Bihar election 2020 : मांझी ने नीतीश की छांव में आकर कर ली ‘सेफ डील’

हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बुधवार को जदयू से गठबंधन कर विलय की संभावनाओं पर ब्रेक लगा दिया है. साथ ही अपना राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित कर गुड डील भी कर दी है. 27 अगस्त को सीएम आवास पर नीतीश कुमार से हुई बातचीत सीटों को लेकर हुई थी. हालांकि, खुद मांझी अब भी यह बात कह रहे हैं कि सीटों को लेकर कोई बात नहीं की है.

By Prabhat Khabar News Desk | September 3, 2020 6:48 AM

अनुज शर्मा, पटना : हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बुधवार को जदयू से गठबंधन कर विलय की संभावनाओं पर ब्रेक लगा दिया है. साथ ही अपना राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित कर गुड डील भी कर दी है. 27 अगस्त को सीएम आवास पर नीतीश कुमार से हुई बातचीत सीटों को लेकर हुई थी. हालांकि, खुद मांझी अब भी यह बात कह रहे हैं कि सीटों को लेकर कोई बात नहीं की है. सीएम से मुलाकात के बाद दो बार तीसरे मोर्चे को लेकर बुलायी गयी बैठक को स्थगित करना और लालू पर हमलावर होना , इस बात का संकेत है कि सीएम के साथ उनकी अंडरस्टैंडिंग अच्छी और पक्की हुई है.

नीतीश चाहते थे विलय

पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री चाहते थे कि हम का विलय हो जाये, लेकिन पुराने सबक और नयी संभावनाओं की गुंजाइश के कारण मांझी ने विलय को पार्टनरशिप में बदलने का अनुरोध किया था. हम के आला पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हमारे नेता ने करीब 15 सीटों की डिमांड की थी. जदयू इस पर सहमत नहीं था. इस कारण सीएम से मुलाकात के बाद भी एनडीए में जाने का निर्णय नहीं हुआ था. उम्मीद है कि हम को विधानसभा की नौ सीट और विधान परिषद की एक सीट मिलेगी. मांझी का प्रेस काॅन्फ्रेंस में यह कहना कि हम शुरू से कहते आये हैं कि 75 साल के बाद नेता को चुनावी नहीं लड़ना चाहिए. इस सिद्धांत के कारण अब शायद ही हम चुनाव लड़ेंगे.

पूर्व मुख्यमंत्री अब नहीं लड़ेंगे चुनाव, विधान परिषद में आयेंगे नजर

मांझी का यह कहना इस बात का संकेत हैं कि वह विधानसभा चुनाव में ही पार्टनर नहीं हैं, विधान परिषद में भी नीतीश कुमार के पार्टनर बनकर बैठेंगे. राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र किशोर भी मानते हैं कि मांझी ने अपनी सियासी भविष्य सुरक्षित कर लिया है. बिहार में दलित और महादलित के करीब 15 फीसदी वोटर बताये जाते हैं. इन पर मांझी की पार्टी और लोजपा दोनों ही दावा करते हैं. हम की बात करें तो 2015 में चुनाव से कुछ दिन पहले मांझी ने अपनी पार्टी बनायी थी. एनडीए का साथ लेकर विधानसभा की 21 सीटों पर चुनाव लड़े थे , लेकिन मांझी को छोड़कर कोई भी उम्मीदवार नहीं जीता था. लोकसभा चुनाव में तो वे भी हार गये थे. पार्टी इतने वोट भी नहीं ला सकी कि उसका प्रतीक चिह्न बच जाता.

मांझी ने कहा- लालू की मजबूरी थी संतोष को एमएलसी बनाना

पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने कहा कि उनका बेटा एमएलसी बनने की योग्यता रखता है. लालू प्रसाद दलित उच्च शिक्षित को उम्मीदवार बनाना चाहते थे, इसलिए राजद सुप्रीमो ने ही उसे चुना था. हमने भी राजद को अररिया -जहानाबाद का चुनाव जितवाया था. जीतन राम मांझी कहा कि एनडीए में मेरी प्रतिष्ठा थी. पीएम मोदी बैठकों में सबसे पहले मेरा नाम लेते थे. इंडिया राइजिंग की मीटिंग में नरेंद्र मोदी ने मेरा नाम लिया, तो सब चकित हो गये कि कौन है मांझी, जिसका नाम पीएम भी लेते हैं. लालू प्रसाद ने मुझे सामाजिक न्याय और आरक्षण की बातों में फंसा लिया था. हम उनके चक्कर में गलत पड़ गये थे. राजद में भ्रष्टाचार – भाई भतीजावाद है.

posted by ashish jha

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