Loading election data...

Bihar election 2020 : उम्मीदवारों के खर्च की सीमा और मर्यादा

राजनीतिक दलों द्वारा आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में खर्च की सीमा बढ़ाये जाने की मांग की गयी है. दलों ने इसके पीछे कोरोना संक्रमण के दौरान सोशल मीडिया पर खर्च को कारण बताया है. हालांकि, राजनीतिक दलों के द्वारा समय-समय पर खर्च की सीमा बढ़ाये जाने की मांग होती रहती है.

By Prabhat Khabar News Desk | September 17, 2020 4:57 AM

राजीव कुमार : राजनीतिक दलों द्वारा आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में खर्च की सीमा बढ़ाये जाने की मांग की गयी है. दलों ने इसके पीछे कोरोना संक्रमण के दौरान सोशल मीडिया पर खर्च को कारण बताया है. हालांकि, राजनीतिक दलों के द्वारा समय-समय पर खर्च की सीमा बढ़ाये जाने की मांग होती रहती है. बिहार में खर्च की सीमा विधानसभा के लिए 16 से बढ़ाकर 28 लाख रुपये और लोकसभा के लिए 40 लाख से बढ़ाकर 70 लाख रुपये निर्धारित किया गया है. चुनाव में कोई भी उम्मीदवार अपनी मर्जी से खर्च करने के लिए स्वतंत्र नहीं है.

कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स, 1961 के अनुसार चुनाव खर्च की अधिकतम सीमा से इसे अधिक नहीं होना चाहिए. अगर ऐसा कोई करता है तो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 (6) के अधीन यह एक भ्रष्ट आचरण माना जायेगा. व्यावहारिक तौर पर इस नियम का अनुपालन नहीं होता है. नैतिकता की जिस दुइाई के साथ शपथ ली जाती है गड़बड़ियों की शुरुआत वहीं से होती है. इस संबंध में एडीआर के अध्ययन का उल्लेख करना उचित होगा. 2009 के आकलन के अनुसार लोकसभा चुनाव के 6753 उम्मीदवारों में से केवल चार ने कहा कि उन्होंने खर्च की सीमा से अधिक खर्च किया था.

34 उम्मीदवारों ने कहा कि उन्होंने खर्च की सीमा का 90 से 95 प्रतिशत किया था. आकलन के अनुसार 99 प्रतिशत उम्मीदवारों ने कानूनी शपथ पत्र में लिख कर बताया कि उन्होंने खर्च की सीमा का केवल 45 से 55 प्रतिशत ही खर्च किया. हाल में हरियाणा विधानसभा चुनाव(2019)में यह देखा गया कि 50 सदस्यों ने 40 प्रतिशत से भी कम व्यय किया. सवाल है कि जब हमारे जन प्रतिनिधि खर्च के मामले में इतने किफायती हैं तो फिर खर्च बढ़ाने की वकालत क्यों करते रहते हैं ? चुनाव पैसे के इस्तेमाल की कहानी भी किसी से छिपी नहीं है. पंचायत से लेकर लोकसभा के चुनाव में पैसे का खेल खेला जाता है जिससे पूरी चुनावी प्रक्रिया ही दूषित हो गयी है. इस संबंध में बिहार के एक चर्चित सांसद ने अपने स्टिंग ऑपरेशन में साक्षात्कार के दौरान कुबूल किया कि एक चुनाव में पांच से छह करोड़ खर्च होते हैं, जबकि 70 लाख तय है.

चुनाव के दौरान वोट खरीदे जाते हैं. उम्मीदवारों के समक्ष सीमा होती है, जबकि राजनीतिक दलों के पास कोई सीमा नहीं होती है. वह चुनाव में अंधाधुंध खर्च करते हैं. एक आकलन के अनुसार प्राय: उम्मीदवारों द्वारा आयोग को दिये जाने खर्च भ्रमित करने वाले होते हैं. चुनाव खर्च की सीमा एक निश्चित अवधि 30 दिनों के अंदर देना होती है, किंतु लंबे समय बाद भी खर्च का ब्योरा आयोग की वेबसाइट पर अपलोड नहीं होता है. यह नियम के विरुद्ध है. यदि 45 दिनों के अंदर वे खर्च का ब्योरा नही देते हैं तो उनके विरुद्ध याचिका दायर करने का अधिकार मिलना चाहिए. निगरानी की व्यवस्था भी होनी चाहिए. साथ ही कोई भी कॉलम खाली ना हो यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

लेखक एडीआर सेजुड़े हैं. ये लेखक के निजी विचार हैं.

posted by ashish jha

Next Article

Exit mobile version