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Bihar Election 2020: दलित राजनीति करने वाली पार्टियों को बिहार में मिलती है निराशा, जानें कारण…

Bihar Election 2020 पटना: समाज के जिस वर्ग को कम पढ़ा लिखा या राजनीतिक की कम समझ रखने वाला वर्ग समझा जाता है, बिहार में वही दलित समाज बीते कई चुनावों में जातीय राजनीति से ऊपर उठ कर वोट करता रहा है़. जिस प्रकार यूपी में दलित जातियों का झुकाव मायावती की बसपा की ओर अधिक होता रहा है, उसी प्रकार का रुझान बिहार के दलित वोटरों की ऐसी पार्टियों के प्रति नहीं के बराबर रहा है. 2015 का चुनाव हो या 2010 का, बिहार की एससी-एसटी की आरक्षित सीटों पर न तो लोजपा एक भी सीट जीत पायी और न ही बसपा व दूसरी ऐसी पार्टियों को कोई सीट मिली.

Bihar Election 2020 पटना: समाज के जिस वर्ग को कम पढ़ा लिखा या राजनीतिक की कम समझ रखने वाला वर्ग समझा जाता है, बिहार में वही दलित समाज बीते कई चुनावों में जातीय राजनीति से ऊपर उठ कर वोट करता रहा है़. जिस प्रकार यूपी में दलित जातियों का झुकाव मायावती की बसपा की ओर अधिक होता रहा है, उसी प्रकार का रुझान बिहार के दलित वोटरों की ऐसी पार्टियों के प्रति नहीं के बराबर रहा है. 2015 का चुनाव हो या 2010 का, बिहार की एससी-एसटी की आरक्षित सीटों पर न तो लोजपा एक भी सीट जीत पायी और न ही बसपा व दूसरी ऐसी पार्टियों को कोई सीट मिली.

इन्हें मिली है सफलता…

2015 के चुनाव में एकमात्र जीतन राम मांझी ऐसे नेता रहे जो भाजपा, जदयू, कांग्रेस और राजद के इतर अपनी पार्टी से एकमात्र विधायक बन पाये. 1995, 2000 और 2005 के विधानसभा चुनावों को देखने से साफ होता है कि बसपा और लोजपा को इक्के- दुक्के सुरक्षित सीटों पर सफलता मिली है. 1995 के चुनाव में यूपी की पड़ोस की सीट कैमूर जिले के मोहनिया में बसपा के सुरेश पासी चुनाव जीत पाये. बाकी की सभी सुरक्षित सीटों पर बड़े दलों के उम्मीदवारों का ही कब्जा रहा. 2000 के चुनाव में बसपा को ही पांच सीटों पर सफलता मिली. इनमें राजपुर से छेदी लाल राम और मोहनिया से सुरेश पासी ही सुरक्षित सीट पर चुनाव जीतने में सफल रहे, जबकि बसपा के तीन और विधायक दूसरी सामान्य सीटों पर चुन कर आये.

2005 के चुनाव में दलित विचारधारा वाली पार्टी लोजपा का प्रदशर्न

इसी प्रकार फरवरी, 2005 के चुनाव में लोजपा अकेली दलित विचारधारा वाली पार्टी रही, जिसके दो उम्मीदवार अलौली से पशुपति कुमार पारस और सिकंदरा से रामेश्वर पासवान सुरक्षित सीट पर चुनाव जीत पाये. अक्तूबर में हुए चुनाव में वारिसनगर सीट से महेश्वर हजारी और अलौली से पशुपति कुमार पारस को जीत मिली. बाकी सभी सुरक्षित सीटें राजद, भाकपा,भाकपा- माले, कांग्रेस, भाजपा और जदयू की झोली में गयीं.

