Bihar: गया सदर अस्पताल में नशा मुक्ति केंद्र को बना दिया आईसीयू, अधिकारी ने कहा- कहीं और जगह नहीं मिली
Bihar में नशे पर पाबंदी लगाये जाने के बाद अब यहां के नशा विमुक्ति केंद्र के स्वरूप भी बदल दिये गये हैं. सदर अस्पताल (Jayaprakash Narayan Hospital) में बनाये गये नशा विमुक्ति केंद्र में 2019 से ही आइसीयू बना दिया गया है. यहां तैनात कर्मचारियों को भी दूसरे कामों में लगा दिया गया है.
Bihar में नशे पर पाबंदी लगाये जाने के बाद अब यहां के नशा विमुक्ति केंद्र के स्वरूप भी बदल दिये गये हैं. सदर अस्पताल (Jayaprakash Narayan Hospital) में बनाये गये नशा विमुक्ति केंद्र में 2019 से ही आइसीयू बना दिया गया है. यहां तैनात कर्मचारियों को भी दूसरे कामों में लगा दिया गया है. शुरुआत में नशा विमुक्ति केंद्र में ज्यादा मरीज भर्ती नहीं हुए. शराबबंदी के शुरू में कुछ लोग या उनके परिजन शराब की आदत को यहां छुड़ाने के लिए भर्ती कराये. कई लोग यहां से अपनी आदतों में बदलाव कर भी गये. कुछ लोग भर्ती होने के तुरंत बाद भाग भी गये. बाद में यहां मरीज ही नहीं पहुंचने लगे. अस्पताल सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, नशा छुड़ाने के लिए अगर कोई पीड़ित यहां पहुंचते हैं, तो उसे केंद्र बंद होने की सूचना मिलती है और वे निराश होकर लौट जाते हैं. सूत्रों का कहना है कि यहां तैनात कर्मचारियों की सेवा अब स्वास्थ्य विभाग के विभिन्न कार्यक्रमों को सफल बनाने में लिया जाता है.
मरीज नहीं आने के बाद बंद हो गया केंद्र
गया के सिविल सर्जन डॉ रंजन कुमार सिंह ने बताया कि जिला अस्पताल में जगह कम रहने के बाद भी नशा विमुक्ति केंद्र खोला गया था. उनके यहां आने से पहले ही केंद्र की जगह पर आइसीयू का संचालन किया जा रहा है. अस्पताल कर्मचारियों से मिली जानकारी के अनुसार, कुछ दिनों तक शुरू में ही नशा विमुक्ति केंद्र में पीड़ित भर्ती हुए. बाद में मरीज नहीं आ रहे थे. ऐसे भी सरकार की ओर से नशा बिहार में बंद कर दिया गया है. फिलहाल यहां आइसीयू चलाया जा रहा है. इससे मरीजों को काफी लाभ मिल रहा है.
तेजस्वी का मिशन 60 आज पूरा, फिर भी नहीं खास सुधार
अस्पतालों में स्थिति सुधार के लिए उपमुख्यमंत्री सह स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव ने 60 दिनों का समय दिया था, जो सोवार को पूरा हो गया. इस बीच अस्पतालों में बेहतर व्यवस्था के लिए कई तरह के काम शुरू किये गये. अस्पतालों को बाहर से रंगकर तैयार किया गया है. मगर अंदर सुविधा और कर्मचारियों के व्यवहार में कोई परिवर्तन देखने को नहीं मिल रहा है. मगध अस्पताल में दोपहर दो बजे के बाद चिकित्सक उपलब्ध नहीं रहते हैं. ऐसे में, मरीज के पास इमरजेंसी में जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है.