Bihar Durga Puja: नर देवी मंदिर में शाम ढलने के बाद होते हैं अलौकिक चमत्कार, जानकर रह जाएंगे दंग

Bihar Durga Puja: भारत नेपाल सीमा पर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घने वन क्षेत्र में प्राचीन काल से आस्था का महा केंद्र नर देवी मंदिर स्थापित है. शारदीय और चैत्र नवरात्र में सैकड़ों भक्तों की भारी भीड़ यहां प्रतिदिन उमड़ती है. किंतु सालों भर माता के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 2, 2022 7:28 PM

Bihar Durga Puja: भारत नेपाल सीमा पर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घने वन क्षेत्र में प्राचीन काल से आस्था का महा केंद्र नर देवी मंदिर स्थापित है. शारदीय और चैत्र नवरात्र में सैकड़ों भक्तों की भारी भीड़ यहां प्रतिदिन उमड़ती है. किंतु सालों भर माता के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है. भक्तों का मानना है कि माता के दरबार में पहुंचने मात्र से ही उनकी मन्नत पूरी हो जाती हैं और उनके दुखों का निवारण हो जाता है. भक्तों की माने तो पूर्व समय में मंदिर की परिक्रमा माता की सवारी बाघ द्वारा प्रतिदिन सुबह शाम की जाती थी. भक्त शाम के बाद मंदिर में जाने से गुरेज किया करते थे.

नर बलि के कारण पड़ा नाम नर देवी

जानकारों की मानें तो नर देवी मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है. इतिहास के दो वीर योद्धा आल्हा उदल द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गयी थी. ऐसी मान्यता है कि बुंदेलखंड के राजा जासर के दो वीर और प्रतापी पुत्रों आल्हा और उदल द्वारा घने जंगल के बीच इस मंदिर में उनकी पूजा-अर्चना की जाती थी और वे श्रद्धा भाव से माता की पूजा में लीन रहा करते थे. पूजा समाप्त होने पर आल्हा उदल द्वारा माता के चरणों में अपने शीश की बलि दी जाती थी. किंतु माता का आशीर्वाद से उनके सिर फिर जुड़ जाते थे. नर बलि के कारण मंदिर का नाम नर देवी पड़ा.

मंदिर पहुंचने वाले भक्तों की मन्नतें होती हैं पूरी

नर देवी मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. दूर-दूर से भक्त यहां सालों भर माता के दर्शन को पहुंचते हैं. भक्तों की मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से उनके दुखों का निवारण हो जाता है. इस बाबत पूछे जाने पर मंदिर के पुजारी खाटू श्याम पूरी ने बताया कि आल्हा उदल द्वारा मंदिर की स्थापना की गयी थी. मंदिर की परिक्रमा बाघ द्वारा की जाती थी. परिक्रमा के बाद बाघ जंगल में वापस चला जाया करता था. किंतु कभी किसी भक्त के साथ कोई घटना नहीं घटी. चैत्र और शारदीय नवरात्र में वाल्मीकिनगर हरनाटांड़ थरुहट क्षेत्र और पड़ोसी देश नेपाल के अलावा उत्तर प्रदेश से भी भारी संख्या में भक्त माता के दर्शन को यहां पहुंचते हैं.

असाध्य रोग की दवा है अमृत कुआं का पानी

ऐसी मान्यता है कि मंदिर परिसर में स्थित कुआं जिसे अमृत कुआं कहा जाता है. जिससे पानी आज भी पूरी तरह स्वच्छ और निर्मल है. जिसका सेवन करने से कई असाध्य रोगों से लोगों को निजात मिल जाती है. मंदिर पहुंचने वाले भक्त अमृत कुआं का पानी का सेवन करने से नहीं चूकते. इस पानी को माता का प्रसाद भी माना जाता है.

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