Free Coronavirus Vaccine Promise By BJP In Menifesto For Bihar Chunav 2020 कोरोना वायरस संक्रमण काल में देश में पहला चुनाव बिहार विधानसभा का हो रहा है, जिसमें राजनीतिक दलों द्वारा कई वायदे किये जा रहे हैं. वहीं, निर्वाचन आयोग की ओर से जारी दिशानिर्देशों के उल्लंघन की खबरें भी आ रही हैं. इस संबंध में पेश हैं भारत के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त वाई एस कुरैशी से भाषा’ के पांच सवाल और उनके जवाब…
जवाब : चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन तो हर चुनाव में होता है और उसके खिलाफ कार्रवाई भी होती है. मैंने भी देखा कि लगातार आचार संहिता का उल्लंघन हो रहा है. अच्छी बात ये है कि निर्वाचन आयोग ने स्थिति से निपटने के लिए अपने दल तैनात किये हैं, उसने कड़ा रुख अपनाया है. अब इसका असर दिखना चाहिए.
जवाब : कोरोना वायरस नेता और आदमी में फर्क थोड़े ही करेगा. वह तो किसी को भी प्रभावित कर सकता है. नेताओं को यह बात समझनी चाहिए और उन्हें ही उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए. नेता यदि कोरोना के दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं तो यह चिंता की बात है. सभी को दिशानिर्देशों को पालन करना चाहिए.
खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार लोगों से अपील कर रहे हैं. हाल ही में उन्होंने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में भी सभी से बचाव के उपायों का पालन करने का आग्रह किया था. निर्वाचन आयोग को भी चाहिए कि वह दिशानिर्देशों का सख्ती से लागू करे. सभी को इसका पालन करना चाहिए. नहीं तो बड़ा नुकसान हो सकता है.
जवाब : कोरोना का टीका मुफ्त देने को यदि घोषणापत्र में शामिल किया जाता है तो कानूनी तौर पर कोई उल्लंघन का मामला नहीं बनता, लेकिन नैतिकता का सवाल जरूर है जो इसकी इजाजत नहीं देता. क्योंकि दूर-दूर तक अभी टीके की कोई संभावना नजर नहीं आती. इसका मकसद साफ है, वोटरों को लुभाना. नैतिकता के लिहाज से सवाल उठना लाजिमी है, लेकिन कानूनी तौर पर कोई दिक्कत नहीं है, कोई आपत्ति नहीं की जा सकती है.
जवाब : सवाल तो सही है आपका. क्योंकि राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र में कुछ भी वादे कर देते हैं और उसे निभाते नहीं हैं. इसका इलाज तो मतदाता ही कर सकते हैं. मतदाताओं को यह याद रहना चाहिए, मीडिया को भी इसे याद दिलाते रहना चाहिए कि पिछले चुनाव में फलां पार्टी ने फलां वादा किया था. विपक्षी दलों की भी भूमिका है. इसकी निगरानी करने का काम निर्वाचन आयोग का नहीं है. मतदाता ही इसका जवाब दे सकता है. यह उसी की जिम्मेदारी है.
यह मामला उच्चतम न्यायालय में भी गया है. अदालत के आदेश में निर्वाचन आयोग ने सभी दलों से इस संबंध में दिशानिर्देश को लेकर विचार विमर्श भी किया, लेकिन सभी दलों ने इसकी मुखालफत की. उनका तर्क था कि वह मतदाताओं से घोषणा पत्र के जरिए ही वादा कर सकते हैं. मेरे हिसाब से घोषणा पत्र की घोषणाओं पर लगाम नहीं लगायी जा सकती. यह उचित भी नहीं है. इस बारे में सुधार को लेकर राजनीतिक दलों और निर्वाचन आयोग में व्यापक विमर्श होना चाहिए.
जवाब : आप ठीक कह रहे हैं और यह बड़ी चिंता का विषय है. ऐसे लोगों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ती चली जा रही है. इसमें दो बातें हैं. एक तो राजनीतिक दलों का चाहिए कि वह ऐसे लोगों का अपना उम्मीदवार ना बनाए. लेकिन, पार्टियां जीत की संभावना को देखते हुए ऐसे लोगों को टिकट दे देती हैं. दूसरी बात यह है कि कानूनी तौर पर उन्हें हम रोकें.
निर्वाचन आयोग भी कहता रहा है और विधि आयोग की भी रिपोर्ट है कि जिन लोगों के खिलाफ गंभीर अपराध के मामले लंबित हैं उन्हें चुनाव लड़ने से वंचित किया जाए. लेकिन, देश का कानून ये है कि जब तक किसी के खिलाफ दोष सिद्ध नहीं हो जाता, आप कुछ नहीं कर सकते. छोटे-मोटे आरोपों को तो नजरअंदाज भी किया जा सकता है, लेकिन बलात्कार, हत्या और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों या फिर ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर हो चुके हों, कैसे नजरअंदाज किया सकता है. ऐसे लोगों के चुनाव लड़ने पर रोक लगायी जानी चाहिए. यह निर्वाचन आयोग की भी लंबे समय से मांग रही है.
Upload By Samir Kumar