Bihar Election 2020: वैशाली जिले की नब्ज सियासी दिग्गजों के लिए रही है चुनौती, रघुवंश सिंह के कारण इस बार टक्कर बनेगी खास…

Bihar Election 2020 पटना: दो हजार साल पहले गणतंत्र की धरती रही वैशाली जिले पर अकेले सियासी रसूख बना लेना आसान नहीं है. पिछले 20 सालों से यहां की विस सीटों पर मुकाबला देखें, तो शायद ही कोई दल हो, जिसे यहां के मतदाताओं ने धूल न चटायी हो़. राजनीतिक समर में इसी क्षेत्र के पांच बार के सांसद रहे समाजवादी नेता डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह अचानक राजनीतिक दुर्वासा के रूप में सामने आये हैं. जिनकी उपेक्षा कर पाना राजद के लिए संभव नहीं हो पा रहा है़.

By Prabhat Khabar News Desk | September 12, 2020 9:35 AM

पटना: दो हजार साल पहले गणतंत्र की धरती रही वैशाली जिले पर अकेले सियासी रसूख बना लेना आसान नहीं है. पिछले 20 सालों से यहां की विस सीटों पर मुकाबला देखें, तो शायद ही कोई दल हो, जिसे यहां के मतदाताओं ने धूल न चटायी हो़. राजनीतिक समर में इसी क्षेत्र के पांच बार के सांसद रहे समाजवादी नेता डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह अचानक राजनीतिक दुर्वासा के रूप में सामने आये हैं. जिनकी उपेक्षा कर पाना राजद के लिए संभव नहीं हो पा रहा है़.

सियासी दिग्गजों को जीताया भी, हराया भी 

हालांकि, इस क्षेत्र की उर्वर राजनीतिक भूमि से लालू प्रसाद, रामविलास पासवान, नित्यानंद राय, उपेंद्र कुशवाहा जैसे दिग्गजों का सीधा संबंध रहा है़. वैशाली की भूमि ने जहां रघुवंश प्रसाद सिंह, रामविलास पासवान जैसे बड़े नेताओं को जीता कर सम्मान दिया है. वहीं, लालू प्रसाद, रामविलास पासवान व रघुवंश प्रसाद सिंह सरीखे नेताओं को राजनीतिक पराजय का अहसास भी कराया है. बिहार की सत्ता संभालने के कुछ साल बाद ही जब लालू की लोकप्रियता चरम पर थी, वैशाली लोस की सीट पर हुए उपचुनाव में यहां के मतदाताओं ने लालू समर्थित उम्मीदवार को हराते हुए उनके विरोध में खड़ी लवली आनंद को सांसद बनवा दिया था.

20 सालों में वैशाली की विस परिणाम की स्थिति

राघोपुर

राजद की परंपरागत सीट मानी जाने वाली राघोपुर विस के पिछले पांच चुनावों पर नजर डालें तो यहां 2010 को छोड़ हर बार राजद का ही कब्जा रहा है़. 2010 में राबड़ी देवी यहां से चुनाव हार चुकी हैं. राबड़ी देवी यहां से दो बार चुनाव जीत चुकी हैं. तेजस्वी अभी यहां से प्रतिनिधि हैं.

Also Read: Bihar Election 2020: मतदान को लेकर बिखरने लगा चुनावी रंग, कहीं हाथों में लगाई जा रही मेहंदी तो कहीं पेंटिंग प्रतियोगिता का आयोजन…
महनार

2000, फरवरी 2005, अक्तूबर 2005 में लगातार कभी जदयू तो कभी एलजेपी प्रत्याशी के रूप में रामा किशोर सिंह ने यहां चुनाव जीता. 2010 में बीजेपी ने उन्हें हराया़. 2015 में जदयू ने यह सीट जीती. रामा किशोर सिंह के चलते ही डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह राजेडी से नाराज हैं.

पातेपुर

2000, अक्तूबर 2005, 2015 में आरजेडी प्रत्याशी रही प्रेमा चौधरी जीतीं. इनके प्रतिद्वंदी रहे महेंद्र बैठा भी यहां से फरवरी 2005, 2010 चुनाव जीत चुके हैं. विशेष बात ये है कि प्रेमा चौधरी ने इस बार राजद को अलविदा कह दिया. वहीं, महेंद्र बैठा ने कभी एलजेपी तो कभी बीजेपी प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीता था़

हाजीपुर में 20 साल से खिल रहा कमल

समाजवादियों की गढ़ रही यह सीट सन 2000 से अब भाजपा के कब्जे में है. भाजपा उम्मीदवार के रूप में नित्यानंद राय चार बार चुनाव जीते़. 2015 को छोड़ दें तो भाजपा को हराने के लिए सभी दलों ने केवल राजेंद्र राय पर ही असफल दांव लगाया़

लालगंज में लगातार दो बार कोई दल नहीं जीता

यह सीट भाजपा व राजद की पकड़ से दूर रही है़ यहां पिछले पांच चुनावों में दो बार एलजेपी व दो बार जदयू और एक बार स्वतंत्र उम्मीदवार जीता है़. इस सीट की तासीर यह है कि यहां से लगातार दो बार कोई दल नहीं जीता है़.

वैशाली जदयू का अभेद किला

पिछले पांच चुनावों में केवल एक बार सन 2000 में वीणा शाही ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की. इसके बाद लगातार चार बार जदयू ने यह सीट जीती है़.

महुआ

पिछले पांच चुनावों में चार बार यहां से राजद जीता है़. 2010 में जदयू यहां से जीती है़

राजापाकर

2010 में जदयू व 2015 में यहां से आरजेडी ने चुनाव जीता है.

Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya

Next Article

Exit mobile version