बिहार विधानसभा चुनाव Updates: 43 साल बाद ये पहला मौका जब बिहार के चुनावी मैदान में लालू यादव नहीं हैं , पड़ रहा कितना असर?
लालू प्रसाद यादव एक नाम जो जेहन में आते ही कई सारी चीजें दिमाग में चलने लगती है. बिहार में चुनावी माहौल लेकिन ये नेता मैदान में नहीं है. उनकी बनाई पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के होर्डिंग और पोस्टर से गायब हैं. टीवी में कोई बयान नहीं है. बिहार में करीब 43 साल बाद ये पहला मौका होगा जब कोई चुनाव तो है लेकिन उसमें लालू नहीं होंगे.
Bihar Assembly Election 2020: लालू प्रसाद यादव एक नाम जो जेहन में आते ही कई सारी चीजें दिमाग में चलने लगती है. बिहार में चुनावी माहौल लेकिन ये नेता मैदान में नहीं है. उनकी बनाई पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के होर्डिंग और पोस्टर से गायब हैं. टीवी में कोई बयान नहीं है. बिहार में करीब 43 साल बाद ये पहला मौका होगा जब कोई चुनाव तो है लेकिन उसमें लालू नहीं है. . 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी वो जेल में ही थे. लेकिन राजद के इतिहास में यह पहला मौका है जब विधानसभा चुनाव में प्रत्यक्ष तौर पर नहीं है.
ये अलग बात है कि राजद के करीब करीब सारे फैसले बगैर उनसे पूछे नहीं लिए जाते. वो ट्वीटर के माध्यम से लोगों से जुड़े हुए हैं. लालू प्रसाद पहली बार 1977 में बिहार के सारण से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे, तब से बिहार के हर चुनाव में लालू प्रसाद (LaLu prasad yadav) की अपनी भूमिका रही है. चाहे वो चुनाव हार रहे हों या फिर वे चुनाव जीत रहे हों.
बीते चार दशकों में बिहार की राजनीति में लालू की छाप दिखी है.अपनी वाक्पटुता और गंवई अंदाज से दर्शकों और श्रोताओं को हंसाते-हंसाते लोटपोट करने में लालू यादव का कोई सानी नहीं है कोरोना के कारण इस बार बिहार चुनाव का मिजाज भी बदला हुआ है. अभ तक ताबड़तोड़ रैलियों पर ब्रेक लगा हुआ है.
चारा घोटाला मामले में जेल में बंद लालू प्रसाद यादव तमाम विवाद और आरोप के बीच राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद इस देश का वो चेहरा भी हैं जो सालों पुरानी व्यवस्था को कुचलकर आगे बढ़ता है. गोपालगंज के बेहद ही गरीब परिवार में पैदा हुए लालू सिर्फ अपने दम पर बिहार के मुख्यमंत्री बने और बाद में देश के रेलमंत्री भी बने. मगर, 15 साल तक बिहार की सत्ता पर काबिज रहने के बाद लालू को 2005 के राज्य विधानसभा चुनाव में उस वक्त एक जबरदस्त झटका लगा, जब कभी अजेय माने जा रहे उनके राष्ट्रीय जनता दल को हार का मुंह देखना पड़ा.
इसके बाद 2010 के चुनाव में उनकी पार्टी 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में महज 22 सीट पर सिमट गई थी. 2015 में नीतीश कुमार की पार्टी जद यू से गठबंधन के बाद फिर से सत्ता में लौटे लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश बने. उनके दोनों बेटों के राजनीति सफऱ का आगाज हुआ. तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री बने जबकि तेज प्रताप यादव को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया. दो साल बाद हालात बदल गए, नीतीश ने गठबंधन तोड़ा तो तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री से नेता प्रतिपक्ष बन गए. अब 2020 के चुनाव में लालू नहीं हैं लेकिन तेजस्वी मुख्यमंत्री बनने के लिए मैदान में है.
राजद को पड़ रहा कितना असर
लालू यादव के इस बार मैदान में न होना राजद के लिए बड़ा झटका साबित हुआ है ये साफ तौर पर दिख रहा है. महगठबंधन से पहले उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी की पार्टी अलग हो गई. जिस वक्त महागठबंधन में सीटे बंटवारे का ऐलान हो रहा था मुकेश सहनी का पार्टी नाराज हो गई अलग होने का ऐलान कर दिया. महागठबंधन में राजद (144) , कांग्रेस (70) , माले(19) सीपीआई( 06) व सीपीएम (4 ) ही है. जानकारों का कहना है जातिगत समीकरण बनाने और साधने में तेजस्वी यादव से चूक हुई है. अगर लालू यादव मौजूद होते तो महागठबंधन का कद आज बड़ा होता.
Posted By: Utpal Kant