अनिकेत त्रिवेदी, पटना : इस बार के विधानसभा चुनाव में जिस हिसाब से गठबंधन और पार्टियों के समीकरण बदले हैं, उसका असर चुनाव परिणाम आने के बाद भी दिखेगा. एनडीए से लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के अलग होने और राजद वाले महागठबंधन से वीआइपी का अलग होना आगे चल कर चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकता.
इसके अलावा छोटी पार्टियों के साथ पप्पू यादव की टीम कितनी असरदार होती है, इसका प्रभाव भी अगली सरकार पर देखने को मिलेगा. सवाल है कि अगर जदयू व भाजपा के एनडीए और राजद, वाम और कांग्रेस के गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो इससे क्या परिणाम होंगे? इन दोनों गठबंधनों को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में कई छोटी पार्टियां मजबूत होगी. जो आगे चल कर पोस्ट इलेक्शन को दिलचस्प कर देंगी.
चुनाव में लोजपा दावा कर रही है कि वो चुनाव भले ही एनडीए के साथ नहीं लड़ रही है, लेकिन चुनाव बाद भाजपा को समर्थन कर सरकार बनायेगी. बिहार में भाजपा का नेतृत्व रहेगा. मगर, भाजपा की ओर से इस दावे को खारिज कर दिया गया है. बीजेपी नीतीश के नेतृत्व में ही रहने की बात कह रही है. वहीं दूसरी तरफ वीआइपी राजद गठबंधन से अलग होकर एनडीए में आ चुकी है. मांझी भी कुछ दिन पहले ही राजद को छोड़ जदयू के साथ आये हैं. ऐसे में इन सभी पार्टियों के नये गठबंधन चुनाव बाद कितने स्थायी होंगे? इस पर संशय किया जा सकता है.
वर्ष 2005 के फरवरी में हुए चुनाव में पोस्ट इलेक्शन में पार्टियों की गुणा गणित बेहद पेंचिदा हो गयी थी. राजद को 75, जदयू को 55, बीजेपी को 37, कांग्रेस को 10 और लोजपा को 29 सीटें मिली थी. भाजपा और जदयू के मिलने के बाद भी सरकार बनाने के जादुई आंकड़ों नहीं मिल पा रहे थे. लोजपा के अपने शर्त के कारण राजद को समर्थन नहीं दी. लगभग छह माह के गुणा गणित के बाद सरकार नहीं बना पायी और दोबारा चुनाव में जाना पड़ा.
Posted by Ashish Jha