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पेयजल व बिजली जैसे क्षेत्र में बिहार ने किया बेहतर काम, नीति आयोग ने की तारीफ

बिहार में भी मुख्य रूप से स्वच्छता, बिजली, बैंकिंग, शुद्ध पीने का पानी लोगों के घरों तक पहुंचाना और उज्ज्वला योजना, जिसके जरिये स्वच्छ ईंधन तक पहुंच जैसी योजनाओं ने सुधारों में योगदान दिया है. राज्य सरकार की पहल हर घर नल का जल योजना के जरिये तकरीबन राज्य के हर घर तक शुद्ध जल पहुंच गया है.

पटना. राज्य सरकार द्वारा किये जा रहे विकासात्मक कार्यों का असर दिखाई देने लगा है. राज्य में गरीबों की संख्या में लगातार कम हो रही है. बहुआयामी गरीबी (एमपीआइ) में सुधार का श्रेय मुख्य रूप से पोषण, स्कूली शिक्षा, स्वच्छता, शुद्ध जल, बिजली,बैंकिंग सर्विस, और खाना पकाने के ईंधन में प्रगति को दिया जा सकता है.

बिहार में हर घर तक शुद्ध जल पहुंच गया

बिहार में भी मुख्य रूप से स्वच्छता, बिजली, बैंकिंग, शुद्ध पीने का पानी लोगों के घरों तक पहुंचाना और उज्ज्वला योजना, जिसके जरिये स्वच्छ ईंधन तक पहुंच जैसी योजनाओं ने सुधारों में योगदान दिया है. राज्य सरकार की पहल हर घर नल का जल योजना के जरिये तकरीबन राज्य के हर घर तक शुद्ध जल पहुंच गया है.

बिहार में हर घर बिजली की उपलब्धता

वहीं,हर घर तक बिजली की उपलब्धता और जनधन खाते के माध्यम से वित्त के औपचारिक स्रोतों तक पहुंचने से भी सूचकांक के समग्र सुधार में योगदान दिया है. बहुआयामी गरीबी सूचकांक के विभिन्न संकेतकों द्वारा परिभाषित गरीबी से बाहर निकलने में मदद की है.

बिहार में 26.59% आबादी बहुआयामी गरीबी के पैमाने पर गरीब

बहुआयामी गरीबी के दायरे से बिहार के लोग तेजी से बाहर निकल रहे हैं,यानी गरीबी रेखा से बाहर निकलने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. वर्ष 2013-14 में राज्य की 56.34% आबादी बहुआयामी गरीबी के पैमाने पर गरीब थे. जबकि वर्ष 2022-23 तक आते-आते राज्य में गरीबों का प्रतिशत कम होकर 26.59% रह गया है.

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बिहार में गरीबों की संख्या करीब 3.72 करोड़

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार इस अवधि में बिहार में 3.77 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आये हैं. वर्ष 2022-23 में यदि राज्य की आबादी चौदह करोड़ मान ली जाये तो,राज्य में गरीबों की संख्या करीब 3.72 करोड़ रह गयी है.

बहुआयामी गरीबी मापने के लिये 12 पैमाने

आयोग के अनुसार राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी 12 सतत विकास लक्ष्यों से संबद्ध संकेतकों के माध्यम से दर्शाए जाते हैं. इनमें पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृत्व स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पीने का पानी, बिजली, आवास, संपत्ति और बैंक खाते शामिल हैं. इस पैमाने पर बिहार ने अच्छा प्रदर्शन किया है.

पिछड़े जिलों ने स्वास्थ्य क्षेत्र में लगायी ऊंची छलांग

बिहार सरकार द्वारा की जा रही सामाजिक-आर्थिक पहल का असर हर फिल्ड में दिखाई देने लगा है.कई पैमाने पर राज्य आज राष्ट्रीय औसत के करीब आता जा रहा है. राज्य के पिछड़े जिलों ने विकास योजनाओं में शानदार काम किया है. यही नहीं स्वास्थ्य क्षेत्र में भी ऊंची छलांग लगायी है. पिछड़े जिलों ने अपने ही पिछले प्रदर्शन को न केवल बेहतर किया है बल्कि अन्य राज्यों को पीछे भी छोड़ दिया है. इनका समेकित कार्य बीते वर्षों की तुलना में काफी प्रभावकारी रहा है. प्रसवपूर्व देखभाल में इन जिलों में काफी सुधार देखा गया है.

सुधार का स्तर 36% से बढ़कर 56%हो गया

सुधार का स्तर 36% से बढ़कर 56%हो गया है. इसी तरह संस्थागत प्रसव में भी सुधार 62%से बढ़कर 74 % तक पहुंच गया है.इस निर्धारित पैमान पर देश के दूसरे राज्यों के जिले, बिहार के इन जिलों से पीछे रह गए हैं. नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार के पिछड़े जिलों के बेहतर प्रदर्शन का विस्तार से जिक्र किया गया है. आयोग ने बिहार की पीठ भी थपथापायी है. खासकर स्वास्थ्य सेक्टर में बिहार के पिछड़े जिलों का काम अन्य राज्यों के लिए प्रेरक है.

बिहार के 13 जिले हैं विकास के कई पैमाने पर पिछड़े

बिहार के 13 जिले मुजफ्फरपुर, पूर्णिया, कटिहार, अररिया, जमुई, औरंगाबाद, बेगूसराय, लखीसराय, गया, बांका, नवादा, खगड़िया व शेखपुरा पिछड़े जिलों की सूची में शामिल हैं. इन जिलों में स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, वित्तीय स्थिति और आधारभूत अवसंरचना जैसे प्रमुख क्षेत्रों को विकसित करने की योजना पर विशेष रूप से काम हो रहा है. शिक्षा क्षेत्र के लिए मुख्य रूप से स्कूल में पढ़ाई और लाइब्रेरी की सुविधा, स्कूलों में आधारभूत संरचना, जिसमें टॉयलेट व पेयजल आदि मुख्य हैं.

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