Bihar Election 2020 पटना: यह सर्वविदित है कि सर्वप्रथम राजनीतिक पार्टियां गंभीर अपराधों के आरोपित उम्मीदवारों को अपना उम्मीदवार घोषित करती हैं. इसके बाद जनता उस उम्मीदवार को मजबूरन चुनती है. लेकिन, पिछले दिनों चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक पार्टियों को अपनी चिट्ठी में हिदायत करते हुए लिखा है कि वे वैसे उम्मीदवारों को प्रत्याशी नहीं बनायें, जिसके खिलाफ मुकदमे लंबित हैं. नियमानुसार पार्टियों को समाचार पत्रों में बजाप्ता समाचार प्रकाशित करानी होगी. आयोग ने दलों को हिदायत करते हुए लिखा कि चुने जाने के 48 घंटे के उपरांत फाॅर्मेट सी 7 में उसे समाचार पत्रों में सूचना देनी होगी. यह सूचना राज्य और राष्ट्रीय अखबार में देनी होगी. साथ ही सूचना प्रकाशित करने के 72 घंटे के अंदर आयोग को फाॅमेर्ट सी 8 में बताना होगा. इसमें प्रावधान है कि अगर कोई दल इस आदेश का पालन नहीं करता है,तो उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कंटेम्ट प्रोसिडिंग चलायी जायेगी.
आयोग ने चिठ्ठी सर्वोच्च न्यायालय के उसी आदेश के आलोक में लिखी है जिसमें न्यायालय ने पांच निर्देश दिये थे ताकि मतदाता को वोटिंग से पहले प्रत्याशी की पृष्ठभूमि का पता चल सके. निर्देशानुसार प्रत्याशी को अपनी पृष्ठभूमि समाचार पत्र और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए तीन बार बतानी होगी. चुनाव आयोग के फाॅर्मेंट मोटे अक्षरों में लिखना होगा कि उसके खिलाफ कितने आपराधिक मामले चल रहे हैं. उसे इस फाॅर्म में हर पहलू की जानकारी देनी होगी. किसी भी सवाल को छोड़ा नहीं जा सकता. वह पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहा है, तो उस मामले की जानकारी पार्टी को भी देनी होगी. पार्टी को अपने प्रत्याशियों को आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी अपनी बेवसाइट पर डालनी होगी, ताकि वोटर नेता की पृष्ठभूमि से अनजान न रहे.
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गौरतलब है कि पिछली बार के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कोर्ट के आदेशों पर पूरी तरह अमल नहीं हो पाया. पुन: लोकसभा चुनाव 2019 में भी इसका पालन नहीं हो पाया. अब आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन होता है या नहीं तथा निर्वाचन आयोग की चिठ्ठी का असर कितना होगा यह जल्द ही पता चल जायेगा. आयोग ने भी चुनाव में भाग्य आजमा रहे उम्मीदवारों को चेतावनी देते हुए कहा कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान आपराधिक रिकॉर्ड के ब्योरे सहित विज्ञापन नहीं देने वाले उम्मीदवारों को अदालत की अवमानना की कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है. साथ ही अपने प्रतिद्वंंद्वियों के बारे में गलत आपराधिक रिकॉर्ड प्रकाशित करवाने वालों पर भ्रष्ट तरीके इस्तेमाल करने के आरोप में जुर्माना लग सकता है.चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे प्रत्याशियों को निर्वाचन आयोग ने यह चेतावनी भी दी है.
मालूम हो कि 2010 में जहां 85 यानी 35 प्रतिशत विधायकों पर गंभीर मामले थे.वहीं, 2015 में 40 प्रतिशत यानी 98 विधायकों पर गंभीर मामले लंबित हैं. अब यह आगे देखने वाली बात होगी कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में कितने आपराधिक मामलों के आरोपित उम्मीदवार बनाये जाते हैं तथा चुनाव आयोग की चिठ्ठी का असर कितना हो पाता है.
(राजीव कुमार- लेखक एडीआर से जुड़े हैं. ये उनके निजी विचार हैं)