Loading election data...

Bihar election 2020 : जब पत्थर तोड़ने वाली भगवतिया देवी 1969 में पहुंचीं विधानसभा

यह 1960 के दशक का अंतिम साल था. सोश्लिस्ट पार्टी के नेता लगातार जिलों का दौरा कर रहे थे. इसी क्रम में प्रसिद्ध नेता उपेंद्रनाथ वर्मा गया जिले के नैली पहाड़ के करीब की कच्ची सड़क से गुजर रहे थे. वहां उनकी नजर मुसहर समाज की एक महिला भगवतिया देवी पर पड़ी. भगवतिया देवी पत्थर तोड़ने वाली मजदूर थीं.

By Prabhat Khabar News Desk | September 10, 2020 5:47 AM
an image

यह 1960 के दशक का अंतिम साल था. सोश्लिस्ट पार्टी के नेता लगातार जिलों का दौरा कर रहे थे. इसी क्रम में प्रसिद्ध नेता उपेंद्रनाथ वर्मा गया जिले के नैली पहाड़ के करीब की कच्ची सड़क से गुजर रहे थे. वहां उनकी नजर मुसहर समाज की एक महिला भगवतिया देवी पर पड़ी. भगवतिया देवी पत्थर तोड़ने वाली मजदूर थीं. इसी से वह अपने परिवार की लालन-पालन करती थीं. वह अपने साथ मजदूरी करने वालों के बीच खड़े होकर भाषण दे रही थी.

उपेंद्र नाथ वर्मा वहीं ठहर गये और भगवतिया देवी का पूरा भाषण सुना. जब भाषण खत्म हुआ तो उन्होंने कहा आपको तो नेतृत्व करना चाहिए. उन्होंने भगवतिया देवी को डॉ रामनोहर लाेहिया से मिलवाया. लोहिया जी बड़े खुश हुए. उन्होंने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में समाजवादियों की हुई उन दिनों एक बैठक में भगवतिया देवी से गीत गाने को कहा. जब भगवतिया देवी ने शोषण, प्रताड़ना की पीड़ा से जुड़ा एक गीत ‘हम न सहबो हो गाली भैया-हम न सहबो गाया’ तो पूरा स्टेडियम तालियों के गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

कुछ दिनों बाद 1969 के मध्यावधि चुनाव की घोषणा हो गयी. लोहिया जी ने भगवतिया देवी को गया जिले के बाराचट्टी सुरक्षित विधानसभा सीट से उम्मीदवार बना दिया. चुनाव परिणाम जब आया तो पत्थर तोड़ने वाली भगवतिया देवी भारी मतों से चुनाव जीत गयीं. विधानसभा में उनके सवाल, उनके उठाये मुद्दों और उसे रखने की कला आज भी लोग भूले नहीं हैं. 1972 के चुनाव में वह विधानसभा नहीं पहुंच पायीं, लेकिन 1977 के चुनाव में सोश्लिस्ट पार्टी की टिकट पर एक बार फिर विधायक बन गयीं. 1980 में भगवतिया देवी चुनाव हार गयीं तो राजनीति से दूर चलीं गयीं और फिर से मजदूरी करने लगीं. समय निकालकर मजदूरों की आवाज भी बुलंद करती रहीं.

1995 में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने एक बार फिर भगवतिया देवी को गया सीट से टिकट दे दिया. वह एक बार फिर विधायक बन गयीं. एक साल बाद 1996 में जनता दल ने उन्हें गया से लोकसभा चुनाव में उतार दिया.भगवतिया देवी वहां से जीतकर दिल्ली पहुंच गयीं. कई बार चुनाव जीतने के बावजूद भगवतिया देवी के रहन-सहन में रत्ती भर बनावट नहीं आया. बिल्कुल सादगी भरा जीवन जीने वाली भगवतिया देवी अपने संसदीय जीवन में महिलाओं के अधिकारों की आवाज बुलंद करती रहीं. 2000 के विधानसभा चुनाव में भी वह जीत कर आयीं और विधायक बनीं. अभी उनके बेटे विजय मांझी गया से सांसद हैं और उनकी बेटी समता देवी राजद की विधायक हैं.

posted by ashish jha

Exit mobile version