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बिहार विधानसभा चुनाव 2020: रेणु की धरती अररिया में सज गया चुनावी युद्ध का मैदान, तस्लीमुद्दीन की राजनीतिक विरासत संभालने की है जद्दोजहद…

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 मृगेंद्र मणि सिंह,अररिया: नेपाल की सीमा से सटे अररिया सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, तो राजनीतिक दृष्टि से भी उर्वर भी. अररिया के उत्तर में नेपाल तो पूरब में किशनगंज, पश्चिम में पूर्णिया व सुपौल तो दक्षिण में पूर्णिया जिले की सीमा सटती हैं. जिले में सिकटी, जोकीहाट, रानीगंज (सुरक्षित) फारबिसगंज, नरतपगंज, अररिया विधानसभा सीटे हैं. बाढ़ व सुखाड़ आज भी अररिया जिलेवासियों की सबसे बड़ी समस्या है. इस बार विधानसभा चुनाव सामने है, तो जाहिर सी बात है यह समस्याएं मुद्दे तो बनेंगे. बहरहाल चुनाव के ऐन वक्त भाजपा से राजद में गये जिले के दो कद्दावर नेता का निधन जिलेवासियों को हतप्रभ कर चुका है.

By Prabhat Khabar News Desk | October 2, 2020 9:10 AM
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बिहार विधानसभा चुनाव 2020,मृगेंद्र मणि सिंह,अररिया: नेपाल की सीमा से सटे अररिया सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, तो राजनीतिक दृष्टि से भी उर्वर भी. अररिया के उत्तर में नेपाल तो पूरब में किशनगंज, पश्चिम में पूर्णिया व सुपौल तो दक्षिण में पूर्णिया जिले की सीमा सटती हैं. जिले में सिकटी, जोकीहाट, रानीगंज (सुरक्षित) फारबिसगंज, नरतपगंज, अररिया विधानसभा सीटे हैं. बाढ़ व सुखाड़ आज भी अररिया जिलेवासियों की सबसे बड़ी समस्या है. इस बार विधानसभा चुनाव सामने है, तो जाहिर सी बात है यह समस्याएं मुद्दे तो बनेंगे. बहरहाल चुनाव के ऐन वक्त भाजपा से राजद में गये जिले के दो कद्दावर नेता का निधन जिलेवासियों को हतप्रभ कर चुका है.

महादलित आबादी का खासा प्रतिनिधत्वकर्ता के रूप में जाने जाते थे आनंदी प्रसाद यादव व रामजीदास ऋषिदेव

पिछड़ी जाति से आने वाले पूर्व विधायक आनंदी प्रसाद यादव व पूर्व मंत्री रामजीदास ऋषिदेव जो महादलित आबादी का खासा प्रतिनिधत्वकर्ता के रूप में जाने जाते थे. स्व आनंदी प्रसाद यादव सिकटी से दो बार विधायक, तो रामजीदास ऋषिदेव एक बार 13 माह के सांसद तो रानीगंज सुरक्षित सीट से विधायक बन कर मंत्री रह चुके थे. इस बार आनंदी प्रसाद यादव व पूर्व मंत्री स्व रामजीदास ऋषिदेव राजद के साथ थे, लेकिन अचानक इनका निधन हो गया. ऐसे में राजद के लिए महत्वपूर्ण क्षति मानी जा सकती है. भाजपा में भी खुलकर तो नहीं, लेकिन मौन संग्राम चल रहा है. भाजपा की दो सुरक्षित माने जाने वाली सीटें सिकटी व फारबिसगंज से विरोध के स्वर मुखर है. नतीजा यहां पर वर्तमान विधायकों को ऐसे कार्यकर्ताओं की नाराजगी नुकसान पहुंचा सकती है. कमोबेश यही हाल नरपतगंज में भी भाजपा के साथ चलता दिख रहा है. यहां राजद से अनिल यादव वर्तमान विधायक हैं.

पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी परेशानी का सबब बन सकता है…

रानीगंज सुरक्षित में जदयू विधायक के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी परेशानी का सबब बन सकता है. अररिया में कांग्रेस विधायक के सीट पर भी कई दावेदार मुंह बाये खड़े हैं. वहीं, जोकीहाट विधानसभा सीट का चुनाव इस बार एक परिवार के बीच हो होना तय माना जा रहा है. बहरहाल अंतिम समय में कुछ बात बने तो सो अलग बात है, लेकिन एक ही परिवार के दो बेटे एक -दूसरे पर खुले मंच से भी आरोप प्रत्यारोप लगाने से नहीं चूक रहे हैं.

सिकटी विधानसभा का हाल…

दो-दो बार रामेश्वर यादव व आनंदी यादव ने किया है प्रतिनिधित्व राजनीतिक रूप से समृद्ध सिकटी विधानसभा क्षेत्र में समस्याओं का अंबार है. लोगों को सड़क, बिजली की समस्याओं से बहुत हद तक मुक्ति मिल चुकी है, लेकिन बाढ़ व कटाव की पीड़ा समाप्त होने की जगह बढ़ती ही जा रही है. यहां से अभी भाजपा के विधायक विजय कुमार मंडल हैं. वे विगत चुनाव में जदूय के शत्रुघ्न मंडल का मात देकर यहां तक पहुंचे थे. इस बार भाजपा -जदयू की ट्यूनिंग है तो लड़ाई को दिलचस्प राजद बनायेगी.

