दीपांकर, सहरसा : कोसी की राजनीति के सारे समीकरण पल-पल बदलते जा रहे हैं. दल बदलने व टिकट लेकर मैदान में उतरने वालों ने विधानसभा चुनाव को रोचक बना दिया है. नामांकन की प्रक्रिया शुरू होने के बाद अब सभी प्रमुख पार्टियों ने अपने पत्ते खोल दिये हैं. एनडीए ने भाजपा नेता डॉ आलोक रंजन पर फिर एक बार भरोसा जताते हुए कमान सौंपी है, लेकिन राजद की टिकट लेकर सहरसा विधानसभा चुनाव से अपनी दावेदारी लेकर उतरी पूर्व सांसद लवली आनंद ने मुकाबले को एकदम से रोचक बनाने की शुरुआत कर दी है.
डीएम जी कृष्णैया हत्याकांड मामले में सजा काट रहे पूर्व सांसद आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद के राजद के टिकट से मैदान में उतरने से पूरे विधानसभा का तापमान गर्म हो गया है. हर कोई अपने हिसाब से जोड़-घटाव में लग गया है. एनडीए प्रत्याशी की आधिकारिक घोषणा होने से अब समीकरण के सभी कोण को मिलाने की कोशिश शुरू हो गयी है.
राजद कार्यकर्ता मानते हैं कि लवली के मुकाबले में आने से सहरसा की राजनीति को नयी दिशा मिलेगी. मालूम हो कि कोसी का इलाका आनंद मोहन व उनकी पत्नी लवली आनंद का गृहक्षेत्र रहा है. इसका लाभ मिलने की उम्मीद लगाये चुनाव मैदान में उतरी लवली आनंद विपक्षियों को कड़ी टक्कर दे सकती हैं.
मालूम हो कि 1990 में महिषी विधानसभा से जब पहली बार आनंद मोहन विधायक बने थे, तब लालू प्रसाद के साथ जनता दल का साथ उन्हें मिला था. इसके दो साल बाद उन्होंने जनता दल से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बना ली थी. बिहार पीपुल्स पार्टी का झंडा उठा आनंद मोहन व उनकी पत्नी लवली आनंद ने पूरे बिहार में अपनी पार्टी का प्रचार -प्रसार किया और उस समय खासकर उत्तर बिहार में क्षत्रियों के एकमात्र नेता बनकर उभरे. हालांकि ,तात्कालिक छवि और गठबंधन की राजनीति के दौड़ में अकेले चलने की नीति का खामियाजा भी उन्हें उठाना पड़ा.
इसी बीच डीएम जी कृष्णैया हत्याकांड मामले में आनंद मोहन को सजा हो गयी. अब 28 साल बाद फिर से उनकी पार्टी का विलय लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल के साथ हुआ और लवली व उनके पुत्र को राजद ने चुनाव मैदान में उतार दिया. कम -से- कम सहरसा विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने भी यह उम्मीद नहीं की थी कि लवली आनंद राजद के चुनाव चिह्न से सहरसा विधानसभा के मुकाबले में उतर रही हैं.
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि राजद ने बड़ी होशियारी से प्रत्याशियों का चुनाव किया है. राजद के कैडर वोटर के साथ-साथ सवर्णों का वोट भी लवली आनंद के मुकाबले में आने से राजद को मिल सकता है, लेकिन यह फिलहाल कयास है. इतिहास गवाह रहा है कि जदयू और भाजपा के एक साथ चुनावी मुकाबले में आने से विपक्षियों के हौसले पस्त होते रहे हैं.
एनडीए इस बात को लेकर काफी उत्साहित भी है. गठबंधन के तहत यह सीट भाजपा के खाते में थी. भाजपा ने पूर्व विधायक डॉ आलोक रंजन को एक बार फिर से यहां आजमाने की कोशिश की है. मालूम हो कि इससे पूर्व वर्ष 2010 में श्री रंजन पहली बार विधायक बने थे. वर्ष 2015 के चुनाव में इन्हें राजद के अरुण यादव ने शिकस्त दी थी.
हालांकि, उस समय राजद और जदयू ने मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन विगत पांच वर्षों से इनकी सक्रियता इन्हें टिकट की दौड़ में आगे किये हुए थी. इसका लाभ उठाने की उम्मीद एनडीए कार्यकर्ता पाले हुए हैं. इधर, जाप ने रंजन प्रियदर्शी को सहरसा से प्रत्याशी बनाया है. जो सभी वर्गों का समर्थन मिलने का दावा जता रहे हैं. अगर टिकट नहीं मिलने से नाराज कुछ नेताओं ने अपना दावा ठोक दिया, तो किसी का भी बना बनाया खेल बिगड़ सकता है.
Posted by Ashish Jha