बिहार विधानसभा चुनाव 2020, सहरसा: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दो सेनानियों स्व लहटन चौधरी व परमेश्वर कुंवर के बीच महिषी विधानसभा में दशकों तक कांटों का संघर्ष रहा. राजनीतिक विरोधी होने के बाद भी दोनों के बीच आपसी सौहार्द व प्रेम में कभी खटास नहीं दिखी. आजादी के बाद लहटन चौधरी सुपौल से 1952 में विधायक चुने गये. 1957 व 1962 के आमचुनाव में धरहरा सुपौल से परमेश्वर कुंवर ने बाजी मारी व महिषी विधानसभा के गठन के बाद पुनः 1967 में कुंवर को जीत का सेहरा मिला.
1969 में लहटन चौधरी ने अपने विरासत को लौटाया व 1972, 1980 व 1985 में अपने बलबूते कांग्रेस का लगातार परचम लहराया. इस बीच चौधरी पार्टी के निर्देश पर संसद का चुनाव लड़े व तत्कालीन विरोधी राजनीति के कद्दावर नेता भूपेंद्र नारायण मंडल को हरा सांसद भी चुने गये. 1977 के चुनाव में कुंवर पुनः चौधरी को पटखनी देने में कामयाब हुए व 1990 में अपने शिष्य आनंद मोहन को अपना विरासत सौंप राजनीतिक संन्यास ले लिया. गरीब परिवार में जन्मे नेताद्वय कोसी क्षेत्र की समस्याओं से क्षेत्रवासियों को हर संभव निजात दिलाने की कोशिश की. क्षेत्र में गांधी व विनोवा के आदर्शों को सादगीपूर्ण जीवन से जीवंत बनाये रखा.
कई लोगों ने उन दोनों की उदारता का बखान करते बताया कि 1962 के चुनाव परिणाम के बाद लहटन चौधरी व कुंवर जी के बीच इलेक्शन सूट का मुकदमा भी चला व दरभंगा में कोर्ट की कार्रवाई के बाद दोनों नेता एक दूसरे के साथ चाय नाश्ता कर हंसी ठट्ठा करते देखे जाते थे. ऐसी भी चर्चा है कि एक बार के चुनाव में चौधरी की प्रचार गाड़ी खराब हो गयी व उसी दिन चंद्रायन में लहटन के प्रचार प्रसार में ललित नारायण मिश्र की सभा थी. सभा स्थल पर पहुंचने का कोई अन्य साधन नहीं था व पहुंचना भी जरूरी था. ऐन वक्त पर परमेश्वर कुंवर भी अपने समर्थकों के साथ क्षेत्रीय दौरा पर थे व दोनों की मुलाकात हो गयी. चौधरी ने कुंवर से अपनी गाड़ी देने को कहा. अपना झंडा उतार कुंवर ने अपनी गाड़ी दे दी.
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समर्थकों के विरोध करने पर उन्हें जमकर डांट पिलाई. उस बार परमेश्वर कुंवर मामूली अंतर से पराजित भी हुए. कभी ऐसा भी हुआ कि कुंवर जी पैदल चुनाव प्रचार में थे व लहटन चौधरी से भेंट हुई. कुंवर आपसी अभिवादन के बाद उन्हीं की गाड़ी में सवार हो लिए. चौधरी के पूछने पर कि लोग हमदोनों को एक साथ देख क्या सोचेंगे तो कुंवर जी ने कहा कि आप अपने लिए वोट मांगेंगे और हम अपने लिए. ऐसी उदारता व ऐसा स्नेह शायद हीं फिर कभी देखने को मिले.
Posted By: Thakur Shaktilochan Shandilya