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दीपंकर भट्टाचार्य ने Exclusive बातचीत में कहा, भाजपा को रोकना जरूरी, पारंपरिक नहीं, इस बार मुद्दों पर होगी वोटिंग

Dipankar Bhattacharya Exclusive Interview, Bihar Election 2020, CPI (ML), BJP : भाकपा-माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य इन दिनों पटना में कैंप कर रहे हैं. अरसे बाद भाकपा-माले इस चुनाव में माकपा और भाकपा के साथ मिल कर चुनाव लड़ रहा है. राजद के साथ तालमेल हुआ है. माले ने कई नये चेहरे को मैदान में उतारा हैं. इन सब मुद्दों पर प्रभात खबर ने उनसे खास बातचीत की.

By Prabhat Khabar News Desk | October 24, 2020 9:26 AM
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Dipankar Bhattacharya Exclusive Interview, Bihar Election 2020, CPI (ML), BJP : भाकपा-माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य इन दिनों पटना में कैंप कर रहे हैं. अरसे बाद भाकपा-माले इस चुनाव में माकपा और भाकपा के साथ मिल कर चुनाव लड़ रहा है. राजद के साथ तालमेल हुआ है. माले ने कई नये चेहरे को मैदान में उतारा हैं. इन सब मुद्दों पर प्रभात खबर ने उनसे खास बातचीत की.

दीपंकर ने कहा, बिहार में यह चुनाव पिछले चुनावों के सभी रिकॉर्ड तोड़ देगा. इस चुनाव में पारंपरिक विरासत पर वोट नहीं होगा, लोग मुद्दा आधारित वोट करेंगे. लोगों में आक्रोश है और वे बिहार में विकास चाहते हैं. वरीय संवाददाता प्रहलाद कुमार से बातचीत के अंश.

इस चुनाव के मुद्दे क्या होंगे?

इस चुनाव में रोजगार, बेरोजगारी, किसानों की बदहाली व प्रवासी मजदूरों की परेशानी सहित अन्य मुद्दे होंगे. बिहार से लोगों के पलायन को कैसे रोका जाये और उन्हें रोजगार से जोड़ा जाये. मजदूरों को मेहनत के मुताबिक पैसा दिया जाये और किसानों को फसलों की खरीद गारंटी मिले. सरकारी शिक्षा व स्वास्थ्य में सुधार हो और वह आम लोगों की पहुंच में हो. शहरी व ग्रामीण गरीबों को जिस तरह से विकास के नाम पर उजाड़ा जाता है, वह बंद किया जाये. समान काम के बदले समान वेतन दिया जाये.

जनता का मूड कैसा दिख रहा है?

इस चुनाव में जनता में केंद्र व बिहार सरकार के प्रति काफी आक्रोश है. भाजपा-जदयू जिस प्रवासी मजदूर के नाम पर वोट मांग रहे हैं, सच्चाई यही है कि कोरोना काल में उन बिहारी मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया. सरकार ने मजदूरों को वापस बुलाने के लिए मना कर दिया. मजदूर पैदल तक घर आने लगे. भाकपा- माले ने बहुत मेहनत की और ट्रेनों को खुलवाया. यहां लोगों के लिए रोजगार नहीं है, इसका भी आक्रोश है.

माले को 19 सीटें गठबंधन में मिली हैं. इन सीटों के लिए कितनी गंभीर है पार्टी?

गठबंधन समय की मांग है. संविधान खतरे में है. इसलिए भाजपा को रोकना जरूरी है. पार्टी के नेता- कार्यकर्ता काफी गंभीर हैं, लेकिन सिर्फ चुनाव से कुछ नहीं होगा. नीतियों के खिलाफ अभी लगातार लड़ना होगा. हमारे सभी साथी गंभीर हैं. तालमेल से काफी खुश हैं.

टिकट का बंटवारा जाति के आधार पर कर दिया जाता है. इसे आप किस रूप में देखते हैं?

हमारी पार्टी गरीबों के हित में काम करती है. हम गरीबों के लिए हमेशा लड़ते रहे हैं. इसलिए टिकट बंटवारे में हमने उन्हीं को उम्मीदवार बनाया है, जो हमारी पार्टी के लिए लगातार काम कर रहे हैं. हमने उन्हीं सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए इलाका चुना है, जो हमारा आंदोलन का क्षेत्र रहा है. इसलिए हमने दल से बाहर किसी को टिकट नहीं दिया है.

अधिकतर दल युवाओं को चुनाव लड़ने का मौका नहीं देते, माले ने कितने युवाओं को मौका दिया है?

पार्टी में किसान-नौजवान से जुड़े युवाओं को उम्मीदवार बनाया गया है. इस चुनाव में आधा दर्जन से अधिक युवाओं को टिकट दिया है. टिकट देने में पार्टी ने पूरी कोशिश की है कि गरीब, नौजवान व किसान को उम्मीदवार बनाया जाये और यह हमने किया है. हमारे सभी उम्मीदवार गरीबों के लिए वर्षों से लड़ाई लड़ रहे हैं.

बिहार में उद्योग नहीं है, रोजगार का अभाव है, यह मुद्दा क्यों नहीं बनता?

पिछले चुनाव में भले ही मुद्दा रोजगार व उद्योग मुद्दा नहीं रहा है, लेकिन इस चुनाव में रोजगार ही मुद्दा होगा. पारंपरिक व जाति वोटरों पर हावी नहीं होगा. इस चुनाव में कुछ अलग देखने को मिलेगा. वोटर बदलाव के साथ विकास ही चाहते हैं.

अधिकतर नरसंहारों के आरोपित हाइकोर्ट से बरी हो गये, आप इसे किस रूप में देखते हैं?

न्याय प्रणाली बदल गयी है. देश भर में पीड़ितों को न्याय नहीं मिलता है. बिहार से लेकर बाबरी मस्जिद या अभी हाथरस की घटना को देख लें, तो लगेगा कि न्याय प्रणाली में किस तरह से बदलाव आया है, लेकिन बिहार में हुए जनसंहार मामलों में हाइकोर्ट से भले ही आरोपित बरी हो गये हों, पर मामला सुप्रीम कोर्ट में है. उम्मीद है कि पीड़ित के पक्ष में न्याय आयेगा. अगर ऐसा नहीं होगा, तो लोग न्याय के लिए कहां जायेंगे.

बिहार की बेहतरी के लिए क्या रोडमैप है?

बिहार की बेहतरी के लिए नेताओं को मानसिकता बदलने की जरूरत है. आज की सरकार अंग्रेजों के शासन काल में जीती है. आंदोलनकारियों से कोई बात नहीं करती है. अगर आंदोलन करने वालों की बातों को सुना जाये, तो बहुत- सी परेशानियां खत्म हो जायेंगी.

Posted By : Sumit Kumar Verma

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