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रानीगंज विस में रानीगंज प्रखंड

कई दिग्गज को भेजा विधानसभा 2009 में परिसीमन के बाद रानीगंज विस में रानीगंज प्रखंड की 32 पंचायत व भरगामा प्रखंड की सात पंचायतों को शामिल किया गया है. रानीगंज विधानसभा सीट में एक भी कल- कारखाने नहीं हैं. इसलिए मजदूरी के लिए पलायन आज भी यहां की मुख्य समस्या है. फिलहाल इस सीट पर एनडीए व महागठबंधन दोनों में दावेदारों की लंबी कतार है.

नरपतगंज विधानसभा कई मायनों में महत्वूपर्ण

14 बार हुए चुनावों में 13 बार यादव उम्मीदवार के सिर सजा विधायक का सेहरा जिले की नरपतगंज विधानसभा कई मायनों में महत्वूपर्ण है. यहां पर कुल 14 बार चुनाव हुए हैं. जिसमें 13 बार यादव उम्मीदवारों ने ही जीत दर्ज की है. इसलिए कोई भी दल यहां पर यादव उम्मीदवारों को ही प्रश्रय देता है. 2009 के परिसीमन के बाद इस विधानसभा का भूगौल बदला है. इसके बाद यहां नरपतगंज की 29 पंचायत व भरगामा प्रखंड की 15 पंचायत शामिल हैं. राजद से विधायक अनिल यादव वर्तमान विधायक हैं तो इस चुनाव को ले राजद व भाजपा से कई नाम सामने आ रहे हैं.

 फणीश्वर नाथ रेणु को लेकर फारबिसगंज क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित

भाजपा के लिए रही है अब तक सुरक्षित नेपाल से जुड़ा होने व फणीश्वर नाथ रेणु को लेकर यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहा है. यहां पहले तो कांग्रेस का दबदबा रहा. फिलहाल भाजपा यहां चौथी बार जीत हासिल कर पांचवें जीत के लिए प्रयासरत है. इधर, कांग्रेस नीत गठबंधन भी यहां पर जीत के लिए प्रयासरत है. यहां की मूल समस्या बाढ़ व बेरोजगारी है. कुछ उद्योग धंधों का अब तक स्थापित नहीं हो पाना भी परेशानी का सबब है. फारबिसगंज हवाई पट्टी के चालू होने का भी लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

दादा के बाद पोता भी बने विधायक, इस बार किसकी बारी?

अररिया विधानसभा क्षेत्र में अररिया नप के 29 वार्ड हैं, जबकि अररिया प्रखंड की 30 पंचायत हैं. 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में निर्दलीय व 1957 में पुन: कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने वाले जियाउर्रहमान के पोते आबिदुर्रहमान ने पिछले विधानसभा में जीत दर्ज की. उनके पिता मोइदुरर्हमान भी विधायक व मंत्री रहे थे, लेकिन उन्होंने यह जोकीहाट विधानसभा से चुनाव जीतकर पाया था. बहरहाल यहां से विजय कुमार मंडल परिसीमन से पूर्व एक बार निर्दलीय तो एक बार बीपीपी व लोजपा से विधायक रह चुके हैं. इसी सीट से जीत दर्ज कर वे मंत्री भी बने. यही नहीं, इस सीट से अररिया के वर्तमान सांसद प्रदीप कुमार सिंह भी विधानसभा पहुंच चुके हैं. इस बार टिकट की दौड़ में कई प्रत्याशी तो एनडीए प्रत्याशी सीट शेयरिंग का इंतजार कर रहे हैं. कुछ नये चहरों को चुनाव में उतारे जाने की भी चर्चा है.

जोकीहाट में तस्लीमउद्दीन की राजनीतिक विरासत संभालने की जद्दोजहद

तस्लीमउद्दीन की राजनीतिक विरासत संभालने की जद्दोजहद जोकीहाट विधानसभा की बात करनी होगी तो अल्हाज तस्लीम साहब का नाम न लिया जाये, यह संभव नहीं है. यहां पर हुए 14 चुनाव में चार बार ही विरोधी खेमे ने जीत दर्ज की है. नहीं तो तस्लीमउद्दीन के परिवार का ही दबदबा रहा है. 17 सितंबर , 2017 को सांसद तस्लीमउद्दीन के निधन के बाद उनके पुत्र सरफराल आलम उपचुनाव में अररिया के सांसद बने. सरफराज आलम के सांसद बनने के बाद रिक्त हुए सीट पर तस्लीम साहब के छोटे बेटे शाहनवाज आलम ने भी विधानसभा उपचुनाव में जीत दर्ज की. 1969 में हुए चुनाव के बाद से लेकर उपचुनाव तक के नतीजे बताते हैं कि विरोधियों की कोशिशों व एकजुटता के बावजूद विरोधी दो-चार बार ही तस्लीम के इस किला को भेद पाये हैं. नहीं तो तस्लीम परिवार का दबदबा रहा है. हालांकि, राजद के टिकट के दावेदारी को लेकर परिवार में ही वाक युद्ध छिड़ा हुआ है. खुद पूर्व सांसद सरफराज आलम ने भी चुनाव लड़े जाने के संकेत दिया है, जबकि उनके छोटे भाई शाहनवाज आलम वर्तमान में जोकीहाट के विधायक हैं. इधर ,एनडीए व अन्य दल भी मजबूत उम्मीदवार को मैदान में उतारने के मूड में हैं.

Posted By: Thakur Shaktilochan Shandilya

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