Bihar Chunav Opinion Poll Survey News: बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के नतीजे तो 10 नवंबर को आएंगे लेकिन उससे पहले प्रभात खबर चुनाव विश्लेषण में महारत रखनेवाली संस्थाओं लोकनीति और सीएसडीएस के विशेषज्ञों ने सर्वेक्षण (ओपिनियन पोल ) किया है. जानिए लोकनीति और सीएसडीएस के सर्वेक्षण की विस्तृत रिपोर्ट क्या कहती है. सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS ) के लोकनीति कार्यक्रम के तहत 10 से 17 अक्तूबर के दौरान बिहार के 37 विधानसभा क्षेत्रों के 3731 मतदाताओं के बीच चुनाव पूर्व सर्वेक्षण किया गया.
पिछले हफ्ते की स्थिति के अनुसार, एनडीए में शामिल चार दल – जेडीयू, बीजेपी, एचएएम (हम) और वीआइपी हैं, जो आरजेडी, कांग्रेस और तीन कम्युनिस्ट पार्टियों के महागठबंधन पर स्पष्ट बढ़त रखते हैं. सर्वेक्षण में पाया गया कि हर पांच मतदाताओं में दो से थोड़े कम की वोटिंग च्वाइस एनडीए थी. वहीं, महागठबंधन को लगभग एक तिहाई वोटरों द्वारा पसंद किया गया. वहीं, चुनावों के ठीक पहले एनडीए से अलग हुई लोजपा को छह प्रतिशत वोट मिले. एनडीए और महागठबंधन के बीच का यह गैप यदि चुनाव के दिन तक बना रहता है, तो नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए को बढ़त देने के लिए पर्याप्त होना चाहिए.
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अब तक के हमारे चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में पता चलता है कि बुरी तरह से विभाजित विपक्ष के कारण एनडीए को लाभ मिल रहा है और नीतीश के विरोधी वोटों का बिखराव हो रहा है. लेकिन नीतीश कुमार के लिए अब भी दो चिंताएं हैं. एक तो पहले की तुलना में उनकी लोकप्रियता की रेटिंग में गिरावट आयी है, हालांकि वे अब भी किसी भी अन्य नेता की तुलना में अधिक लोकप्रिय हैं. वहीं जेडी (यू) के लिए दूसरी चिंता एलजेपी की क्षमता है, जो उनका खेल बिगाड़ने की भूमिका निभा रही है.
निर्दलीय और छोटे दल जैसे आरएलएसपी, बीएसपी, एमआइएम, जाप और नवगठित प्लुरल पार्टी सभी मिल कर वोट का एक बड़ा हिस्सा (बिहार में असामान्य नहीं है) अपने पक्ष में कर सकते हैं. ये दल लोजपा के साथ मिल कर किसी का भी खेल बिगाड़ कर कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं, विशेष रूप से जहां क्लोज फाइट की गुंजाइश बन रही है.
वैसे तो एनडीए इस समय एक मजबूत स्थिति में दिखाई देता है, लेकिन सर्वेक्षण में यह पाया गया कि लगभग 10 प्रतिशत मतदाता यह सुनिश्चित नहीं कर पाये हैं कि वे किसे वोट देंगे. साथ ही 14 प्रतिशत मतदाता, जिन्हें प्रिफरेंस दिया गया, उन्होंने यह भी कहा कि वे वोटिंग डे के दिन तक अपनी वर्तमान पसंद को बदल सकते हैं. इसमें दो चीजें करने की क्षमता है – या तो एनडीए को एक बड़ी जीत की ओर ले जाना, या फिर मुकाबले को निकटतम बना कर चुनाव को अभी के अनुपात में और भी दिलचस्प बना देना.
यह बताना मुश्किल है कि ये मतदाता किस रास्ते पर जायेंगे. हमारे सर्वेक्षण में, अनिर्णय की स्थिति वाले मतदाताओं में सार्वाधिक गैर-साक्षर, दलित, मुस्लिम, कुशवाहा, महिला और बुजुर्ग पाये गये. इसके अलावा, बिहार में चुनाव पूर्व और बाद के सर्वेक्षणों में नतीजे अलग-अलग आये, वह इसलिए नहीं कि सर्वे खराब तरह से किये गये थे, बल्कि इसलिए क्योंकि वोटर का व्यवहार लगातार अस्थिर हुआ है.
चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में पाया गया कि सभी मतदाताओं में से एक चौथाई से अधिक मतदाता (लगभग 27%) पार्टी या मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की जगह राजनीतिक पार्टी द्वारा चुने गये स्थानीय उम्मीदवार के आधार पर अपना मतदान करेंगे. यह एक महत्वपूर्ण अनुपात है. बड़ी संख्या में लोगों द्वारा निर्वाचन क्षेत्र के उम्मीदवार को ध्यान में रखते हुए मतदान करने की बात कहने का कारण उनके निर्वाचन क्षेत्र के अलग-अलग दल के वर्तमान विधायक से नाराजगी भी हो सकती है.
सर्वेक्षण में लगभग आधे मतदाताओं को अपने मौजूदा विधायकों के प्रदर्शन से असंतुष्ट पाया गया, विशेष रूप से भाजपा और जदयू के विधायकों से और इसलिए उम्मीदवार के आधार पर ही ऐसे मतदाताओं की दिशा तय होगी. अभी के लिए, विभिन्न जातियों और समुदायों के वर्तमान झुकाव को देखते हुए यह प्रतीत होता है कि मतदान में एंटी-इनकंबेंसी की मजबूत भावना के बावजूद (सभी उत्तरदाताओं में से कम से कम हर पांच में से दो ने यह स्पष्ट किया कि वे सरकार की वापसी नहीं चाहते हैं) महागठबंधन पर एनडीए की बढ़त बनी रहेगी.
एनडीए को यह लाभ काफी हद तक उच्च जाति, मध्यम ओबीसी व ईबीसी तथा मुसहर-महादलित एकीकरण के कारण है, क्योंकि इन समुदायों के आधे से अधिक मतदाता एनडीए की ओर झुकाव रखते हैं और चाहते हैं कि मौजूदा सरकार की सत्ता में वापसी हो. अगर एकसाथ देखा जाये तो इन समुदायों के मतदाताओं की संख्या 50 प्रतिशत से थोड़ी अधिक है. दूसरी तरफ राजद के नेतृत्व वाली महागठबंधन अपने पारंपरिक मुस्लिम-यादव (या एमवाइ जैसा कि जाना जाता है) गठबंधन (कुल मतदाताओं के एक तिहाई के आसपास) के बीच अच्छा प्रदर्शन कर रहा है. ‘एम’ के मुकाबले ‘वाइ’ का मजबूत झुकाव दिख रहा है.
भूमिहारों को छोड़कर, एनडीए के मूल मतदाताओं में कोई बड़ी सेंध लगाने में महागठबंधन असमर्थ है, कम-से- कम अभी तक तो ऐसा नहीं दिख रहा. दलित मतदाताओं में विशेष रूप से रविदास और पासवान नीतीश कुमार के सत्ता में बने रहने की तुलना में बाहर होते देखना चाहते हैं, लेकिन वे अपने वोट विकल्प को लेकर बुरी तरह से विभाजित हैं. वे आरएलएसपी, बीएसपी और एमआइएम द्वारा प्रदान किये गये तीसरे विकल्प की ओर आकर्षित भी लगते हैं.
चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में लगभग सभी समुदायों के फोर-फिफ्थ वोटर्स ने वोट डालने को लेकर सहमति जतायी (कुल मिलाकर 87 प्रतिशत ने कहा कि वे चुनाव में मतदान करने की पूरी संभावना रखते हैं). मुस्लिम समुदाय के मतदाता, जिन्हें एमजीबी/राजद का पारंपरिक वोटर माना जाता है, उनमें अपेक्षाकृत कम उत्साह पाया गया. कुल 79 प्रतिशत ने कहा कि वे मतदान करने की अत्यधिक संभावना रखते थे.
Posted By: utpal Kant