Bihar Election 2020: कोरोना काल में चुनाव प्रत्याशियों के सपनों पर पानी भी फेर सकता है. कोरोना काल में जिला प्रशासन की लाख कोशिशों के बावजूद वोटिंग प्रतिशत कम रहने की संभावना बनती जा रही है. अभी हालिया दिनों में जिले में एक बार फिर से कोरोना मरीजों की संख्या में काफी वृद्धि देखी जा रही है. बिहार विधानसभा चुनाव के लिए बने रहें Prabhatkhabar.com के साथ
इसको लेकर आमजनों ने फिर से मंथन करना शुरू कर दिया है कि मतदान के दिन कौन सा कदम उठाना उचित रहेगा. चूंकि लोग लापरवाह हो चुके हैं, जिसकी परिणति है कि एक बार फिर से लोग डरे हुए हैं. ऐसे में कम वोटिंग प्रतिशत की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है. इसका अंदाजा प्रत्याशियों को भी होने लगा है. इस कारण प्रत्याशियों की धड़कनें तेज हो गयी हैं.
वैश्विक महामारी कोरोना के संकट काल में वोटिंग प्रतिशत का हर दल अपने तरीके से आकलन करने में मशगूल हैं. कम मतदान होने से हो बड़ा उलटफेर हो सकता है. मामूली अंतर से जीत-हार का फैसला हो सकता है, जो प्रत्याशियों के लिए किसी सदमे से कम नहीं होगा. परिणाम बेहद अप्रत्याशित हो सकते हैं.
आगामी 28 अक्तूबर को जिले के सात विधानसभा क्षेत्र में मतदान है. कोविड-19 को लेकर चुनाव बहुत कुछ नये अंदाज में होगा. कोरोना से बचाव को लेकर कई पाबंदियों के बीच चुनाव संपन्न होना है. चुनाव आयोग ने सामाजिक दूरी, मास्क लगाने, हाथ को सैनिटाइज करने, ग्लब्स पहनने जैसे कई नियमों का पालन मतदान केंद्रों पर करना आवश्यक कर दिया है.
चुनावी रण में उतरे प्रत्याशियों को वोटिंग की प्रतिशत कम होने की चिंता सता रही है. वोटिंग कम होने की आशंका को लेकर कई प्रत्याशी खुद के लिए खतरा महसूस कर रहे हैं. हालांकि, जिन कारणों से वोट प्रतिशत प्रभावित होने की परिस्थिति उत्पन्न हो रही है, उसके लिए सीधे तौर प्रत्याशी खुद जिम्मेवार दिख रहे हैं.
अपने लिये सब कुछ साजगार बनाने की फिराक में कोरोना गाइडलाइन की अवहेलना कर चलाया जा रहा प्रचार कार्य कोरोना के प्रसार को बढ़ाने वाला साबित हो रहा है. सबसे ज्यादा संकट जनसभाओं के कारण उत्पन्न हो रही है. सारी गाइडलाइन की धज्जियां उड़ा कर जन सभाएं की जा रही हैं.
छह फुट की दूरी की कौन कहे, हाल तो यह है कि छह फुट के दायरे में एक दर्जन से अधिक लोग एक-दूसरे पर लद कर नेताओं के भाषण सुन रहे हैं. कोरोना गाइडलाइन की अनदेखी इस हद तक जारी है कि बड़े नेता लोगों को जयकारे व जिंदाबाद के नारे लगाने के लिए उकसा रहे हैं. ऐसे में स्थिति को बिगड़ना ही है.
कोरोना के बिगड़ते नये हालातों पर लोग चुनाव को ही कोसते नजर आ रहे हैं. जाहिर है सभी का गुस्सा सरकार पर है. आम लोग आपस में यह चर्चा करते मिल जा रहे हैं कि सरकार की यह कैसी मानसिकता है कि दशहरा पर रोक है व पूजा में लाउडस्पीकर नहीं बजाना है, लेकिन नेताओं की जनसभा की इजाजत है और यहां बड़े-बड़े लाउडस्पीकर समेत बॉक्स तक बजाने की छूट है.
सरकार बताये कि दशहरा से कोरोना फैल सकता है, तो जनसभाओं से क्यों नहीं? लोग खुल कर कह रहे हैं कि सरकार जनता की लाश पर सरकार बनाना चाहती है, लेकिन हम क्यों अपनी जान गवाएं? बहरहाल, सरकार की इस स्वार्थी सोच के खिलाफ जाकर अनेक लोगों ने इस चुनाव में वोट नहीं डालने का निर्णय लिया है.
Posted by Ashish Jha