Bihar Election 2020: आंदोलन में जिन दोस्तों के साथ जेल गए, उन्हें ही हराने निर्दलीय चुनाव लड़े फणीश्वर नाथ रेणु, जानें वजह…

पटना: 1970 के दशक की शुरुआत में देश में कांग्रेस का बोलबाला था. भले ही आपातकाल 1975 में लगा हो, पर इसकी रूपरेखा शासन- प्रशासन 1971-72 से ही दिखने लगी थी. उन दिनों इंदिरा परिवार की करीबी रहीं चर्चित लेखिका महादेवी वर्मा ने इलाहाबाद में लेखकों का सम्मेलन बुलाया था. इसमें बिहार से भी कई साहित्यकार व लेखकों ने हिस्सा लिया था. इसी माहौल में बिहार विधानसभा का 1972 का चुनाव हुआ.

By Prabhat Khabar News Desk | September 6, 2020 9:50 AM

पटना: 1970 के दशक की शुरुआत में देश में कांग्रेस का बोलबाला था. भले ही आपातकाल 1975 में लगा हो, पर इसकी रूपरेखा शासन- प्रशासन 1971-72 से ही दिखने लगी थी. उन दिनों इंदिरा परिवार की करीबी रहीं चर्चित लेखिका महादेवी वर्मा ने इलाहाबाद में लेखकों का सम्मेलन बुलाया था. इसमें बिहार से भी कई साहित्यकार व लेखकों ने हिस्सा लिया था. इसी माहौल में बिहार विधानसभा का 1972 का चुनाव हुआ.

फारबिसगंज विधानसभा क्षेत्र से बने निर्दलीय उम्मीदवार

तत्कालीन पूर्णिया जिले के फारबिसगंज विधानसभा क्षेत्र से देश के प्रख्यात साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु निर्दलीय उम्मीदवार हो गये. कांग्रेस ने मौजूदा विधायक सरयू मिश्र को अपना उम्मीदवार बनाया था. सरयू मिश्र की गिनती उस समय राज्य के वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं में होती थी. सोशलिस्ट पार्टी से लखनलाल कपूर उम्मीदवार थे.

सरयू मिश्र, लखन लाल कपूर व रेणु तीनों थे मित्र

उस चुनाव को याद करते हुए पूर्व विधान पार्षद और साहित्यकार प्रो रामबचन राय बताते हैं , सरयू मिश्र, लखन लाल कपूर व रेणु जी तीनों मित्र हुआ करते थे. 1942 के आंदोलन में तीनों एक साथ भागलपुर जेल में बंद थे. रेणु जी का चुनाव चिह्न नाव था. उनके पक्ष में जहां साहित्यकारों और लेखकों की टोली गांव-गांव घूम रही थी. वहीं, लखन लाल कपूर के पक्ष में समाजवादी नेता भी पैदल व अपने साधनों से जनसंपर्क कर रहे थे. कांग्रेस के नेता सरयू मिश्र के पक्ष में थे.

दिया यह नारा, बताई चुनाव लड़ने की वजह 

चुनाव के दौरान रेणु जी के पक्ष में नारा लगा था- कह दो गांव-गांव में, अबकी इस चुनाव में, वोट देंगे नाव में. तीनों उम्मीदवारों ने चुनाव के दौरान एक- दूसरे के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की. चुनाव परिणाम जब आया तो रेणु जी चौथे नंबर पर रहे. उन्हें 6498 वोट आये, जबकि चुनाव जीते सरयू मिश्र को 29750 और दूसरे नंबर पर रहे लखन लाल कपूर को 16666 वोट मिले. रामबचन राय बताते हैं, रेणु जी इस चुनाव में जीतने के लिए नहीं खड़े हुए थे, बल्कि हुकूमत में जो व्यवस्था दिखने लगी थी, उसके प्रतीकात्मक विरोध के रूप में चुनाव को लिया था.

Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya

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