कंचन, गया : चुनाव आते ही कई व्यवसाय फलने-फूलने लगते हैं. चुनाव के पीरिडय में एक कहावत चरितार्थ हाेने लगती है- ‘माल महाराज के मिर्जा खेले हाेली.’ उम्मीदवाराें के रुपये पर पार्टी नेता व कार्यकर्ताओं की चांदी कटने लगती है.
मतदान के दिन तक नेताओं व कार्यकर्ताओं के न केवल कुर्ते-पायजामे का क्रीज टाइट रहता है, बल्कि कई जाेड़े कुर्ते-पायजामे भी नये सिल जाते हैं. और-ताे-और गाड़ियाें में ईंधन के खर्च के लेकर स्वयं के दिन-रात का भाेजन भी अपने घर या पैसे का नहीं हाेता है. अब उम्मीदवार आर्थिक रूप से कमजाेर है या संपन्न इसकी परवाह नेता, कार्यकर्ता नहीं करते.
उनके पास रुपये आ कहां से रहे हैं. धन जुटाने में उम्मीदवाराें काे कितने पसीने बहाने पड़ते हैं, इसकी परवाह नहीं हाेती. उन्हें बस चिंता रहती है कि कुर्ता-पायजामा पहनकर निकल जाना है आैर नेताआें के पास बैठकर सही-गलती आंकड़े बताकर अपना उल्लू सीधा करते रहना है.
यह हर किसी उम्मीदवार के साथ लागू हाेता है. उम्मीदवार अपनी धुन में यह देख ही नहीं पाता, कि किधर क्या हाे रहा है. उन्हें काैन धाेखे में रख रहा है या काैन पूरी तन्मयता के साथ उसके साथ खड़ा है.
Posted by Ashish Jha