हिसुआ : 1957 में हिसुआ विधानसभा सीट बना इसके बाद लगातार 20 साल तक (पांच टर्म) यहां कांग्रेस का ही विधायक चुना गया. 1957 में महिला विधायक से यहां का खाता खुला था. इंडियन नेशनल कांग्रेस की टिकट पर राजकुमारी देवी विधायक चुनी गयी थी. 1951-52 में नवादा सह हिसुआ विधानसभा सीट था और उस समय भी इंडियन नेशनल कांग्रेस से शक्ति कुमार सिंह ही विधायक हुए थे.
अर्थात हिसुआ शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रहा. इमरजेंसी के बाद 1977 की जनता पार्टी की लहर से हिसुआ में कांग्रेस का किला ढहा और बाबुलाल सिंह विधायक चुने गये. 25 साल के बाद हिसुआ में जनता पार्टी से विधायक चुने गये. बड़ा ही कड़ा दिलचस्प मुकाबला था. बाबुलाल सिंह ने आदित्य सिंह को मात्र 265 वोटों से हराया था और जीत के बाद भी विरोध में पटना हाईकोर्ट में रिट याचिका दाखिल की गयी थी.
हिसुआ के 62 साल के विधानसभा के चुनावी इतिहास में इंडियन नेशनल कांग्रेस और कांग्रेस आइ से नौ टर्म विधायक चुने गये. 1977 के बाद फिर से आदित्य सिंह निर्दलीय चुनाव लड़ कर सीट पर काबिज हो गये थे. इसके बाद लगातार 2005 जनवरी-फरवरी में हुए चुनाव तक कांग्रेस आई व निर्दलीय चुनाव लड़ कर लगातार 25 सालों तक काबिज रहे.
इसी बीच आदित्य सिंह दो 1980 व 2000 में निर्दलीय चुनाव लड़े व जीत हासिल किये. अर्थात कांग्रेस से नौ बार, भाजपा से चार बार व निर्दलीय से दो बार विधानसभा चुनाव जीता गया. लेकिन आदित्य सिंह को दोनों बार निर्दलीय तब चुनाव लड़ना पड़ा, जब उन्हें कांग्रेस से टिकट नहीं मिला. लेकिन जीत उनकी ही हुई.
गया के अतरी के रहने वाले थे बाबुलाल सिंह : जयनारायण प्रसाद और ओम प्रकाश बरनवाल ने बताया कि बाबुलाल सिंह गया जिला के अतरी प्रखंड के चैनपुरा गांव के रहने वाले थे. गया जिला परिषद में वे लिपिक के पद पर कार्यरत थे. नौकरी छोड़कर वे राजनिति में आये और अतरी से विधायक भी बने. इमरजेंसी में भूमिगत रहकर क्रांति करने का काम किया. हिसुआ से जनता पार्टी का टिकट मिलने के बाद उन्हें हिसुआ से जोरदार सर्मथन मिला और उनकी जीत हुई. यादगार चुनाव था.
जनता लहर में पहली बार ढहा कांग्रेस का किला : जानकार मानते हैं कि हिसुआ कांग्रेसियों का गढ़ रहा है. लेकिन, इमरजेंसी की लहर में पासा पलटा. 1977 में जब इमरजेंसी से परेशान विभिन्न पार्टिओं ने एकजुटता दिखाते हुए और अपनी पार्टियों को विलय करते हुए जनता पार्टी का गठन किया और देश में जनता पार्टी की लहर उठी तब हिसुआ विधानसभा सीट से बाबुलाल सिंह की जीत हुई. हिसुआ के जयनारायण प्रसाद, ओम प्रकाश बरनवाल बताते हैं कि बड़ा ही दिलचस्प मुकाबला था.
आदित्य सिंह से कांटे की टक्कर थी. आदित्य सिंह निर्दलीय उम्मीदवार थे. लेकिन, इमरजेंसी व इंदिरा गांधी के खिलाफ की लहर ने बाबुलाल सिंह को जीत दिलायी. लोगों का कहना है कि उस समय एक खास लहर थी आक्रोश था. यही एक मुख्य नारा था- सन 77 की पुकार, दिल्ली में जनता सरकार.
Posted by Ashish Jha