2015 के चुनाव में लोजपा 

बिहार में रामविलास पासवान की पार्टी ने 2015 के फरवरी विधानसभा से चुनाव की शुरुआत की थी़. फरवरी में सरकार नहीं बनने के बाद जब अक्तूबर में चुनाव हुआ, तो लोजपा को दस सीटें मिलीं. इस दौरान पार्टी को कुल 11.10 फीसदी वोट मिले थे़ इसके बाद 2010 के विधानसभा चुनाव में लोजपा ने 75 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे़. इनमें केवल तीन सीटों पर जीत मिली़ इस दौरान पार्टी का वोट प्रतिशत घटकर 6‍.74 फीसदी हो गया़. 2015 के विधानसभा चुनाव में लोजपा को 42 सीटों में मात्र दो सीटें मिलीं. पार्टी को सभी सीटों को मिलाकर 4. 83 फीसदी ही वोट मिल पाये़

बसपा का प्रदर्शन

बिहार में मायावती की बसपा को 2000 चुनाव में कुल पांच सीटों पर जीत मिली़ पार्टी ने 249 सीटों पर चुनाव लड़ा था़ अक्तूबर, 2005 में बीएसपी को 212 में से चार सीटों पर जीत मिली़ पार्टी को 4.17 फीसदी वोट मिले़ वर्ष में 2010 में पार्टी को कोई सफलता नहीं मिली़ इसके बाद पिछले चुनाव में भी पार्टी को कोई सफलता नहीं मिली़ इस चुनाव के दौरान 228 सीटों पर पार्टी को मात्र 2.07 फीसदी वोट मिले़

हम का प्रदर्शन

राज्य में आठ माह तक मुख्यमंत्री रहे जीतन राम मांझी की पार्टी ने 2015 में विधानसभा चुनाव लड़ा था़ पार्टी को 21 सीटें गठबंधन की ओर से मिली थीं. इस दौरान मात्र एक सीट पर ही पार्टी को जीत मिली़ केवल मांझी ही अपना सीट बचा पाये़

बिहार में महादलित का गणित

2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में दलित जातियों की 16 प्रतिशत भागीदारी है़ 2005 में नीतीश कुमार की सरकार ने 22 में से 21 दलित जातियों को महादलित घोषित कर दिया था़ 2018 में पासवान भी महादलित वर्ग में शामिल हो गये़ इस हिसाब से बिहार में अब दलित के बदले महादलित जातियां ही रह गयी है़ं कुल 16 फीसदी भागीदारी में सबसे अधिक मुसहर, रविदास व पासवान समाज की जनसंख्या है़ जानकारी के अनुसार वर्तमान में साढ़े पांच फीसदी के अधिक मुसहर, चार फीसदी रविदास व तीन फीसदी के अधिक पासवान जाति के लोग हैं. इनके अलावा धोबी, पासी, गोड़ आदि जातियों की भागीदारी है़

बिहार में पहले दलित मुख्यमंत्री

60 के दशक के अंत में भोला पासवान शास्त्री बिहार के मुख्यमंत्री बन गये थे. यह देश के किसी भी राज्य में किसी अनुसूचित जाति के नेता के मुख्यमंत्री बनने की पहली घटना थी. 1977 में बिहार के बाबू जगजीवन राम देश के उपप्रधानमंत्री बन गये थे.

2015 का विधानसभा

इस विधानसभा में राजद के 14 विधायक, जदयू के दस के अलावा बीजेपी व कांग्रेस से पांच-पांच विधायक अनुसूचित जाति से हैं.

इस बार भी कई दल

इस बार के विधानसभा चुनाव में भी दलित जाति पर अपनी दावेदारी करने वाली कई दलित राजनीतिक पार्टियां मैदान में है़ं लोजपा, बसपा और हम के अलावा मुकेश सहनी की पार्टी वीआइपी, बामसेफ की बहुजन मुक्ति मोर्चा, यूपी के चंद्रशेखर रावण की पार्टियां चुनावी समर में उतरेंगी़

वर्ष 2015 की स्थिति

एलजेपी – दो सीटें – 4.83 फीसदी वोट

हम – मात्र एक सीट – 2 फीसदी के कम वोट

बीएसपी – एक भी सीट नहीं – 2 फीसदी वोट

वर्ष -2010

बीएसपी – एक भी सीट नहीं – 3.27 फीसदी वोट

एलजेपी – तीन सीटें – 6.74 फीसदी वोट

2005 अक्तूबर

बीएसपी – चार सीटें – 4.17 फीसदी वोट

एलजेपी – 10 सीटें- 11.10 फीसदी वोट

( अनिकेत त्रिवेदी की रिपोर्ट )

Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya

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