वाले शामिल नहीं हो पा रहे हैं. ऐसे में मरने वाले परिजनों को संभालने के लिए लोग अपना हाथ नहीं बढ़ा पा रहे हैं. इस परीस्थिति में लोगों के आंसू पोछने वाले भी नहीं हैं. इतना ही नहीं अंतिम संस्कार के बाद परिवार जो मरने वाले व्यक्ति के साथ रहता है वे अपना धार्मिक रूप से नियमों का पालन नहीं कर पा रहा है. इस कारण परिजनों को अपनों को खोने के साथ-साथ नियमों का पालन न होने के दर्द सता रहा है.
कोरोना महामारी के दौरान स्थिति ऐसी हो गयी है कि अपनों का दाह संस्कार करना भी मुश्किल हो रहा है. इस बारे में एस के पुरी के रहने वाले प्रभात कुमार कहते हैं कि कोरोना से मेरे चाचा की मौत हो गयी, लेकिन उनके दाह संस्कार में कोई शामिल नहीं हो पाया. लोग उनके शव तक छूने से डर रहे थे. इधर घर में शादी भी तय थी. 26 अप्रैल को दो शादियां थीं, लेकिन सभी लोग परिस्थिति के अनुसार खुद को संभाल रहे हैं. जब सबकुछ ठीक हो जायेगा तो पूरे विधि-विधान के साथ उनके पुतला का दाह संस्कार किया जायेगा. फिर उस दिन से श्राद्धकर्म की शुरुआत होगी. श्राद्धकर्म को गांव पर संपन्न किया जायेगा.
कोरोना की वजह से श्राद्धकर्म के साथ-साथ श्राद्ध-भोज में भी बड़ा बदलाव हुआ है. अब संक्रमण के डर से बहुत कम लोग श्राद्ध-भोज में शामिल हो रहे हैं. हालांकि इससे उन परिवारों की परेशानी कम हुई है, जो आयोजन करते हैं. पुरोहितों ने बताया कि परिवार-रिश्तेदार की बात छोड़िए, अब तो चार-छह पुरोहित ही भोज खाने पहुंच जाएं तो बहुत है. कोरोना संक्रमण का डर तो सभी को है. यजमान भी भोज में अधिक शुद्धता व सफाई का ख्याल रख रहे हैं. भीड़-भाड़ कम होने से उन्हें भी सुविधा हो रही है.
आचार्य पंडित राकेश झा कहते हैं कि अग्नि पुराण के अनुसार जब किसी की मृत्यु हो जाती है, तब उसकी आत्मा अपने परिजनों के आसपास ही रहती है. जब तक उसका श्राद्धकर्म नहीं हो जाता. इसलिए मृत्यु के दस दिनों तक दस पिंड दान होता है और घटदान किया जाता है. घड़े के निचे के छिद्र में कुश या सूत लगाया जाता है और उससे बूंद-बूंद निकले वाला जल ही मृतक को मिलता है और वे तृप्त होते हैं. श्राद्धकर्म तीन जगह पर होता है तीर्थ में, पवित्र नदी या तालाब के किनारे या पीपल के छांव में.
श्राद्धकर्म में पिंडदान, तिलांजलि, अन्न दान, छाता, पादुका, लवण, कपास, लौह, स्वर्ण, गौ आदि की दान महत्ता होती है. इसके बाद तेरह ब्राह्मणो को भोजन का प्रावधान है. पर इस कोरोना काल में पूरा विधि-विधान संभव नहीं है. ऐसे में पिंडदान, तिलांजलि, अन्न दान करके यथा संभव ब्राह्मण भोजन करा के भी कर्मकांड को पूरा किया जा सकता है. मुखाग्नि देने वाले जातक इस समय में अपनी सेहत का भी पूरा ध्यान रखें. खानपान से लेकर पूरी दिनचर्या को सकारात्मकता के साथ रहे.
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Posted By: Utpal Kant