Bihar election 2020 : बैलगाड़ी की सवारी कर बेनीपुरी ने लड़ा था चुनाव
राजनीति का एक दौर ऐसा भी था, जब नेता जनता के बीच सादगी के साथ जाना बड़प्पन समझते थे. साहित्य के क्षेत्र में कलम के जादूगर के नाम से प्रसिद्ध रामवृक्ष बेनीपुरी ने राजनीति में भी किस्मत आजमायी थी और सफल भी हुए.
राजनीति का एक दौर ऐसा भी था, जब नेता जनता के बीच सादगी के साथ जाना बड़प्पन समझते थे. साहित्य के क्षेत्र में कलम के जादूगर के नाम से प्रसिद्ध रामवृक्ष बेनीपुरी ने राजनीति में भी किस्मत आजमायी थी और सफल भी हुए. 1957 के विधान सभा चुनाव में उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी से कटरा सीट से चुनाव लड़ा था. चुनाव में उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार को हराया था. चुनाव के अनुभव का जिक्र बेनीपुरी जी ने अपने संकलन (डायरी के पन्ने) में किया है. अपने मित्रों से उन्होंने बड़े बेबाकी से कहा था कि पिछला चुनाव मैंने हवा गाड़ी से लड़ा था.
हवा में ही रह गया. इस बार मैंने जमीन पकड़ी है, अब कौन पैर उखाड़ सकता है. बात सही निकली, कांग्रेस प्रत्याशी को अच्छे वोट से परास्त किया. उन्होंने चुनाव प्रचार के लिए बैलगाड़ी और हाथी का सहारा लिया. चुनाव के अनुभव को साझा करते हुए वह लिखते हैं- चुनाव के चक्रव्यूह में हूं. बिगुल बज गया है. फौज ने कूच कर दी. अब आगे-पीछे देखने का मौका कहां. जो होना होगा, होगा. चुनाव में प्रचार के लिए एक सज्जन से चुनाव भर के लिए मोटर गाड़ी देने के लिए बात की थी, लेकिन वह शुरू में ही मुकर गये. बड़ी चोट लगी, लेकिन तय किया कि इस बार बैलगाड़ी व हाथी से चुनाव प्रचार करूंगा.
एक मित्र ने हाथी दे दिया था. बस पूरी लड़ाई बैलगाड़ी व हाथी पर लड़ ली. बेनीपुरी ने कांग्रेस प्रत्याशी पर 2646 वोट से विजय प्राप्त की. जीत की खुशी का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा है कि परिणाम के बाद होली का पर्व था. ऐसी होली जिंदगी में कभी नहीं खेली थी. सारा गांव उल्लास में नाच रहा था.बेनीपुर से लेकर आसपास के गांव में जश्न मन रहा था.उस समय कटरा विधानसभा में औराई व मीनापुर क्षेत्र आते थे. मीनापुर कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था. पूरे चुनाव अभियान में बेनीपुरी ने महज पांच हजार रुपये खर्च किये थे. इसकी चर्चा करते हुए कहते हैं कि हाथ हथफेर पैसा खर्च किया.
नामांकन के लिए 250 रुपया मुश्किल हो रहा था.बरात की तरह प्रचार के लिए काफिला बेनीपुरी ने बैलगाड़ी, हाथी व साइकिल से प्रचार किया था. उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बराती की तरह लोग उनके पीछे चलते थे. बेदौल के विजय राय ने प्रचार के लिए अपना हाथी दिया था. बेनीपुरी चुनाव प्रचार के बारे लिखते हैं कि हाथी पर बैठे-बैठे बदन अकड़ जाता था. यह कमबख्त जानवर चलता है तो सारा बदन झकझोर देता है.
बैलगाड़ी तो भी वही है. उसमें चरमर और देहात की टूटी-फूटी सड़कें.बैलगाड़ी पर खाने – पीने का समान रहता था. बेनीपुरी ने अपने लिए बैलगाड़ी व कार्यकर्ताओं के लिए साइकिल की व्यवस्था की थी. गांव में मित्र से छह-सात सौ रुपये लेकर 30 साइकिल की मरम्मत करवा दी थी. ये 30 कार्यकर्ता जिस ओर चलते गांव-गांव से साइकिलों का तांता लग जाता. शाम होते गांव कस्बे में भंडारा लग जाता था.
posted by ashish jha