यों तो टीएन शेषण के काल से ही चुनाव आयोग ने चुनाव को लेकर व्यापक सुधार कार्यक्रम शुरू कर दिया था. इससे मतदान प्रक्रिया सरल होने लगी और मतदाताओं को भी सुलभ तरीके से वोट डालने की सुविधा मिली. इसी कड़ी में 2000 का विधानसभा चुनाव आया. चुनाव आयोग ने पूरी तरह इवीएम से चुनाव कराने की बात कही. गांवों में लोग इवीएम का प्रयोग करना नहीं जानते थे.
खासकर कम पढ़े -लिखे लोग और ग्रामीण महिलाओं में इवीएम के प्रयोग से हिचक थी. लालू प्रसाद ने इसके लिए अलग रास्ता खोज निकाला. लालू प्रसाद जब चुनाव प्रचार में निकलते, तो मतदाताओं से इवीएम के प्रयोग की जानकारी अपने अंदाज में देते. राजद अध्यक्ष मंच पर चढ़ कर कहते, इवीएम का एक कृत्रिम डिब्बा उनके हाथ में होता और वो दिखाते, जब बटन दबाने के बाद पीं का आवाज निकले तो समझ जाना वोट पड़ गया.
पीं के पहले मशीन के सामने से हटना नहीं है. लालू का पीं कहना लोगों ने खूब हाथों हाथ लिया. तकरीब सभी सभाओं में वह अपने अंदाज में पीं की बोली निकालते और लोगों को वोट देने का तरीका भी बताते. कई जगहों पर लालू जब अपनी यह बात कहना भूल जाते तो, लोग टोक देते थे. बोटवा कैसे डालेम, और लालू शुरू हो जाते पीं ……….
इसी प्रकार 2005 के फरवरी के चुनाव में तकरीबन सभी चुनावी सभाओं में लालू मंच के सामने खड़े युवाओं से कहते, एगो लीवर जानी है. सामने से लड़के बोलते, नहीं सर जानी लीवर है. लालू कहते- हां हां वही. हमको तो याद नहीं रहता. लड़कों की टोली खूब हंसती और जिंदाबाद के नारे लगते. दरअसल कुछ दिन पहले लालू प्रसाद पर एक फिल्म बनी थी, जिसमें लालू प्रसाद ने खुद भी कुछ रोल निभाया था. यह बात चर्चा में रही थी.
posted by ashish jha